भारतीय इतिहास में बौद्ध धर्म के अभ्युदय काल को एक नए धर्म का नवयुग कहा जा सकता है। जिस समय बौद्ध धर्म का अभ्युदय हुआ उस समय धर्मों में आंडबर एंव हिंसा का समावेश हो चुका था। यज्ञों में धर्म के नाम पर पशुओं की बलि दी जाती थी। साथ ही समाज में कई तरह की कुरीतियों ने जन्म ले रखा था। ऐसे में स्वाभाविक था लोगों का एक नए धर्म के प्रति आकर्षित होना, इसे धारण करना। क्योंकि इस धर्म के संथापक भगवान बुद्ध ने सामान्य जनमानस को यह बताने की कोशिश की कि हिंसा का रास्ता छोड़ो बुद्ध की शरण में आओ।
अतंरराष्ट्रीय स्तर का यह ऐतिहासिक बौद्ध स्थल पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिला मुख्यालय से ५१ किलोमीटर दूर २८ राष्ट्रीय राजमार्ग पर अवस्थित है। यहीं पर वर्तमान मे खड़े हो समय के उसपार अपने सुनरहे अतीत में झांकते हुए वक्त की चादर के नीचे सिमटे इस प्राचीन भारत की गौरवमयी धरोहर की पहचान सर्व प्रथम प्रसिद्ध अंग्रेज पुरातत्वेत्ता सर अलैग्जेंडर कनिंघम ने सन १८६१ में की थी। कालांतर में इस पुराताव्तिक स्थल से समय की चादर को समेटा सन १८७७-८० में एससी कलाइकल ने।
कुशी नगर की पुराताथ्वतक खुदाई के समय जो महत्वपूर्ण स्थल और स्मारक प्रकाश में आए उनमें से अतिमहत्वपूर्ण हे तथागत भगवान बुद्ध की निर्वाण की मुद्रा में मिली लगभग ६.१० सेंंटी मीटर लंबी प्रतिमा। कहा जाता है कि इन आकर्षक प्रतिमाओं का निर्माण हरिवल स्वामी नामक बौद्ध भिकक्षु ने पांचवी शताब्दी में करवाया था। इस स्थल का उल्लेख चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वृतांत में किया है।