जब संपूर्ण धरती पर ही प्राचीनकाल में सिर्फ हिन्दू ही एकमात्र धर्म था तो इसके प्रचार-प्रसार का क्या मतलब? जब सभी हिन्दू हैं तो किसके बीच और क्यों प्रचार करें? निश्चित ही प्रचार के दो उद्देश्य होते हैं पहला यह कि खुद के ही धर्मानुयायियों के बीच धर्म को दृढ़ रूप में स्थापित करना, धर्म के नियमों को समझाना और दूसरा यह कि दूसरे धर्म के लोगों को अपने धर्म में धर्मान्तरित करना। चूंकि उस काल में दूसरा धर्म होता ही नहीं था और किसी को धर्मान्तरित करने जैसा कोई विचार नहीं था तो निश्चित ही हिन्दुओं ने कभी यह चिंता नहीं की कि धर्म का प्रचार-प्रसार भी करना चाहिए। फिर भी इतिहास को जान लेते हैं। भगवान शिव के सात शिष्यों ने इस (वैदिक, शैव, वैष्णव या कुछ भी कहें मूलत: मोक्ष की शिक्षा का धर्म) धर्म की एक शाखा को विश्व के कोने-कोने में फैलाया था। अग्नि, वायु, आदित्य, अंगिरा, अथर्वा, वशिष्ठ, विश्वामित्र, भारद्वाज, मरीचि, कश्यप, अत्रि, भृगु, गर्ग, अगस्त्य, वामदेव, शौनक, अष्टावक्र, याज्ञवल्क्य, कात्यायन, ऐतरेय, कपिल, जेमिनी, नारद, विश्वकर्मा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, जमदग्नि, गौतम, मनु, बृहस्पति, उशनस (शुक्राचार्य), विशालाक्ष, पराशर, पिशुन, कौणपदंत, वातव्याधि और बहुदंती पुत्र आदि ऋषियों ने वैदिक ज्ञान की रोशनी को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया।
प्रारंभिक जातियां सुर (देवता) और असुर (दैत्य) दोनों ही वेदों के ज्ञान को मानती थीं। एक ही ज्ञान की यह दो धाराएं इंद्र और विरोचन से स्पष्ट होती गईं। दरअसल, हिन्दू धर्म की कहानी जम्बूद्वीप के इतिहास से शुरू होती है। इसमें भारतवर्ष जम्बूद्वीप के नौ खंडों में से एक खंड है। भारतवर्ष के इतिहास को ही हिन्दू धर्म का इतिहास नहीं समझना चाहिए। प्राचीनकाल में अफ्रीका और दक्षिण भारत के अधिकतर हिस्से जल में डूबे हुए थे। जल हटा तो यहां जंगल और जंगली जानवरों का विस्तार हुआ। यहीं से निकलकर व्यक्ति सुरक्षित स्थानों और मैदानी इलाकों में रहने लगा। यह स्थान उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के बीचोबीच था जिसे आज हम अलग-अलग नामों से पुकारते हैं। यह क्षेत्र दक्षिणवर्ती हिमालय के भूटान से लेकर हिन्दूकुश पर्वत के पार इसराइल तक था।
इस बीच कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान, तुर्की, सीरिया, इराक, स्पेन आदि सभी जगहों पर हिन्दू धर्म से जुड़े साक्ष्य पाए गए हैं। विद्वानों के अनुसार अरब की यजीदी, सबाइन, सबा, कुरैश आदि कई जातियों का प्राचीन धर्म& हिन्दू ही था। निष्क्रिमण: के दौरान वंश और उनके देवता पर आधारित नाम होते गए। प्रारंभ में प्राचीन मानव ने प्राचीनकाल में जलप्रलय और बर्फ से बचने के लिए ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों और गुफाओं और सुरक्षित मैदानों को अपने रहने का स्थान बनाया। इसमें पामीर, तिब्बत और मालवा के पठारों की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही। सभ्यताओं के विकास क्रम में सिल्क रूट तो बहुत बाद में बना। प्राचीन और प्रारंभिक मानव हिमालय के राज्य और देशों में ही रहता था। दुनिया के सभी धर्मों में कश्मीर के ऊपरी क्षेत्र को स्वर्ग कहा गया है।
‘जम्बूद्वीप: समस्तानामेतेषां मध्य संस्थित:,
