Janmastmi 2023: भगवान श्री कृष्ण के अधरों से लगी बांसुरी वाली मनमोहक छवि युगों-युगों से भक्तों का मन मोह रही है। यानि यूं कहिए कि बांसुरी के बिना कान्हा की कल्पना भी अधुरी लगती है। हालांकि बहुत कम लोग ही यह जानते होंगे कि कान्हा को यह बांसुरी किसने दी थी। आज हम आपको श्री कृष्ण जन्माष्टमी के इस पावन पर्व पर इस बांसुरी के बारे में बताएंगे।
मान्यता है कि द्वापर युग में जब भगवान श्री हरि विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया तो उन्हें देखने के लिए देवी-देवता अलग-अलग भेष बदलकर धरती पर आने लगे। ऐसे में भगवान शिव भी श्रीकृष्ण के बाल रूप को देखने के लिए आतुर हो उठे। लेकिन, उनके मन में एक सवाल उठा कि वह कान्हा को क्या उपहार ले कर जाएं जो उन्हें काफी प्रीय लगे और हमेशा उनके साथ रहे।
काफी सोच बिचार के बाद उन्हें ख्याल आया कि उनके पास ऋषि दधीचि की महाशक्तिशाली हड्डी पड़ी है। इसके बाद शिव का मन पुलकित हो उठा और उन्होंने बिना देर किए उस हड्डी को घिसकर एक सुंदर बांसुरी बना ली। इसके बाद भगवान शिव उस बांसुरी को लेकर गोकुल पहुंचे और उन्होंने कान्हा के बाल रूप दर्शन किए। इस दौरान भगवान शिव ने कान्हा को यह बांसुरी भेंट में दी।
बता दें कि ऋषि दधीचि की यह वह हड्डी थी जिससे भगवान विश्वकर्मा ने तीन धनुष का निर्माण किया था। ये धनुष थे- पिनाक, गांडीव और शारंग। इसके बाद व्रज का निर्माण भी ऋषि दधीचि की हड्डियों से ही किया गया था।