
Chhath parwa 2021, प्रकृति के प्रति समर्पण का पर्व छठ पूजा # स्रोत : इंटरनेट मीडिया से साभार
सूर्य उपासना का पर्व छठ पूजा प्रकृति के प्रति समर्पण का पर्व है। छठ पर्व केवल बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश का न हो कर आज इसकी व्यापकता बढ़ी है। यानि बिहार और उत्तर प्रदेश के लोग जहां-जहां गए अपनी लोक संस्कृति और पर्व की थाती को साथ लेते गए।
कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि को मनया जाता है। छठ पर्व ही एक मात्र ऐसा पर्व है, जिसमें अस्त और उदय होते सूर्य को अर्घ्य दे कर व्रत शुरू और संपन्न किया जता है। इस वर्ष Chhath parwa 2021 दस अक्टूबर को पड़ रहा है। आइए जानते हैं कब और कैसे शुरू हुई छठी माई की पूजा-
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रिंयवंद नाम के एक राजा थे, उनकी कोई संतान नहीं थी। इससे वे बहुत दुखी रहते थे। एक दिन उन्होंने महर्षि कश्यप से अपने मन की व्यथा कह सुनाई। तब महर्षि कश्यप ने संतानोत्पत्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। इस दौरान यज्ञ में आहुति के लिए बनाई गई खीर राजा प्रियवंद की पत्नी मालिनी को खाने के लिए दी गई। यज्ञ के खीर के सेवन से रानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह मृत पैदा हुआ था। राजा प्रियवंद मृत पुत्र के शव को लेकर श्मशान पहुंचे और अपना प्राण त्याग लगे।
कथा के अनुसार उसी समय ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं। उन्होंने राजा प्रियवंद से कहा, मैं सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूं, इसलिए मेरा नाम षष्ठी भी है। तुम मेरी पूजा करो और लोगों में इसका प्रचार-प्रसार करो। माता षष्ठी के कहे अनुसार, राजा प्रियवंद ने पुत्र की कामना से माता का व्रत विधि विधान से किया, उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी थी। इसके फलस्वरुप राजा प्रियवद को पुत्र प्राप्त हुआ।
दूसरी कथा के अनुसार माता सीता ने भी भगवान श्री राम के साथ छठ पूजा की थी। श्री वाल्मीकि रामायण के अनुसार बिहार के मुंगेर में सीता चरण नाम का एक स्थान है। यहां माता सीता ने छह दिनों तक उपवास रख कर श्रीराम के साथ छठ पूजा की थी।
मान्यता है कि श्री राम जब 14 वर्ष वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ करने का फैसला लिया। इसके लिए मुग्दल ऋषि को आमंत्रण दिया गया था लेकिन मुग्दल ऋषि ने भगवान राम एवं सीता को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया। ऋषि की आज्ञा पर भगवान राम एवं सीता स्वयं यहां आए और उन्हें इसकी पूजा के बारे में बताया गया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता को गंगा जल छिड़क कर पवित्र किया एवं कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। यहीं रहकर माता सीता ने छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी।
महाभारत में सूर्य पूजा का उल्लेख है। सूर्य पुत्र कर्ण स्नान के बाद घंटों कम तक जल में खड़े रह कर सूर्य की उपसना करते थे। द्रोपदी ने पांडवों की रक्षा के लिए छठ की पूजा की थी।
छठ पूजा में इन वस्तुओं का करें प्रयोग
छठ पूजा के लिए बांस की टोकरी का प्रयोग किया जाता है। इस टोकरी को पहले धो लें। इसके बाद इसमें गंगाजल छिड़क लें। इस बांस की टोकरी में प्रसाद रख कर सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है।
प्रसाद के तौर पर गन्ना का भी काफी महत्व है। छठ पूजा में गन्ना का होना आवश्यक है। गन्ने पर कुमकुम लगाकर पूजा स्थल पर रखें। गुड़ और आटे से मिलकर बनने वाले ठेकुआ को छठ पर्व का प्रमुख प्रसाद माना जाता है। इसके अलावा चालव का छठ मैय्या को चावल के लड्डू भी चढ़ाए जाते हैं। इसके अलावा केले की पूरी घार चढ़ाई जाती है, जिस प्रसाद के तौर पर वितिरत किया जता है।
-समीर