Home उत्तर प्रदेश ‘मुख्तार’ से मुख्तार अंसारी तक का सफर (mukhtar ansari)

‘मुख्तार’ से मुख्तार अंसारी तक का सफर (mukhtar ansari)

by Jharokha
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mukhtar ansari :उपर दिख रही यह तस्वीर अपने आप में बहुत कुछ कहती है। क्योंकि इस तस्वीर से न केवल मुहम्मदाबाद बल्कि यूसूफपुर मुहम्मदा बाद के साथ-साथ गाजीपुर अपितु उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल का इतिहास जुड़ा है। यह तस्वीर गाजीपर के संबंध कही गई उन कहावतों को भी चरितार्थ करती है जिसमें कहा जाता है कि गाजीपुर की माटी अफर, अफीम और अपराधियों को पैदा करती है। यह कहावत ब्रिटिश हुकूमत से ही चली आ रही है जो आज भी फलीभूत है।

मुहम्मदबाद तहसील के पास चौक पर लगे इस शिलापट्ट पर खुदा नाम डा: मुख्तार अंसारी से भले ही कोई वाकिफ हो या न हो, लेकिन ‘मुख्तार अंसारी’ से हर कोई वाकिफ है। यहां चौराहे पर गुमटी में पान लगा रहे पानवाले चचा और पान की गिलौरी मुंह में दबाए भइया भी मुख्तार अंसारी के बार में बड़े चाव से बताते, लेकिन डा: अंसारी के बारे में वह कुछ अचकचा जाते हैं। यह तो रही पान और पान वाले चचा की बात। बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो इस शिपट्ट के बारे में जानते भी नहीं कि यह कब, क्यों और किसके लिए लगाया गया।

mukhtar ansari_मुख्तार अंसारी से गहरा नाता

इस शिलापट्ट का माफियाडान mukhtar ansari_मुख्तार अंसारी से गहरा नाता है। 25 दिसंबर 1980 को गाजीपुर के तत्कालीन डीएम सुबोध नाथ झा के द्वारा डा: मुख्तार अहमद अंसारी की याद में अनावरण किया था। डा: मुख्तार अहमद अंसारी कोई और नहीं बल्कि जरायम की दुनिया के बेताज बादशाह मुख्तार अंसारी के दादा थे जो बर्तानवी हुकूमत में भारतीय कांग्रेस के अध्यक्ष और महात्मा गांधी करीबी भी रहे। इन्हीं मुख्तार अहमद अंसारी के पोते हैं मऊ से बसपा विधायक और माफिया किंग मुख्तार अंसारी।

1988 से पहले कोई जानता नहीं था मुखतार को

वर्ष 1988 से पहले कोई mukhtar ansari_मुख्तार अंसारी को जानता तक नहीं था। पर इसी सात हत्या के एक मामले में मुख्तार का नाम पहली बार सुर्खियों में आया। शायद यह जरायम की दुनिया में मुख्तार का पहला कदम था। गाजीपुर पीजी कालेज का होनहार छात्र और उच्चकोटि का क्रिकेट खिलाड़ी मुख्तार जमीन कारोबार, रेलवे और कोयले के ठेके की वजह से अपराध की दुनिया में ऐसी पैठ बनया कि 1990 के दशक में मुख्तार के नाम का सिक्का पूर्वांचल के गाजीपुर, मऊ, वाराणसी और जौनपुर में चलने लगाया। इसे विडंबना कहें या महज संयोग। 1980 में जिसके दादा के नाम से मुहम्मदाबाद चौराहे पर जिसके दादा के नाम का शिलापट्ट लगता है ठीक उसके आठ साल बाद 1988 में इसी गौरमयी खानदान का पोता अपराध की दुनिया में कदम रखता और फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखता।

1995 में रखा राजनीति में कमद

कहते हैं राजनीति और अपराधा का संबंध बहुत पुराना है। इन्हीं संबंधों के बलबूते मुख्तार सियासत के गलियारों में अपनी पहुंच बनाता है। इसके लिए वह कभी मुलायम तो कभी मायवती से संबंधों को मजबूत कर 1995 में राजनिति में कदम रखा और 1996 में पहली बार निर्वाचित हो कर विधानसभा तक पहुंचा। इसके बदा उसने पूर्वांच के ही एक अन्य माफिया डान ब्रीजेश सिंख की सत्ता को हिलाना शुरू कर दिया। इन दोनों में कई बार गैंगवार भी हुई। ब्रीजेश ने मुख्तार के गिरोह पर हमला करया।

दोनो ओर से गोलीबारी हुई, जिसमें मुख्तार के ती गुर्गे मारे गए। इसी दौरान अफवाह उड़ी कि ब्रीजेश सिंह मारा गया। ब्रीजेश के भूमिगत होने के बाद मुख्तार ने पूर्वांचल में अपरा गिरोह खड़ा कर लिया। यही नहीं जेल से ही भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या करवाने का भी आरोप मुख्तार पर लगा। हलांकि इस आरोप में सीबीआई की आदालत ने मुख्तार को बरी कर दिया था, अभी भी मुख्तार कई आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं।

वर्ष 2012 में महाराष्ट्र सरकार ने लगा दिया मकोका

यही नहीं मुख्तार अंसारी पर महाराष्ट्र सरकार ने मकोका भी लगा दिया था। यही नहीं मुख्तार को कारवाई खरीदने के एक भगोड़ सैनिक से सौदा करने के आरोप में भी गिरफ़तार किया गया था। इनसबके बावजूद मुख्तार कभी मुलायम तो कभी मायावती के चहेते बने रहे। यही नहीं मुख्तार को लेकर पंजाब और उत्तर प्रदेश पुलिस के बीच भी करीब दो साल तक रस्साकसी चलती रही। बहरहाल जिस बांदा जेल से करीब दो साल पहले मुख्तार पंजाब की रोपड़ जेल गए थी आखिरकार उसी बांदा जेल में दोबारा लौट आए हैं।

mukhtaar se mukhtaar ansaaree tak ka saphar 
Jharokha

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