सुखबीर : जी हां, पहले किसी नेता के समर्थन में लगने वाले भावनात्मक नारों को सुनकर हमारे राेंगटे खड़े हो जाते थे और शरीर में जोश भर आता था। हालांकि मैं हरियाणा निर्माता के नाम से प्रसिद्ध रहे स्वर्गीय बंसीलाल के परिवार से ताल्लुक रखता हूं तो 1996 के विधानसभा चुनावों में जब हविपा भाजपा गठबंधन की सरकार बनी तो प्रदेश में बंसीलाल जी के बारे में एक कैसेट गानों की खूब बजती थी।
उसमें कई गाने ऐसे थे जिनको सुनकर मेरे शरीर के राेंगटे खड़े हो जाते थे, उनमें से कुछ गीतों के मुखड़े बंसीलाल जी, करो ना ख्याल जी, याद करै थान्नै हरियाणा के अलावा हरियाणा में इबकी बार फेर तैं बंसीलाल आवैगा, दोबारा तैं सरकार बणाकै दुनिया के कष्ट मिटावैगा आदि थे। तब उन गानों को सुनकर बहुत जोश भर जाता था और रोंगटे भी खड़े हो जाते थे।
मगर अब ना तो इस तरह के गानों में दम रहा आैर ना ही राजनैतिक दलों के नारों में जिनसे मेरे रोंगटे खड़े होते हों। मित्रों और बहनों व भाइयों सुनकर खड़े हो जाते हैं रोंगटे अब अगर मेरे रोंगटे खड़े होते हैं सिर्फ हमारे देश के माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नाक से निकलने वाले शब्द मित्रों, या फिर बहनों व भाइयों शब्द सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
इनमें से कोई भी शब्द अगर गलती से किसी टीवी न्यूज चैनल पर लाइव सुनता हूं तो यह सुनकर मन घबराने लगता है कि पता नहीं मोदी जी अब कौन सी ऐसी बात कहने वाले हैं जिनसे हमारे देश के लिए एक और घातक फैसला होगा। उन्होंने यह शब्द 8 नवंबर 2014 को जब नोटबंदी करते समय रात को यूज किया तो बहुत अच्छा लगा था, लेकिन उसके बाद उन्होंने जिस प्रकार नोटबंदी का ऐलान किया और उसके बाद देश में नोटबंदी के कारण फैली अव्यवस्था देखने को मिली उससे इन शब्दों को उनके मुंह से सुनकर अब मन घबराने लगता है।
हालांकि तबीयत ज्यादा ठीक नहीं है, लेकिन देश का अन्नदाता अपनी जायज मांग के लिए पूरे एक महीने से हाड़ कंपाने वाली सर्दी में दिल्ली की सीमाओं पर सड़कों पर रात बिता रहा है, उसके बावजूद हमारे प्रधानमंत्री जी को किसानों की जरा भी चिंता नहीं। इसी के चलते आज कुछ हिम्मत करके यह छोटा सा लेख लिख रहा हूं।
वे गुजरात और यूपी के किसानों से तो ऑनलाइन बातें कर सकते हैं, लेकिन उनकी जड़ में शांतिपूर्वक तरीके से आंदोलन कर रहे किसानों से बात करने के लिए उनके पास 2 मिनट का भी समय नहीं है। वे कहते हैं कि इन नए कृषि कानूनों से किसानों की आमदनी बढेगी। मगर जब देश के किसान नहीं चाहते कि इस तरह कारपोरेट घरानों के माध्यम से उनकी आमदनी बढनी है तो वह उन्हें मंजूर नहीं। जब देश का किसान कह रहा है कि उन्हें ये कानून नहीं चाहिए, उन्हें सिर्फ एक ही कानून चाहिए और वह भी सिर्फ एमएसपी की गारंटी वाला कानून।
मगर मेरे देश के प्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी इस पर जरा भी बयान नहीं दे रहे। मेरा एक सवाल पूरे देश की जनता से है कि जब ये कानून बनाए गए या अमल में लाए गए तब देश के किसानों से इस बारे में किसी तरह की राय ली गई। उत्तर नहीं में ही मिलेगा। तो फिर इन कानूनों को सरकार ने क्यों लागू किया।
कारण साफ है, सरकार इन कानूनों के माध्यम से अडानी, अंबानी जैसे कारपोरेट घरानों को फायदा पहुंचाने के लिए इन पर अड़ी हुई है। मेरी इस बारे में कल ही प्रदेश के एक रिटायर्ड आईएएस अधिकारी सुरेश कुमार गोयल जी से बात हुई। उन्होंने बताया कि भाई साहब अडाणी और अंबानी तो एक साल से देश के रेलवे ट्रैकों के साथ अपने वेयर हाउस बनाने के लिए जमीन खरीदकर वहां अपना गोदाम भी बना चुके हैं।
मतलब यह है कि यह योजना इस साल नहीं बल्कि पिछले लंबे समय से चल रही थी, लेकिन पिछले लोकसभा चुनावों से पहले इन कानूनों को इसलिए नहीं लाया गया ताकि किसी तरह का गतिराेध हो और भाजपा को इसका नुकसान उठाना पड़े।
मगर अब जो हो रहा है, सब आपके सामने है। सेंक लीजिए जिसको अपनी रोटी सेंकनी है, मेरे दिलोदिमाग में जो आया और जो शब्द मुझे रात को सोते समय याद आने पर बेचैन करते हैं उनको आपके सामने बयां कर दिया। अब आपकी मर्जी है कि आप उनको किस तरह समझते हैं। इससे ज्यादा और लिखने की आज मेरी हिम्मत नहीं है।
अब नारों नहीं इन 4 शब्दों को सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं