
अमृतसर : पिछले कुछ सालों में किसानों का रुझान केले की खेती की तरफ बढ़ा है। इसका कारण अच्छा मुनाफा बताया जा रहा है। जिला बागवानी विभाग के डॉक्टर हरप्रीत सिंह केले की खेती के संबंध में जानकारी देते हुए बताते हैं कि एक मजदूर एक दिन में एक बीघा केला की खेत में लगे सारे पौधों के सकर को आसानी से नष्ट कर सकता है। वे कहते हैं कि व्यवसायिक खेती के रूप में केले की खेती का व्यापक विस्तार हो रहा है।
डॉ: सिंह के मुताबिक देश में तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, केरल, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, त्रिपुरा, मेघालय सहित अन्य राज्यों बड़े पैमाने पर केले की खेती होती है। यहां तक कि पंजाब के फरीदकोट सहित अन्य जिलों के किसान भी केले की खेती को महत्व देने लगे हैं।
टिश्यू कल्चर से कमाएं अच्छा मुनाफा
डॉ: सिंह कहते हैं, “किसान टिश्यू कल्चर के पौध लगाकर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। लेकिन टिश्यू कल्चर केला की खेती में सकर प्रबंधन का काम थोड़ा मुश्किल होता है। किसान बहुत अच्छे तरीके से केले की खेती करते हैं।
केले के पौधे के विकास में बाधक होते हैं कंद
डॉ: सिंह कहते हैं कि सकर पौधे के आसपास कंद से लगी हुई छोटी –छोटी शाखाएं निकल जाती हैं। इसके सकर कहते हैं। ये सकर पौधे की वृद्धि में बाधक होते हैं। इसलिए इनको निकाल देना चाहिए। वे कहते हैं सकर निकालते समय किसानों को यह ध्यान देना चाहिए कि मुख्य प्रकंद में चोट न लगने पाए। सूखी पत्तियां भी समय–समय पर काटते रहना चाहिए। वे कहते हैं केला फल के घेर में से जो फूलों का गुच्छा लगा रहता है, उसे भी काट देना चाहिए।
जून में लगाएं नई फसल
डॉ: हरप्रीत सिंह कहते हैं कि केले की रोपई के लिए जून-जुलाई का महीना उत्तम होता है। इस महीने में केले की नई पौध लगा सकते हैं। पौधों की रोपाई के लिए पहले से तैयारी करनी चाहिए। जैसे गड्ढ़ों को जून में ही खोदकर उसमें गोबर वाली खाद भर दें।
नीम और गोबर की खाद का करें प्रयोग
बागवानी विशेज्ञ के अनुसार केले के जड़ के रोगों से निपटने के लिए पौधे वाले गड्ढे में ही गोबर की खाद के साथ साथ नीम की खाद भी डालें। किसान अगर केचुआ की खाद का प्रयोग कर पाएं तो यह अति उत्तम होता है। इसके साथ ही सिंचाई का भी उचित प्रबंध होना चाहिए क्यांकि केला लंबे समय का पौधा है।
इन बातों का भी रखें ध्यान
केले को पौधों को कतार में इन्हें लगाते वक्त हवा और सूर्य की रोशनी का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए। पोषण प्रबंधन केले की खेती में भूमि की उर्वरता के अनुसार प्रति पौधा 300 ग्राम नत्रजन, 100 ग्राम फॉस्फोरस तथा 300 ग्राम पोटाश की आवश्यकता पड़ती है। किसान केले में मल्चिंग करवा रहे हैं, इससे निराई गुड़ाई से छुटकारा मिल जाता है। लेकिन जो किसान सीधे खेत में रोपाई करवा रहे हैं, उनके लिए जरुरी है कि रोपाई के 4-5 महीने बाद हर 2 से 3 माह में गुड़ाई कराते रहे।