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किसानों का संघर्ष और सरकार की बेरुखी

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राजित
केंद्र सरकर जब से कृषि सुधार बिल लाने की बात शुरू की है तभी से अन्नदाता संघर्ष की राह पर हैं, सरकार इसे सदन में पास करवा कर कानून का रूप दे चुकी है। उधर, किसान शुरू से ही विरोध कर रहे हैं ।

जाहिर सी बात है की किसान यदि विरोध कर रहे हैं तो कुछ दम उनकी बात में भी है, आज के किसान नेता अशिक्षित तो हैं नहीं। किस नियम से क्या नफा नुकसान है उनको पता है। इसका असर भी पंजाब में देखने को मिलने लगा है, व्यापारी पंजाब और उत्तर प्रदेश से धान खरीद कर पंजाब की मंडी में बेच मोटा मुनाफा बटोरने में लगे है। इससे जाहिर है कि पंजाब के किसानों के धान कहा बिकेगा और कौन खरीदेगा, खास कर बासमती कौन खरीदेगा, परमल की खरीद तो सरकार कर लेगी।

  ‌कच्ची मिट्टी की मटकी थी, उल्टी पलटी फूट गई…

बीस दिन से किसान रेल ट्रैक पर बैठे हैं , उनसे बात करना केंद्र सरकार जरूरी नहीं समझ रही है। इससे पंजाब से अन्य राज्यों को जाने वाली खाद्य सामग्री की सप्लाई पूरी तरह से बंद हो चुकी है वहीँ रेल के माध्यम से आने वाला कोयला, अयस्क , तांबा , अल्मुनियम आदि के नहीं आने से उद्योगों पर प्रभाव पड़ रहा है वहीं कोरोना की मार झेल चुके कामगारों का रोजगार भी प्रभावित हो रहा है। आखिर सरकार की क्या मजबूरी है की किसानो की बात कोई सुनना नहीं चाहता है। अब यदि उद्यम रफ्तार पकड़ रहे तो कच्चे माल की कमी तथा तैयार माल रेल से न जा पाने के कारण प्रभावित हो जाएगा, जिसका प्रभाव सीधे तौर पर देश की एकोनोमी पर पड़ेगा, जो कि पहले से ही माइनस में चल रही है।
लेखक बरिष्ठ पत्रकार हैं








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