the jharokha news

‌कच्ची मिट्टी की मटकी थी, उल्टी पलटी फूट गई…

शाम ढले खिड़की तले, तुम सीटी बजाना छोड़ दो

सुखबीर “मोटू” : सैनी साहब मैं धर्मेंद्र कंवारी के किसी काम पर उंगली नहीं उठाता, मैंने हमेशा उनकी कद्र की है और करता रहूंगा, मगर आप शायद मेरी बात को सही तरीके से नहीं समझे, माना आप भी मुझसे सीनियर रिपोर्टर हैं, लेकिन पहले बात को सही तरीके से समझकर उसका जवाब दिया जाए तो मैं बेहतर मानता हूं।

धर्मेंद्र कंवारी वैसे सीनियर हैं, लेकिन हमारा प्यार और स्नेह आप नहीं जानते कि वे मेरे छोटे भाई जैसे हैं और मैं उनके बड़े भाई जैसा। अब आपको बताता हूं कि बात कुछ यूं थी कि एक व्यक्ति 100 प्रतिशत अंधा बनवाने का प्रमाण पत्र भिवानी के सिविल अस्पताल से बनवा चुका था। जबकि वह 25 प्रतिशत भी अंधा नहीं था और वह समाज कल्याण विभाग से अंधेपन के नाम पर विकलांग होने के नाते पेंशन ले रहा था।

मुझे उसके बारे में सारे दस्तावेज तो मिल चुके थे, लेकिन उसके अंधेपन को नकारा साबित करने के लिए सबूत चाहिए था। मेरे पास एक दिन फोन आया कि उक्त कथित अंधा व्यक्ति अंधेपन का नाटक कर रहा है और आज वह भिवानी की अदालत में आ रहा है। इसलिए मैंने अपनी फिल्डिंग जमा ली कि देखें उसमें कितना अंधापन है, हालांकि आज भी मेरे हाथ कांप रहे हैं, लेकिन आप के सवाल का जवाब देने के लिए मैं सवा 6 बजे से अपने पेट पर की बोर्ड रखकर यह बात लिख रहा हूं।

मैंने अपने फोटोग्रोफर को बुलाया और वह आदमी जो अपने आपको 100 प्रतिशत अंधा बता रहा था वह अदालत से निकलकर लघु सचिवालय की ओर जा रहा था। उसी समय वहां अदालत में ग्रेलिंग का काम चल रहा था। उस व्यक्ति के हाथों में छड़ी नहीं थी और वह बिना छड़ी के ही जब दीवार निर्माण के काम को बिना किसी बाधा के पार कर रहा था तो मैंने उसकी फोटो खिंचवाई।

  बात बहुत छोटी लगती है, लेकिन इसके मायने बहुत हैं

उस आदमी ने कहा कि भाई ” क्यांकि फोटो खीचों सो देखियो, कद्दे गलत काम हो ज्या नै”, मैंने कहा कि भाई साहब हम तो यहां चल रहे निर्माण कार्य की फोटो खींच रहे हैं, जबकि उस आदमी के पास दीवार फांदने के लिए भी कोई छड़ी आदि नहीं थी। मेरी खबर पुख्ता हो गई और मैं कार्यालय आ गया।

आप शायद अपने आपको महान पत्रकार मानते हो, इसलिए मैं आपके इस सवाल पर भी कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता, क्योंकि मेरी हिम्मत नहीं है, मैंने कार्यालय में आकर उस समाचार को पूरा किया और डैस्क पर भेज दिया। कुछ देर बाद डैस्क से जवाब आया कि आप जिस व्यक्ति के खिलाफ यह समाचार लिख रहे हो उसका वर्सन भी होना चाहिए। उन दिनों सुशील कुमार नवीन डैस्क इंचार्ज हुआ करते थे भिवानी के।

