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शाम ढले खिड़की तले, तुम सीटी बजाना छोड़ दो

शाम ढले खिड़की तले, तुम सीटी बजाना छोड़ दो

हिंदी फिल्म अलबेला का यह गाना कि शाम ढले खिड़की तले, तुम सीटी बजाना छोड़ दो, घड़ी-घड़ी खिड़की में खड़ी तुम तीर चलाना छोड़ दो।

यह गाना उस समय बहुत पॉपुलर हुआ था। इस गाने को मैं आज देश खासकर दिल्ली बॉर्डर पर किसानों के आंदोलन से जोड़कर देख रहा हूं। पता नहीं आपको पसंद आएगा या नहीं, लेकिन इसके माध्यम से मैं देश के अन्नदाताओं और देश की सरकार को आगाह करना चाहता हूं। more

हालांकि मैं ठहरा अदना सा इंसान, लेकिन जब आप जैसे बड़े लोगों के पास ये बात पहुंचेगी तो आप कहीं ना कहीं इस बात को आगे पहुंचाने का काम करोगे, यह मुझे विश्वास ही नहीं पूरा यकीन है।आखिर इस गीत को मैं किसान आंदोलन से क्यों जोड़ रहा हूं इसका कारण यह है

कि जब हरियाणा प्रदेश में 19 फरवरी 2016 से जाट आंदोलन की हिंसा भड़की तो रातों के समय असामाजिक तत्वों ने प्रदेश में जगह जगह आगजनी की घटनाओं को अंजाम दिया और बड़े शहरों में लूट की वारदातों को अंजाम दिया। सारा जिम्मा जाट समुदाय पर मंढ दिया गया और कई युवा जाट नेता उसके चलते अब भी जेल में हैं।

यहां मैं असामाजिक तत्वों की परिभाषा को परिभाषित करना चाहूंगा जो मेरी नजर में हैं। असामाजिक तत्व वे होते हैं जिनकी ना कोई जात, ना कोई धर्म और ना ही कोई मजहब होता है। उनका काम इस तरह के आंदोलनों में हिंसा को फैलाना और राम राम रटना पराया माल अपना होता है। हालांकि मैं रात भर और दिन में भी टीवी देखता हूं

वो भी सिर्फ एनडीटीवी, बाकि तो लगभग देश के कारपोरेट घरानों के न्यूज चैनल हैं। इसलिए मेरा पहला निवेदन आंदोलन कर रहे किसानों से है कि वे शाम ढलने के बाद ये ना सोचें कि अब उनका आज का काम खत्म हो गया और वे आराम से नींद लेंगे।

यह उनकी गलतफहमी है। कारण इस समय दिल्ली के आसपास हालात ही ऐसे बने हुए हैं कि रात को अगर वहां कोई किसी तरह की अप्रिय वारदात को अंजाम दे तो उसका ठीकरा किसानों पर ही फोड़ा जाएगा। सरकार कहेगी कि हम तो किसानों को बातचीत के लिए बुला रहे हैं,

लेकिन वे नहीं आ रहे, इसलिए किसानों ने ही इस तरह की अप्रिय वारदात को अंजाम जानबूझकर दिया है। हालांकि मैं टीवी पर देख रहा हूं कि किसान उग्र स्वभाव वाले किसानों को दिल्ली पुलिस द्वारा लगाए बैरीगेटस को तोड़ने का प्रयास करने वाले किसान नेता समझा रहे हैं कि हमें ऐसा नहीं करना। हालांकि वे उनकी बात मान भी रहे हैं,

लेकिन अगर यही काम कोई रात को कर जाए, किसी पर पैट्रोल छिड़क जाए, कहीं सड़कों पर सोए किसानों पर एसिड अटैक कर दे, कोई किसानों के नाम पर उनके साथ लूटपाट कर जाए। कुछ पता नहीं, उस समय हरियाणा प्रदेश की जाट कोम पर आरोप थोपे गए, लेकिन सबको पता है कि उन वारदातों को किसने अंजाम दिया था। education

मगर नाम जाट आरक्षण आंदोलन का था तो एक समुदाय को निशाना बना लिया।अब किसान आंदोलन कर रहे हैंमगर इस समय देश के किसान आंदोलन कर रहे हैं, किसानों का मतलब हैं कि जो लोग खेती बाड़ी से अपनी गुजर बसर कर रहे हैं वे किसान हैं, उनमें हालांकि कुछ लोगों के दिमाग में अब भी यह वहम है कि ये सिर्फ जाट हैं

चाहे सिक्ख जाट हो हरियाणा का देसी जाट, लेकिन सच्चाई यह है कि स्वर्ण जाति के महाजन और ब्राह्मण समुदाय के एक बड़े हिस्से को छोड़कर बाकि सब किसान हैं। देश की खेती किसानी लगभग पंजाब, हरियाणा, यूपी, महाराष्ट्र के अलावा और भी कई प्रदेश भी शामिल हैं। पंजाब के किसानों के बारे में बहुत मशहूर है

कि वे बड़े ही दिलदार और दोस्ती या हक के लिए अपनी जान पर खेलने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। मैंने ऐसा देखा भी है, वो किस्सा 1985 का है जिसे बाद में पूरे विवरण के साथ लिखूंगा। अब इतना ही है कि हमारे देश के अन्नदाताओ सरकार आपकी सुने या ना सुने, आप आंदोलन कर रहे हो तो अपने आपको सजींदा रखो और दिन की बजाए रात को चौकसी बढाओ।

वहीं सरकार से अपील है कि आप अगर किसानों से बात नहीं करना चाहते तो आप किसी तरह के ओच्छे हथकंडे भी ना अपनाएं, अन्यथा इस देश का अन्नदाता अपनी पर उतर आया तो सरकार तो क्या देश का बैंड बजा देगा।आखिर में अपना लेख भी जोकर फिल्म के गाने जीना यहां मरना यहां से खत्म करना चाहता हूं।

हालांकि आपसे पहले ही कह चुका हूं कि मेरे सभी बड़ो आपका मैं बहुत सम्मान करता हूं जी, किसी बात का बुरा लगे तो मैं एक बार फिर से माफी मांगता हूं। साथ में यह जरूर दावा करता हूं कि देश का किसान इस बार दिल्ली से खाली हाथ नहीं लौटने वाला। यह मेरा आपसे वायदा रहा। देख लेना मेरी भविष्यवाणी कितनी खरी उतरती है।

अरे इस देश में किसानों को तो कोरोना संक्रमण के चलते दिल्ली में जाने की अनुमति नहीं और और उस गुंडे बदमाश अमित शाह को अहमदाबाद खुली रैली कर रहे हैं। मेरा खुला चैलेंज है कि क्या कोरोना ने रविवार को अहमदाबाद में अवकाश दिया था और क्या देश के किसानों पर इसका स्पेशल अटैक कराया था। आज के लिए बस इतना ही।







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