फीचर डेस्क
विजयदशमी के दिन शमी वृक्ष की पूजा करने का विधान है ।ऐसी मान्यता है कि नोरथ पूरे होते हैं एवं शत्रु पर विजय प्राप्त होती है। विजयदशमी का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत के साथ संकल्प का भी पर्व है । यह दिन हमें अपनी अंतरात्मा में उपजी बुराइयों पर विजय प्राप्त करने का संकल्प लेना चाहिए।
देश के विभिन्न भागों में विजयदशमी अपने-अपने लोक संस्कृति के अनुसार मनाई जाती है । इस दिन रावण मेघनाद और कुंभकरण के पुतलोंं को जलाया जाता है जो बुराइयों अहंकार के प्रति माने जाते हैं । इसके साथ ही शमी पूजा का भी विशेष महत्व है । देश में कहीं तो है घोड़ों की भी पूजा की जाती है सनातन धर्म के अनुसार विजयदशमी के दिन प्रदोष काल में शमी वृक्ष की पूजा अवश्य रूप से की जानी चाहिए।
विजयादशमी के दिन प्रदोषकाल में शमी वृक्ष के समीप जाकर उसे प्रणाम करें। तत्पश्चात शमी वृक्ष की जड़ में गंगा या नर्मदा के शुद्ध जल का सिंचन करें। जल सिंचन के उपरांत शमी वृक्ष के सम्मुख दीपक प्रज्वलित करें। दीप प्रज्वलन के पश्चात शमी वृक्ष के नीचे कोई सांकेतिक शस्त्र रखें। तत्पश्चात शमी वृक्ष एवं शस्त्र का यथाशक्ति धूप, दीप, नैवेद्य, आरती से पंचोपचार अथवा षोडषोपचार पूजन करें। पूजन के उपरांत हाथ जोड़कर निम्न प्रार्थना करें
शमी शम्यते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी। अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी।। करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया। तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता।।’
प्रार्थना के उपरांत यदि आपको शमी वृक्ष के समीप शमी वृक्ष की कुछ पत्तियां गिरी मिलें तो उन्हें आशीर्वादस्वरूप ग्रहण कर लाल वस्त्र में लपेटकर सदैव अपने पास रखें। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि आपको शमी वृक्ष से स्वयमेव गिरीं पत्तियां ही एकत्र करना है। शमी वृक्ष से पत्तियां तोड़नी नहीं हैं। इस प्रयोग से आप शत्रु बाधा से मुक्त एवं शत्रु पराभव करने में सफल होंगे।
- सावेदु.