मैंने कहा हां भेजता हूं, मैंने उक्त व्यक्ति से संपर्क किया तो उसने मुझसे सीधे मुंह बात करने की बजाए कहा कि मैं कब आपके घर में दीवार फांदकर घुसा हूं। मैंने वही बात डैस्क को लिखकर भेज दी। इसके बाद जो ड्रामा हुआ वह या तो धर्मेंंद्र कंवारी जानते हैं या मैं जानता हूं। मेरे पास तो उस समाचार को रुकवाने के लिए मेरे सगे मामा का फोन आया और मैंने उनका फोन काट अपना मोबाइल बंद कर दिया।

मगर धर्मेंद्र कंवारी के पास बार-बार फोन आ रहे थे कि इस समाचार को हटवा दो भाई। इस पर भाई साहब ने मुझसे आखिर में कहा कि यार मोटू तूं आज इस समाचार को रूकवा दे, मेरी ब्यूरो चीफ की इज्जत का सवाल है, मैंने उनसे कहा कि आप ही कह दो डैस्क इंचार्ज से वो मान जाएंगे।

उन्होंने कहा कि वो मेरा कहा नहीं मान नहीं रहे, क्योंकि उस समय हिसार के संपादक जिसे में अपनी पत्रकारिता का आदर्श मानता हूं योगेश्वर दत्त सुयाल जी थे, वे नहीं मान रहे। मैंने धर्मेंद्र के कहने पर सुशील के पास फोन किया कि इस समाचार में कुछ पेच है, इसलिए आज आप रोक लीजिए, जैसे ही पूरा मैटर मिलेगा मैं दोबारा इस समाचार को लिखूंगा। मेरे इतना कहने पर संपादक और डैस्क इंचार्ज ने वह समाचार रोक लिया, और मैंने वह समाचार दोबारा कभी नहीं लिखा।

  अब नारों नहीं इन 4 शब्दों को सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं

मगर अब बताऊं आपको 2001 में प्रधानमंत्री वाजपेयी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के बीच आगरा में एक समझौता होना था, लेकिन वह नहीं हो पाया। उस पर मैंने 2002 में बहल के बीआरसीएम में एक वार्षिक कार्यक्रम में एक कवि की कविता सुनी थी।

उन्होंने 2001 में आगरा में अटल बिहारी वाजपेयी जी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ पर एक कविता सुनाई थी कि “कच्ची मिट्टी की मटकी थी, उल्टी पलटी, फूट गई, सुनते हैं कि ताज नगर में एक प्रेम कहानी टूट गई। ” इसलिए अब मेरी ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर, आप अपनी जगह ठीक, लेकिन मैं गलत हूं तो मुझे 100 जूते मारना, लेकिन मैंने अपनी जिंदगी में एक ही समाचार रोका वो भी मेरे छोटे भाई धर्मेंंद्र कंवारी के लिए।

आप उनसे शायद यह संवेदना कर रहे होंगे कि वे आपको वापस हरिभूमि में लें ले, लेकिन आपको हिंदी की टाइपिंग ही नहीं आती, इसलिए मुझ पर सवाल उठाने से पहले खुद के अंदर झांकिए कि आप कितने काबिल हैं।

इसके लिए अगर आपको बहस करनी है तो मेरे नंबर पर करें, ग्रुप में नहीं, लेकिन इतना बता दूं कि वह अंधा आदमी अब भी मेरी रैडार पर है। आप मुझसे बड़े हो, इसलिए मैंने करीब 2 घंटें का समय निकाल आपको यह जवाब दिया है, अगर मैं गलत हूं तो धर्मेंंद्र भाई साहब आगे आ सकते हैं। आगे अभी मेरी हिम्मत नहीं हैं।
लेखक हरियाणा के वरिष्ठ पत्रकार हैं








Read Previous

लुधियाना में लुट गए नेता जी

Read Next

पुलिस अधीक्षक ने किया, रजागंज चौकी इंचार्ज को लाईन हाजिर

Leave a Reply

Your email address will not be published.