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15 अगस्‍त 1947: भारत विभाजन का विष पिया, दस साल मजदूरी की, फिर पहुंचे डिप्टी स्पीकर के पद तक

15 अगस्‍त 1947 !   यह वह घड़ी थी जब देश को संपूर्ण रूप से अंग्रेजों की दासता से मुक्ति मिली थी  लेकिन, आजादी के अमृत के साथ ही देश विभाजन का वह गरल (विष) मिला जिससे  आज भी हम कराह रहे हैं।  धर्म के आधार पर किए गए इस  विभाजन को को ना तो तब सही ठहरया गया था और ना ही आज इसे जाय कहा जा सकता है।

यह हम नहीं कह रहे हैं।  बल्कि,  यह शब्‍द उन लोगों के हैं जिन्‍होंने मुल्‍क की आजादी के जश्‍न के साथ-साथ मजहबी उन्‍माद का दंश झेला है और इसे देखा है।  बेशक,  भारत के पश्चिमी छोर से विस्‍थापित हो कर पाकिस्‍तान बनने के बाद भारत आए। कुछ यही हाल सरहद के इस पार भी रहा। जो यहां सबकुछ छोड़ कर एक नए मुल्‍क पाकिस्‍तान चले गए।  इस विभाजन का दर्द, कत्‍ल-ओ-गारद पंजाब और बंगाल ने बहुत करीब से देखा और झेला है।
आज हम पंजाब के इसी सरहदी जिला अमृतसर के एक ऐसे व्यक्ति की जो दास्‍तान है, जिन्‍हों ने मुल्‍क के आजाद होने का जश्‍न भी मनाया तो विस्‍थापन का दर्द भी झेला। वह हैं पूर्व शिक्षा मंत्री और पंजाब सरकार ने डिप्टी स्पीकर रह चुके प्रो: दरबारी लाल की।
प्रखर कांग्रेसी, अमृतसर सेंट्रल से कई बार विधायक और पूर्व डिप्‍टी स्‍पीकर रहे प्रो: दरबारी लाल का परिवार भी 1947 में देश विभाजन के बाद पश्चिमी पंजाब के जिला गुजरात से अमृतसर चला आया था।  प्रो: लाल कहते हैं कि उनका जन्‍म अविभाजित भारत के जिला गुजरात के गांव गोलेकी में हुआ था।  1945 में उनके वालिद ने गांव के मदरसे में दाखिला दिलवा दिया था, जहां उनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई। इसके बाद आगे की पढ़ाई उन्होंने अमृतसर से की।

प्रो: दरबारी लाल कहते हैं कि जब देश का बंटवारा हुआ था तो उस वखत उनकी उम्र को कोई दस साल रही होगी। हमारा परिवार भी अविभाजित पंजाब के जिला गुजरात से अमृतसर आया था।  उन्‍हें वो दिन आज भी याद है। जब पाकिस्‍तान से आने वाली रेलगाडि़यां लाशों से भरी होती थी।  मजबही उन्‍माद तो इनता कि उसे याद कर आज सिहरन पैदा हो जाती है। वे कहते हैं कि 1946 में ही भारत पाकिस्‍तान की मांग जोर पड़ने लगी थी।  उस टाइम गांवों में किसी-किसी के पास रेडियो होता था।  अखबार में ऊर्दू में आते थे।

15 अगस्‍त को मुल्‍क के आजाद होने की खबर मिलती थी। इससे गांवों में खुशी का माहौल था। हर कोई खुश था कि अंग्रेज चले जाएंगे। इसी बीच नया मुल्‍क पाकिस्‍तान बनने की खबर आई। यह भी सुनने में आया कि यहां केवल मुस्‍लमान ही रहेंगे।  हिंदुओं के लिए हिदुस्‍तान है।

हमारा खुद का शेलर था और हम गांव के जमींदार थे

प्रो: दरबारी लाल कहते हैं कि गांव में हमारी जमीन बहुत थी। अपनी हवेली थी। हमारा परिवार गांव जमींदार था।   दो शेलर थीं और अच्‍छा खासा कारोबार था।  पाकिस्‍तान बनने की घोषणा हो चुकी थी।  हमारा परिवार इसी असमंजस में था कि पुरखों की माटी को छोड़ कर सरहद के उसर पार कैसे जाया जाए।  गांव में हिंदू-मुस्‍लमान दोनों थे।  गांव के मुस्‍लमान हिदुओं को जाने नहीं देना चाह रहे थे। इसी बीच महीने बाद खबर आई कि चिनाव दरिया के किनारे बसे हिदुओं का कत्‍ल-ए-आम शुरू हो गया है।  यह खबर भी हमारे पिता जी के दोस्‍त करीम खान चिश्‍ती ने दी।