भारतं प्रथमं वर्षं तत: किंपुरुषं स्मृतम्,
हरिवर्षं तथैवान्यन्मेरोर्दक्षिणतो द्विज।
रम्यकं चोत्तरं वर्षं तस्यैवानुहिरण्यम्,
उत्तरा: कुरवश्चैव यथा वै भारतं तथा।
नव साहस्त्रमेकैकमेतेषां द्विजसत्तम्,
इलावृतं च तन्मध्ये सौवर्णो मेरुरुच्छित:।
भद्राश्चं पूर्वतो मेरो: केतुमालं च पश्चिमे।
एकादश शतायामा: पादपागिरिकेतव: जंबूद्वीपस्य सांजबूर्नाम हेतुर्महामुने। -(विष्णुपुराण)
पुराणों और वेदों के अनुसार धरती के सात द्वीप थे- जम्बू, प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौंच, शाक एवं पुष्कर। इसमें से जम्बू द्वीप सभी के बीचोबीच स्थित है। जम्बू द्वीप को बाहर से लाख योजन वाले खारे पानी के वलयाकार समुद्र ने चारों ओर से घेरा हुआ है। जम्बू द्वीप का विस्तार एक लाख योजन है। जम्बू (जामुन) नामक वृक्ष की इस द्वीप पर अधिकता के कारण इस द्वीप का नाम जम्बू द्वीप रखा गया था।
रशिया से श्रीलंका और इसराइल से चीन तक फैला जम्बूद्वीप : इलावृत, भद्राश्व, किंपुरुष, भारत, हरि, केतुमाल, रम्यक, कुरु और हिरण्यमय। इनमें भारतवर्ष ही मृत्युलोक है, शेष देवलोक हैं। इसके चतुर्दिक लवण सागर है। इस संपूर्ण 9 खंडों में इसराइल से चीन और रूस से भारतवर्ष का क्षेत्र आता है। जम्बू द्वीप में प्रमुख रूप से 6 पर्वत हैं- हिमवान, हेमकूट, निषध, नील, श्वेत और श्रृंगवान।
भारत बना हिन्दुस्तान : पहले संपूर्ण हिन्दू धर्म कई जातियों में विभाजित होकर जम्बू द्वीप पर शासन करता था। अग्नीन्ध्र उसके राजा थे। फिर उसका शासन घटकर भारतवर्ष तक सीमित हो गया। फिर कुरुओं और पुरुओं की लड़ाई के बाद आर्यावर्त नामक एक नए क्षेत्र का जन्म हुआ जिसमें आज के हिन्दुस्थान के कुछ हिस्से, संपूर्ण पाकिस्तान और संपूर्ण अफगानिस्तान का क्षेत्र था। लेकिन लगातार आक्रमण, धर्मांतरण और युद्ध के चलते अब घटते-घटते सिर्फ हिन्दुस्तान बचा है।
यह कहना सही नहीं होगा कि पहले हिन्दुस्थान का नाम भारतवर्ष था और उसके भी पूर्व जम्बू द्वीप था। कहना यह चाहिए कि आज जिसका नाम हिन्दुस्तान है, वह भारतवर्ष का एक टुकड़ा मात्र है। जिसे आर्यावर्त कहते हैं वह भी भारतवर्ष का एक हिस्साभर है और जिसे भारतवर्ष कहते हैं वह तो जम्बूद्वीप का एक हिस्सा मात्र है। जम्बूद्वीप में पहले देव-असुर और फिर बहुत बाद में कुरुवंश और पुरुवंश की लड़ाई और विचारधाराओं के टकराव के चलते यह जम्बूद्वीप कई भागों में बंटता चला गया।
भारतवर्ष का वर्णन : समुद्र के उत्तर तथा हिमालय के दक्षिण में भारतवर्ष स्थित है। इसका विस्तार 9 हजार योजन है। यह स्वर्ग अपवर्ग प्राप्त कराने वाली कर्मभूमि है।
इसमें 7 कुल पर्वत हैं : महेन्द्र, मलय, सह्य, शुक्तिमान, ऋक्ष, विंध्य और पारियात्र।
भारतवर्ष के 9 खंड : इन्द्रद्वीप, कसेरु, ताम्रपर्ण, गभस्तिमान, नागद्वीप, सौम्य, गंधर्व और वारुण तथा यह समुद्र से घिरा हुआ द्वीप उनमें नौवां है।
मुख्य नदियां : शतद्रू, चन्द्रभागा, वेद, स्मृति, नर्मदा, सुरसा, तापी, पयोष्णी, निर्विन्ध्या, गोदावरी, भीमरथी, कृष्णवेणी, कृतमाला, ताम्रपर्णी, त्रिसामा, आर्यकुल्या, ऋषिकुल्या, कुमारी आदि नदियां जिनकी सहस्रों शाखाएं और उपनदियां हैं।
