
श्री गुरु गोविंद सिंह जी की प्रतिकात्मक फोटोो।सोशल साइट
अमृतसर । पंजाब और पंजाबियत का महत्वपूर्ण त्योहार बैसाखी १३ अप्रैल को है। बैसाखी का दिन सिख धर्म में काफी मायने रखता है। क्योंकि इसी दिन 13 अप्रैल 1699 को सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। बैसाखी के दिन से ही पंजाबी नव वर्ष की शुरुआत भी होती है। इसी दिन दशम पिता श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने गुरुओं की वंश परंपरा को समाप्त कर श्री गुरु ग्रंथ साहिब को जीवित गुरु सर्वोच्च स्थान दिया।
इसके बाद सिख धर्म के अनुयायी श्री गुरु ग्रंथ साहिब को अपना पथ प्रदर्शक बनाया। मान्यता है कि बैसाखी के दिन ही श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने अलग-अलग जातियों के पांच लोगों को अमृत छका कर सिख बनाया और उन्हें सिंह नाम दिया। इसके बाद से सिख धर्म के लोगों ने अपना सरनेम सिंह यानी शेर को स्वीकार किया। आग चल कर यही पांच लोग पंज प्यारे के नाम से जाने जाने लगे। मान्यता है कि यह उपाधि श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के नाम से आया। बैसाखी के दिन सिख धर्म के आस्था के प्रतीक गुरु घरों को सजाया जाता है। सिखों का कांबा कहे जाने वाले अमृतसर के गोल्डन टेंपल सहित अन्य गुरु घरों को सजाया गया है।