गांव गोलेकी में छोड़ आए हवेली और कारोबार

पूर्व डिप्टी स्पीकर प्रो: दरबारी लाल थोड़ी गहरी सांस लेते हैं।  फिर कहते हैं मुझे पूरी तरह याद है 1948 में जनवरी का महीना रहा होगा।  ठंड पड़ रही थी।  परिवार ने फैसला किया कि जिंदा रहना है तो हमें हिंदुस्‍तान जाना ही होगा।  फिर हमारा परिवार जिसमें कुल 11 सदस्‍य थे।  जिसमें हम, हमारा भाई, पिता जी, चाचा और बहनें थी।  गांव में दस हजार गज की पक्‍की हवेली, जमीन और कारोबार छोड़ कर कुछ जरूरत का सामान और जेवर और जो रुपये घर में रखे थे लेकर चल पड़े।  पहले घोड़ा गाड़ी से गांव से जिला गुजरात पहुंचे।  यहां एक दिन रुकने के बाद गुजरां वाला और फिर लाहौर पहुंचे।  यहां एक दिन और एक रात रुकने के बाद गोरखा पल्‍टन (फौज) ने हमारे परिवार और अन्‍य विस्‍थापितों को अमृतसर के हालगेट तक पहुंचाया।

हालगेट में जमीन पर पड़े थे हजारों शरणार्थी

प्रो: दरबारी लाल कहते हैं , जब फौज की गाड़ी उन्‍हें अमृतसर के हाल गेट में छोड़ कर गई तो यहां मंजर ही कुछ और था।  कोई रो रहा था तो कोई अपनो को तलाश रहा था।  किसी के बाजू पर गहरे घाव थे तो किसी के पैरों में छाले पड़े थे।  ऐसा मंजर उन्‍होंने पहली बार देखा था।  वो कहते हैं कि अमृतसर के खालसा कॉलेज, हिंदू सभा कॉलेज, पीबीएन स्‍कूल सहित अन्‍य धर्मशालाओं और स्‍कूलों में ठहराया गया था।

मजदूरी भी करनी पड़ी थी हमें

पूर्व डिप्‍टी स्‍पीकर दरबारी लाल कहते हैं कि जिस पश्चिमी पंजाब के गावं गोलेकी में हमारे परिवार को लोग जमिंदारा कह कर बुलाते थे उसी परिवार को देश विभाजन के बाद शुरूआत के दिनों में मजदूरी करनी पड़ी थी।  कुछ दिन धर्मशाला में रहे फिर एक कमरे का घर मिला। जो शहर के मोरीगंज में था। वह मकान भी ऐसा था कि एक घंटे की बरसात में तीन घंटे छत से पानी टपकता था। बाद में पता चला कि जलियांवाला बाग हत्या कांड के समय निकाले गए रामनौमी के जलूस का नेतृत्व करने वाले डा: हाफिज मोहम्मद बशीर का था जो बिभाजन में पाकिस्तान चला गया।

दस साल तक जीए मुफलिसी की जिंदगी

पूर्व शिक्षामंत्री और डिप्टी स्पीकर रहे प्रो: दरबारी लाल कहते हैं कि उनका परिवार दस साल तक मुफलिसी की जिंदगी जीता रहा। फिर जीवन की गाड़ी धीरे-धीरे पटरी पर आने लगी।  इसी दौरान हमने स्नातकोत्तर तक की शिक्षा भी पूरी और 1967 में इतिहास के प्रोफेशर बने।  पहले मॉडर्न कालेज और फिर डीएवी कॉलेज में अध्यापन किया। कई किताबें लिखी।

1977 में लड़ा पहला चुनाव

प्रो: दरबारी लाल कहते हैं कि उन्होंने 1977 में पहला विधान सभा चुनाव लड़ा। इसके साथ ही पंजाब की राजनीति में पदार्पण हुआ। इसके बाद उन्होंने 1980, 1985 और 2002 में चुनाव लड़ा।  इस दौरान वह पंजाब के शिक्षा मंत्री और फिर डिप्टी स्पीकर भी बने।

प्लाइवुड का कारखाना स्थापित किया

प्रो: दरबारी लाल कहते हैं एक आने की मजदूरी करने वाला व्यक्ति गरीबों दर्द जानता है। क्योंकि हम और हमारे पिरवार ने गांव की जमींदारी छोड़ कर फिर से नए सिरे से दोबारा जिंदगी शुरू की थी।  जीवन के तमाम झंझवातों को झेलते हुए हमने अपनी अलग पहचान बनाई। खुद का प्लाइवुड का कारखाना स्थापित किया और सैकड़ों लोगों को राजगार दिया। यह बाद दिगर है कि कतिपय कारणों से आज कारखान बंद है।

दो कमरों के मकान से कोठी तक पहुंचा

दरबारी लाल कहते हैं कि पाकिस्तान में अपना सब कुछ छोड़ कर आने के दो साल बाद बाद हमें दो कमरों का मकान मिला। हमारे परिवार ने ताम परेशानियां झेली फिर भी हिम्मत नहीं हारी। आज अमृतसर के ग्रीन एवेन्यू में हमारी अपनी कोठी है।  और सबसे बड़ी बात, फुटपाथ पर रहने वाला इस व्यक्ति की खुद की पहचान है।







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