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History of Maharaja Ranjit Singh : महाराजा रणजीत सिंह ने बनवाया था शिव मंदिर; नहीं होती पूजा, सूख गया तालाब भी

Shiva temple was built by Maharaja Ranjit Singh; There is no worship, even the pond has dried up

गांव धनोआ कलां में महाराजा रणजीत सिंह की ओर से बनवाया गया शिव मंदिर

अमृतसर । गुरु नगरी से नाम से प्रसिद्ध अमृतसर से करीब 35 किमी: की दूरी पर अमृतसर- लाहौर मार्ग पर अंतरराष्ट्रीय अटारी बार्डर पर पाकिस्तान (Pakistan) की सीमा से सटे धनोआ खुर्द और धनोआ कलां नाम के दो गांव स्थित है। इन्हीं में से धनोआ कलां में महाराजा रणजीत सिंह द्वारा निर्मित एक भव्य तालाब और शिव मंदिर स्थित है। यह स्थान सिख इतिहास के विरासत को संभाले हुए है। जिसे इतिहास में पुल कंजरी के नाम से जाना जाता है।

कहा जाता है कि लाहौर से अमृतसर आते और अमृतसर से लाहौर जाते समय महाराजा रणजीत सिंह (Mharaja Ranjit Singh ) का सैन्य पड़ाव लगता था और यहां सैनिक यात्रा के समय विश्राम करते थे। उस समय पुल कंजरी एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र भी होता था। यहां महाराजा रणजीत सिंह (Mharaja Ranjit Singh ) ने एक भव्य तालाब खुदवाया था और इसी तालाब के किनारे एक शानदार शिव मंदिर भी बनवाया था जो उनके धर्म प्रेमी होने का प्रमाण देता है।

दरक रही है मंदिर की छत, शिवलिंग को है गंगाजल का इंतजार

बात करें इस ऐतिहासिक शिव मंदिर का तो इसका निर्माण सन 1801 – 1839 के बीच शेर-ए-पंजाब के नाम से प्रसिद्ध महाराजा रणजीत सिंह ने करवाया था। इस मंदिर की दिवारों पर बनी विभिन्न देवी देवताओं की पेंटिंग इसकी भव्यता की कहानी कह रही हैं। इन भितिचित्रों में श्री राम दरबार, अंगद-रावण संवाद, समुद्र मंथन, रासलीला सहित अन्य पौराणिक कथाओं पर आधारित चित्र प्रमुख हैं।
मंदिर में मध्य भाग में एक मशरूम के आकार का लाल पत्थर प्रतिष्ठापित है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह मंदिर में प्रतिष्ठापित शिवलिंग हैं। इसके सामने एक छोटे से कुंड की आकृति है। लेकिन विडंवना है कि सिख साम्राज्य के इतिहास को समेटे हुए इस शिवलिंग पर न तो कोई गंगाजल चढ़ाने आता है और ना ही कोई पूजा अर्चना करने।

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मिट रहे हैं पौराणिक चित्र पर संभालने वाला कोई नहीं

समय की मार सहते हुए यह शिवमंदिर अपनी अतीत की कहानी बड़ी खूबसूरती के साथ बयां कर रहा है। अष्ट कोणीय इस शिव मंदिर की बाहरी एवं भीतरी दिवारों पर बड़ी बारीके के साथ उकेरी गई पौराणिक कथाएं चित्रकार की चित्रकारी का बखान तो करती हैं, लेकिन उपेक्षा के कारण विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी इस चित्रकारी को संभालने की जरूरत है, ताकि सिख इतिहास का सुनहरा पन्ना संरक्षित हो सके।

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कैसे नाम पड़ा पुल कंजरी

कहा जाता है कि महाराजा रणजीत सिंह का दिन एक नाचने वाली गुलबहार पर आ गया। गुलबहार अमृतसर की रहने वाली थी और जाति से मुसल्मान थी। चुकी गुलबहार से शादी के बाद महाराजा रणजीत सिंह अपने लाव लस्कर और गुलबहार के साथ लाहौर जा रहे थे। इस रास्ते में एक छोटी सी नहर पड़ती थी जिसे पार करके जाना पड़ता था, लेकिन गुलबाहर ने नहर पार करने से इनकार कर दिया। इसके बाद महाराजा रणजीत सिंह ने इस नहर पर एक पुल बनवाया जिसे लोग पुल कंजरी के नाम से जानते हैं।

यहीं पर महाराजा राणजीत सिंह ने एक सरोवर खुदवाया और भव्य शिवमंदिर का निर्माण करवाया। कहा जाता है कि इसके साथ महाराजा ने एक गुरुद्वारा और मस्जिद का निर्माण भी करवाया था। हलांकि पाकिस्तान की सरहद बसे धनोआ कलां में यह ऐतिहासिक स्थल मौजूद है।

 








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