अमृतसर : वट वृक्ष की पूजा हिंदू सामाज में अनादि काल से किसी न किसी रूप में होती आ रही है। मानाजा है है कि आज से हजारों साल पहले वट वक्ष के नीचे माण्डुक्योपनिषद की रचना और ऊं की व्याख्या हुई थी। कई नामों जैसे वट, बड़, बोहड़, कल्पवृक्ष, बरगद, बर आदि नामों से अपनी पहचान रखने वाले इस वृक्ष का वैश्विक वैज्ञानिक नाम फाइकस बंगालेनसिस है। इसे पीप का संबंधी भी माना गया है।
बरगद का वृक्ष हमारे देश के हर भाग में सहज ही देखने को मिल जाता है। यहां तक कि गांव की चौपाल भी इसी वृक्ष के नीचे लगती है। कई मामलों में तो यह पंचायत द्वारा सुनाए गए फैसलों का गहवाह भी बनता है। चाहे वह फैसला उचित हो या अनुचित। यह वृक्ष विशाल एवं दीर्घजीवी होने के साथ-साथ इसकी छावं गहरी और ठंडी होती है। इसकी इन्हे अनेकानेक खूबियों के कारण कभी-कभी लोग गांव के बड़े-बुजुर्गों को बाबा बोहड़ भी कहते हैं।
खैर इन सबसे अलग इसकी एक खास विशेषता है- वह यह कि वट वृक्ष की शाखाओं से एक विशेष प्रकार की जड़ निकलती है। जिसे वानस्पतिक भाषा में प्रोप जड़ें भी कहते हैं। जो धीरे-धीरे बढ़ती हैं और जमीन के अंदर चली जाती हैं। इससे एक नई शाखा का निर्माण होता है। इन शाखाओं को आम बोलचाल की भाषा में बरोह या बरगद की दाढ़ी कहते हैं।
महादान का गवाह रहा है वट वृक्ष
यदि हम प्राचीन भारत के इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो पता चला है कि हर्षवर्घन हर पांचवें वर्ष प्रयागराज (इलाहाबाद) में संगम के पट पर कल्पकवृक्ष के नीचे महादान मेले का आयोजन करता था। उसका यह महादान तब तक चलता रहता था, जबतक कि वह स्वयं का पहना हुआ वस्त्र दान कर अपनी बहन राजश्री से वस्त्रं कर न पहन लें। इसकी पुष्टि स्वयं चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपनी पुस्तक सियूकी में की है। माना जाता है कि यह वृक्ष इलाहाद में संगम के किनारे मुगल बादशाह अकबर के किले में आज भी विद्यमान है।
सावित्री-सत्यवान की कथा से भी जुड़ा है
धार्मिक कथाओं के अनुसार वट वृक्ष सावित्री और सत्यवान की कथा से भी जुड़ा हुआ है। इसकी कथा से जुड़े होने के कारण औरतें इसकी पूजा-अर्चना कर अपने पति की लंबी आयु व सुख संमृद्धि की कामना करती हैं।
बरगद के नीचे ही भगवान श्री कृष्ण ने दिया था गीता का ज्ञान
शंकराचार्य मंदिर के प्रमुख स्वामी आत्म प्रकाश शास्त्री कहते हैं कि वट वक्ष के नीचे ही भगवान श्रीकृष्ण ने आज से पांच हजार वर्ष पूर्व अर्जुन को गीता उपदेश दिया था। वे कहते हैं कि यह वही पावन वृक्ष है जिसके नीचे अभिमन्यु पत्र महारजा परीक्षित ने केवल सात दिनों में ही भागवत महा पुराण का श्रवण कर मुक्ति प्राप्त कर ली थी।
भगवान शिव का निवास भी है बरगद
स्वामी आत्मप्रकाश के अनुसार वट वृक्ष नीचे भगवान शिव का निवास भी माना गया है। वे कहत हैं कि बरगद के नीचे ही माण्डुक्योपनिषद का उपदेश दिया गया था। इस उपनिषद में ऊं की व्याख्या की गई है।
क्या है माण्डूक्योपनिषद
स्वामी आत्म प्रकाश के अनुसार संस्कृत में लिखित माण्डूक्योपनिषद अथर्ववेदीय शाखा के अन्तर्गत एक उपनिषद है। इसके रचियता वैदिक काल के ऋषियों को माना जाता है। आत्म प्रकाश अनुसार इस उपनिषद में आत्मा या चेतना के चार अवस्थाओं का वर्णन मिलता है – जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति और तुरीय। प्रथम दस उपनिषदों में समाविष्ट केवल बारह मंत्रों की यह उपनिषद् उनमें आकार की दृष्टि से सब से छोटी है किंतु महत्व के विचार से इसका स्थान ऊँचा है। क्योंकि, बिना वाग्विस्तार के आध्यात्मिक विद्या का नवनीत सूत्र रूप में इन मंत्रों में भर दिया गया है।
इस उपनिषद् में ऊँ की मात्राओं की विलक्षण व्याख्या करके जीव और विश्व की ब्रह्म से उत्पत्ति और लय एवं तीनों का तादात्म्य अथवा अभेद प्रतिपादित हुआ है। इसके अलावे वैश्वानर शब्द का विवरण भी इसी उपनिषद में मिलता है जो अन्य ग्रंथों में भी प्रयुक्त है।