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अशोक स्तंभ, वाह क्या चीज है…

by Jharokha
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अशोक स्तंभ, वाह क्या चीज है…

डेस्क : ऊपर दिख रही यह खूबसूरत कलाकृति सारनाथ स्थित अशोक स्तंभ की प्रकृति है। काष्ठ (लकड़ी) से बनी यह कृति हू-ब-हू सिंह शिर्ष स्तंभ लगती है जो भारत का राष्ट्रीय चिन्ह है। कलाकार की अद्भुत कृति को देख कर लोग अचानक कह उठते हैं, वाह क्या चीज है यार…। जी हां, बढ़ई की कला की पराकाष्ठा काष्ठ का बना सिंह शिर्ष स्तंभ उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के शाहनजफ रोड स्थित श्री गांधी आश्रम के खादी इंपोरियम में रखा गया है। (ashok stambh)

कहने को तो यह एक कालकृतिभर है, लेकिन लकड़ी के अशोक स्तंभ के पीछे एक भावना जुड़ी है जो सीमाओं से परे है। यह भावना है उस कालाकार की, जिसने सामान्य सी दिखने वाली पेड़ की एक टहनी के छोटे से टुकड़े को गढ़ कर राष्ट्रीय गौरव का आकार दे दिया है। यह भावना है, देशभक्ति का और प्रतिक एक राष्ट्र का। इस संबंध में श्री गांधी आश्रम के महामंत्री अरिवंदर श्रीवास्तव कहते हैं कि महज 300 या 400 रुपये में बिकने वाले इस स्तंभ को एक शो-पीस के रूप में मत देखिए। यह अशोक स्तंभ दस्तकारी का बेहतरीन नमूना है।

गाँधी आश्रम में रखा कुटिर उद्योग का सामान

गाँधी आश्रम में रखा कुटिर उद्योग का सामान

 कुटिर उद्योग को दिया जाता है बढ़ावा

महामंत्री अरविंद श्रीवास्तव कहते हैं कि गांधी आश्रम एक ऐसा प्लेटफार्म है जहां कुटिर उद्योग को बढ़ावा दिया जाता है। यहां बिकने वाली हर वस्तु चाहे वह दस्ताकरी का हो या शिल्पकारी का, सभी को गांधी आश्रम के खादी इंपोरियामों में रखा जाता है। क्योंकि गांधी जी ने कहा था ‘ भारत गांवों बसता है’, सो हम (गांधी आश्रम) ग्रामोद्योंगो प्रोत्साहित करते हैं और उनको बाजार उपलब्ध करवाते हैं। श्रीवास्तव कहते हैं की गांधी आश्रमों में क्रय-विक्रय की सारी प्रक्रिया नो लॉस-नो प्रॉफिट के पैटर्न पर होती है। यानी पूरी तरह से ‘दरिद्र नारायण’ की सेवा।

गाँधी आश्रम में रखा कुटिर उद्योग का सामान

गाँधी आश्रम में रखा कुटिर उद्योग का सामान

लकड़ी के खिलौनों से लेकर मिट्टी के बर्तन तक उपलब्ध

गांधी आश्रम के खादी इंपोरियम में लकड़ी के बने खिलौनों और अन्य सजावटी सामानों से लेकर मिट्टी के बने वर्तन भी मौजूद हैं। मिट्टी के इन वर्तनों की खनक ऐसी की कांसे के बर्तन भी शर्माजाएं। खादी इंपोरियम के प्रबंधक का कहना है कि लोगों में इन वस्तुओं के प्रति आकर्षण और जिज्ञासा बढ़ी है। वे कहते हैं कि गांधी आश्रमकों के मार्फत विकने वाली कुटिर उद्योग की वस्तुओं के निर्माण में लगे हजारों दस्तकारों, शिल्पकारों और कामगारों को रोजगार मिल रहा है। (ashok stambh)

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