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Kinnar Kailash, किन्नर कैलाश, दुर्गम यात्रा, अनोखी है दास्तान, दिन में कई बार रंग बदलता है शिवलिंग

Kinnar Kailash, inaccessible journey, the story is unique, Shivling changes color many times a day

झरोखा डेस्क । Kinnar Kailash :  वैसे तो कैलाश मानसरोवर और अमरनाथ यात्रा से हर कोई सनातनी वाकिफ लेकिन किन्नर कैलाश का नाम बहुत कम लोगों ने सुना होगा। बहुत ये शिवभक्त ऐसे भी होंगे जो किन्नर कैलाश का नाम पहली बार सुन रहे होंगे। अमरनाथ यात्रा की तरह ही किन्नर कैलाश की यात्रा भी सावन के महीने में शुरू होती है।

कैलाश मानसरोवर की तरह तो नहीं, लेकिन किन्नर कैलाश की यात्रा भी कुछ दुर्गम यात्रों में मानी जाती है। किन्नर कैलाश की यात्रा भी कैलाश मानसरोवर और अमरनाथ यात्रा की तरह ही पहाड़ों के टेढ़े मेढ़े रास्तों को तय करते हुए किन्नर कैलाश तक पहुंचा जाता है। तिब्बत स्थित कैलाश मानसरोवर के बाद हिमाचल प्रदेश में स्थित किन्नर कैलाश को ही दूसरा सबसे बड़ा कैलाश पर्वत माना जाता है। हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में तिब्बत की सीमा पर स्थित किन्नर कैलाश के बारे में कई धार्मिक और लोक मान्यताएं प्रचलित हैं।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महाभारत काल में किन्नर कैलाश का नाम इन्द्रकीलपर्वत था। कहा जाता है कि इसी इन्द्रकीलपर्वत पर भगवान शिव और अर्जुन का युद्ध हुआ था। सावन का महीना शुरू होते ही किन्नर कैलाश के दर्शनों के लिए शिवभक्तों का सैलबा उमड़ पड़ता है। किन्नर कैलाश की यह यात्रा पूरे एक माह यानी सावन भर चलती है। यहां स्थानीय लोगों के अलादेश देश के कोने कोने से शिवभक्त किन्नर कैलाश के दर्शनकों के लिए उमड़ पड़ते हैं। किन्नर कैलाश की यात्रा को हिमाचल प्रदेश की सबसे खतरनाक जगहों में से एक कहा जाता है।

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ब्रह्म कमल के फूलों के भी होते हैं दर्शन

हिंदू और बौद्ध धर्म के लोगों की आस्था का केंद्र किन्नर कैलाश की यात्रा दुरूह तो है ही साथ ही रोमांच से भरी हुई है। किन्नर कैलाश के दर्शनों के लिए आने वाले शिव भक्तों को प्राकृतिक रूप से खिले ब्रह्म कमल के दर्शन होते हैं। ब्रह्म कमल उत्तर प्रदेश का राजकीय पुष्प भी है। किन्नर कैलाश की यात्रा हर वर्ष जुलाई व अगस्त शुरू होती है। समुद्र तल से 24 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित किन्नर कैलाश की यात्रा किन्नौर जिला मुख्यालय से करीब आठ किमी: दूर स्थित पोवारी से सतलुज दरिया पार कर तंगलिंग गांव से शुरू करनी पड़ती है।

24 घंटे की चढ़ाई के बाद किन्नर कैलाश के होते हैं दर्शन

किन्नर कैलाश से पहले गणेश पार्क से करीब पाच सौ मीटर की दूरी पर पार्वती कुंड है। इस कुंड में शिव भक्त सिक्का डालते है। इसके पीछे मान्यता है कि इस कुंड में सिक्का डालने से भक्तों की मुराद पूरी होती है। शिवभक्त इसी पार्वती कुंड में स्नान कर करीब 24 घंटे की चढ़ाई के बाद किन्नर कैलाश पहुंचते हैं और पवित्र शिवलिंग के दर्शन करते हैं।

24000 फीट की ऊंचाई पर स्थित किन्नर कैलाश तक आम लोगों के आने जाने पर पाबंदी थी। लेकिन 1993 में इसे श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए खोल दिया गया। किन्नर कैलाश में 40 फीट ऊंचे शिवलिंग के दर्शन होते हैं। किन्नर कैलाश हिंदू और बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए पूजनीय स्थल है।

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Kinnar Kailash में ही अर्जुन को मिला था पासुपातास्त्र

कहा जाता है कि किन्नर कैलाश में ही भगवान शिव और अर्जुन के बीच युद्ध हुआ था। उस समय इस पर्वत का नाम इन्द्रकीलपर्वत था। यहीं पर भगवान शिव ने प्रसन्न हो कर अर्जुन को पासुपातास्त्र प्रदान किया था। किन्नर कैलाश को वाणासुर का कैलाश भी कहा जाता है। यह भी कहा जाता है कि बनवास का अंतिम समय पांडवों ने किन्नर कैलाश में ही बिताया था।

दिन में चार बार रंग बदलता है किन्नर कैलाश का शिवलिंग

किन्नर कैलाश में प्रतिष्ठापित शिवलिंग के बारे में जो सबसे रहस्यपूर्ण है वह है, शिवलिंग का दिन में तीन बार रंग बदलना। शिव भक्तों का दावा है कि किन्नर कैलाश स्थित शिवलिंग दिन में कई बार रंग बदलता है। ब्रह्म मुहुर्त यानी सूर्योदय से से पहले सफेद, सूर्योदय होने पर पीला और दोपहर में लाल और शाम का काले रंग का होता जाता है। शिवलिंग के बदलते इस रंगों का रहस्य आज तक कोई नहीं जान पाया है। हालांकि कुछ जानकारों का मानना है कि शिवलिंग का रंग दिन चढ़ने और ढलने के साथ शिवलिंग पर पड़ने वाली सूर्य की किरणों के बदलते कोणों के वजह से दिन में कई बार बदलता है।








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