Amritsar: अमृतसर पंजाब का सीमावर्ती जिला होने के साथ-साथ धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल भी है। यहां धर्म और इतिहास जुड़े कई ऐसे स्थल हैं जिन्हें आप देखना पसंद करेंगें। इन ऐतिहासिक स्थलों में भारत-पाक सीमा पर स्थित अटारी बार्डर है तो महाराजा रणजीत सिंह से संबंधित कई ऐतिहासिक स्थल भी।
अगर धर्म की बात करें तो Amritsar: अमृतसर को सिख धर्म का काबा भी कहा जाता है। यहां विश्व प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर है तो जलियांवाला बाग, पार्टिशन म्यूजियम और दुर्ग्याण टेंपल भी यहीं पर है। आइए हम आप को पर्यटन की इस शृंखला में अमृतसर के उन चार मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्हें आप अमृतसर आने पर देखने चाहेंगे।
दुर्ग्याणा तीर्थ
यह मंदिर हिंदू धर्म का सबसे बड़ा और आकर्षक मंदिर है। यह रेलवे स्टेशन के बैक साइड गोलबाग के पास स्थित है। दुर्ग्याणा मंदिर मुख्य रूप से भगवान लक्ष्मी नारायण को समर्पित है। यह भव्य मंदिर एक सरोवर के बीच बनाया गया है। स्वर्ण मंदिर भांति इस मंदिर के गुंबज पर भी सोनो के पतरे चढ़ाए गए हैं। मंदिर के दरवाजों पर भी चांदी के पतरे लगे हुई हैं।
दुर्ग्याणा मंदिर के आसपास प्राचीन मंदिरों का एक समूह है। मंदिर परिसर में ही माता शीतला और बड़ा हुनामन मंदर है। मता शीतला मंदिर में नवरात्रों भक्तों की भारी भीड़ होती है। वहीं बड़ा हनुमान मंदिर शारदीय नौरात्र के नौ दिनों में बच्चे लंगूर बन कर आते हैं और हनुमान जी का दर्शन-पूजन करते हैं।
दुर्ग्याणा मंदिर के बारे में बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण करीब सौ साल पहले पं: मदन मोहन मालवीय जी के परामर्श से किया गया था। सफेद संगेमरमर से बने इस मंदिर में वर्षभर पर्यटकों का आना लगा रहा है। यह हिंदू धर्म की आस्था का प्रमुख केंद्र है। मंदिर भक्तों और आगंतुकों के लिए दैनिक लंगर प्रदान करता है।
माता मंदिर या लाल देवी मंदिर
यह मंदिर रेलवे स्टेश के फ्रंट साइड की तरफ माडल टाउन क्षेत्र में पड़ता है। यहां तक पैदल, रिक्शा या आटो रिक्शा से भी पहुंच सकते हैं। यह मंदिर मुख्य रूप से माता दुर्गा को समर्पित है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण एक महिला लाल देवी ने करवाया था। माता लाल देवी की प्रतिमा के दर्शन मंदिर में प्रवेश करते ही होते हैं। इस मंदिर में सीसे की कारीगरी देखते ही बनती है।
माता लाल देवी मंदिर में विभिन्न देवी देवताओं के विग्रह तो स्थापित हैं ही। साथ ही मंदिर की उपरी मंजिल पर माता वैष्णो देवी की गुफा की तरह ही यहां वहीं माता का दरबार बनाया है। यहां तक पहुंचने की लिए कई सीढ़ियों और गुफाओं से हो कर जाना पड़ता। यह एक अलग तरह का रोमांच पैदा करता है। यहां वर्ष भर पर्यटकों का आना जाना लगा रहता है।
रामतीर्थ
यह मंदिर मुख्य रूप से महर्षि वाल्मिकी जी को समर्पित है। यह मंदिर अमृतसर से करीब 12 किमी: की दूरी पर अमृतसर-लोपोके मार्ग पर पड़ता है। यहां कार्तिक पूर्णिमा के दिन मेला लगता है जो तीन दिन तक चलता है। यहां लव-कुश और माता सीता मंदिर है। इसके अलावा यहां पर अलग-अलग देवी देवताओं के मंदिरों का समूह है। यह मंदिर भी एक सरोवर के बीच स्थापित है। स्वर्णिम आभा लिए यह मंदिर दूर से ही पर्यटकों को आकर्षित करता है।
मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां माता सीता ने परित्यकता का जीवन यही पर व्यतीत किया था। पहले यह स्थल निर्जन वन था। इसी वन में महर्षि वाल्मिकी जी का आश्रम था। इसी आश्रम में माता सीता को आश्रय प्राप्त हुआ था और यहीं पर उन्होंने लव और कुश नाम के दो बालकों को जन्म दिया था।
शिवाला बागभाइयां
जैसा कि नाम से स्पष्ट है। यह शिवाला मुख्य रूप से भगवान शिव को समिर्पत है। अमृसर बस स्टैंड से करीब एक किमी: की दूरी पर स्थित इस मंदिर तक पैदल या निजी वाहनों से पहुंच सकते हैं। इस मंदिर के शिखर पर भी सोने के पतरे चढ़ाए गए हैं। बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण उत्तर प्रदेश के दो लोगों ने मिलकर करवाया था।
एक अन्य मान्यता के अनुसार भारत-पाकिस्तान बटवारे के समय पाकिस्तान से आया कोई हिंदू परिवार ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। बहरहाल यहां महाशिवरात्रि के दिन भक्तों की लंबी-लंबी कतारें लगी होती है। साथ ही मेले का आयोजन भी किया जाता है। इस मंदिर पर लगी पवनांदोलित धर्म ध्वजा आगंतुकों को सहज ही आकर्षित करती है।