तट के निवासी : इन नदियों के तटों पर कुरु, पांचाल, पुण्ड्र, कलिंग, मगध, दक्षिणात्य, अपरान्तदेशवासी, सौराष्ट्रगण, तहा शूर, आभीर एवं अर्बुदगण, कारूष, मालव, पारियात्र, सौवीर, सन्धव, हूण, शाल्व, कोशल, मद्र, आराम, अम्बष्ठ और पारसीगण रहते हैं। इसके पूर्वी भाग में किरात और पश्चिमी भाग में यवन बसे हुए हैं।
किसने बसाया भारतवर्ष : त्रेतायुग में अर्थात भगवान राम के काल के हजारों वर्ष पूर्व प्रथम मनु स्वायम्भुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने इस भारतवर्ष को बसाया था, तब इसका नाम कुछ और था। ऋग्वेद में भरतों की लड़ाई का वर्णन मिलता है जिसे प्राचीन भारत का दसराज्य या दशराज्ञ युद्ध कहा जाता है।
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जम्बूद्वीप के शासक : वायु पुराण के अनुसार महाराज प्रियव्रत का अपना कोई पुत्र नहीं था तो उन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद ले लिया था जिसका लड़का नाभि था। नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम ऋषभ था। इसी ऋषभ के पुत्र भरत थे तथा इन्हीं भरत के नाम पर इस देश का नाम ‘भारतवर्ष’ पड़ा। हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि राम के कुल में पूर्व में जो भरत हुए उनके नाम पर भारतवर्ष नाम पड़ा। यहां बता दें कि पुरुवंश के राजा दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत के नाम पर भारतवर्ष नहीं पड़ा।
इस भूमि का चयन करने का कारण था कि प्राचीनकाल में जम्बूद्वीप ही एकमात्र ऐसा द्वीप था, जहां रहने के लिए उचित वातावरण था और उसमें भी भारतवर्ष की जलवायु सबसे उत्तम थी। यहीं विवस्ता नदी के पास स्वायम्भुव मनु और उनकी पत्नी शतरूपा निवास करते थे।
राजा प्रियव्रत ने अपनी पुत्री के 10 पुत्रों में से 7 को संपूर्ण धरती के 7 महाद्वीपों का राजा बना दिया था और अग्नीन्ध्र को जम्बू द्वीप का राजा बना दिया था। इस प्रकार राजा भरत ने जो क्षेत्र अपने पुत्र सुमति को दिया, वह भारतवर्ष कहलाया। भारतवर्ष अर्थात भरत राजा का क्षेत्र। यहीं पर भरतों की लड़ाई उनके ही कुल के अन्य समुदाय से हुई थी जिसे दशराज्ञ के युद्ध के नाम से जाना जाता है जिसका वर्णन वेदों में है।
सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं नृपम्।।
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य किम्पुरूषोअनुज:।।
नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत। (वायु 31-37, 38)
जब भी मुंडन, विवाह आदि मंगल कार्यों में मंत्र पढ़े जाते हैं, तो उसमें संकल्प की शुरुआत में इसका जिक्र आता है- ।।जम्बू द्वीपे भारतखंडे आर्याव्रत देशांतर्गते… अमुक…।।
* इनमें जम्बू द्वीप आज के यूरेशिया के लिए प्रयुक्त किया गया है। इस जम्बू द्वीप में भारत खंड अर्थात भरत का क्षेत्र अर्थात ‘भारतवर्ष’ स्थित है, जो कि आर्यावर्त कहलाता है।
।।हिमालयं दक्षिणं वर्षं भरताय न्यवेदयत्। तस्मात् तत् भारतं वर्ष तस्य नाम्ना विदुर्बुधा:…..।।
* हिमालय पर्वत से दक्षिण का वर्ष अर्थात क्षेत्र भारतवर्ष है।
जम्बूद्वीप का विस्तार
* जम्बूद्वीप : संपूर्ण एशिया
आर्यावर्त : बहुत से लोग भारतवर्ष को ही आर्यावर्त मानते हैं जबकि यह भारत का एक हिस्सा मात्र था। वेदों में उत्तरी भारत को आर्यावर्त कहा गया है। आर्यावर्त का अर्थ आर्यों का निवास स्थान। आर्यभूमि का विस्तार काबुल की कुंभा नदी से भारत की गंगा नदी तक था, हालांकि हर काल में आर्यावर्त का क्षेत्रफल अलग-अलग रहा।