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राम नौवमी विशेष
- भारतीय जनमानस ने राम के आदर्शों को समझा है, परखा है
- वाल्यकाल से लेकर अवधपति बनने तक ता उम्र उन्होंने मर्यादाओं की ‘लक्ष्मण रेखा’ नहीं लांघी
राम ! दो अक्षरों से मिल कर बना ‘राम’ कहने को तो एक शब्द है, लेकिन इसकी वार्वभौमिकता नीलांबर की तरह आदि और अनंत है। राम भारत और भारतीयों की पहचान है। राम जड़ और चेतन है। राम साकार और निराकार दोनो है। राम चेतना और सजीवता का प्रमाण है। राम मात्र दो अख्ज्ञरों का नाम ही, तो प्रत्येक प्राणी में रमा हुआ है। यानी जो रम गया वो श्री राम का हो गया। आइए जानते हैं राम क्यों कहलाते हैं मर्यादा पुरुषोत्तम।
भगवान श्री राम के जीवन काम और उनके पराक्रम के बार में महर्षि वाल्मीकि ने महाकाव्य रामायण में लिखा है। बाद में गोस्वामी तुलसी दास जी ने भी अवधि में भक्ति काव्य ‘राम चरतिमानस’ की रचना कर राम को आदर्श पुरुष बताया है।
आदर्शों से भरा है राम का जीवन
राम का पूरा जीवन आदर्शों से भरा पड़ा है। अतीत हो या वर्तमान। भारतीय जनमानस ने राम के आदर्शों को समझा है, परखा है। राम का पूरा जीवन आदर्शों और संघर्षों से भरा है। वाल्यकाल से लेकर अवधपति बनने तक ता उम्र उन्होंने मर्यादाओं की ‘लक्ष्मण रेखा’ नहीं लांघी। राम एक आदर्श पुरुष ही नहीं, आदर्श पति, आदर्श भारई और प्रजापलक राजा भी थे।
राम का चरित्र इतना उज्जल था कि जनमानस पर गहरा प्रभाव है। इनका महान चरित्र जनमानस को शांति आनंद की सुखपद अनुभूति कराती है। उत्तर से दक्षिण तक, पूरब से पश्चिम तक संपूर्ण भारतीय जनमानस ने भगवान श्री राम को आदर्श को किसी न किसी रूप में स्वीकारा है। राम का आदर्श और उनका चरित्र भारत की एकता और अखंडता का प्रतीक है। अनेकता में एकता का प्रतीक है।
त्याग की मूर्ति हैं राम
राम। यह शब्द जीतना छोट है, इसका सार उतना ही धीर और गंभीर है। इसी धीर और गंभीर स्वभाव के राम पिता के वचनों की ‘मर्यादा’ को चीर स्थाई बनाए रखने के लिए सहर्ष वन जाने को तैयार हो जाते हैं। वह उन परिस्थितियों जब राजमहल में उनके राज्याभिषेक की तैयारियां चल रही होतीं हैं। यह कोई और नहीं राम ही कर सकते थे।
राम ही सकते हैं गिद्धराज का तर्पण
सीता हरण के समय पर नारि की रक्षा करने वाले गिद्धराज जटायु का तपर्ण श्री राम जैसा मर्यादापुरुषोत्तम ही कर सकता है, क्योकि यह मार्यादा ही सिखाती ह ककि मनुष्य तो क्या पशु-पक्षियों की भी सम्मान के साथ अंतेष्ठि की जा सकती है।
राम ही खा सकते हैं सबरी के जूठे बेर
समाज के एक ऐसे वर्ग जिसे ‘अछूत’ कहा जाता है। उसे गले लगा कर प्रेस की इस प्रथा को मार्यादा पुरुषोत्तम श्री ही आगे बढ़ा सकते हैं। सबरी के जूठे बेर राम ही खा सकते हैं। क्योंकि राम नश्छिल हैं। वह प्रेम के भूखे हैं। प्रेम पिपाशु राम ही भिलनी को ‘मां’ कह कर पुकार सकते हैं। यह राम की मार्यादाएं ही हैं जो उन्हें यह करने को प्रेरित करती हैं।
तुलसी, कबीर और वाल्मीकि के राम
आदि कवि वाल्मीकि ने श्री रमा को गाम्भीर्य में संदर सा और धैर्य में हिमालय माना है। आदर्शों और मर्यादाओं का पुरुषोत्तम माना है। वहीं तुलसी के आराध्य राम के चरित्र में पग-पग पर मर्यादा, प्रेम और लोक व्यवहार के दर्शन होते हैं। तभी वो लिखते हैं- ‘ तुलसी दास सदा हरि चेरा, किजे नाथ हृदय महडेरा’। इसी तरह कवीर के राम उनके अंग संग विराजते हैं। कबीर के राम सगुण भी हैं और निगुर्ण भी है। तभी तो वो कहते हैं -‘ निर्गुण राम जपहुं रे भाई।’