अल्लसह की इबादत के लिए नमाज आवश्यक है, चाहे यह नमाज घर में अकेले में बैठकर अता की जाए या मस्जिद में जागकर सामुहिक तौर पर। मुस्लिम समाज अल्लहा की दास्ता और बंदगी को स्वीकार करता है- ‘ या इलाह ही इल्लाह मुहम्मद रसुलल्लाह’ । इस दास्ता और बंदगी की अभिव्यक्ति आस्था इबादत और कानून में होती है। ईश्वर (अल्लाह) के प्रति आस्था रखने वाला व्यक्ित अपने मजहब के मुताबिक कहीं मंदिर का निर्मण करता हे तो कहीं मस्जिद का। मंदिरों में पुजारी ईश्वर के सामने वैदिक मंत्रों का पाठ करता हे, तो मस्जिद में इमाम अजान देता है।
४२ रक्वत पढ़ी जाती है नमाज
इस्लाम धर्म में नमाज आवश्यक है। वह ४२ रक्वत पढ़ी जाती है। एक रक्वत एक बार खड़े होकर बैठने तक की होती है जिसमें दो सजदे ( जमीन पर माथा टेकना और झुकना) होता है। पाक कुमार में नमाज के लिए ‘सलात’ शब्द का प्रयोग किया गया है, जिसका अर्थ होता है किसी चीज की तरफ बढ़ना, उपस्थित होना या ध्यान देना। इसलिए इसका प्रयोग झुकने और प्रार्थना करने के अर्थ में होता है। क्योंकि प्रार्थना और उपासना के समय मनुष्य ईश्वर (अल्लाह) के समाने घुटने टेकता है और गिड़-गिड़ाता है, मुरादों का दामन उस परवरदिगार सर्व शक्तिमान के सामने फैलाता है और यह दिखाने का प्रयत्न करता है कि हे ईश्वर! समस्त चराचर के अधिष्ठाता तेरे सिवा मेरा इस दुनिया जहान में दूसरा कोइ्र और नहीं है। मै तेरे द्वारा दिखये गए रास्ते भटक गया हूं। ये परवरदिगार मुझ ना समझ को रास्ता दिखा। मेरी मदद कर।
नमाज के लिए पाक होना जरूरी
नमाज का मूल उद्देश्य अल्लाह-ताला का स्मरण है। नमाज अता करने वाला अपने रब की तरफ झुकता है, उसे समर्पण करता है। उस परम् दिव्य शक्ति के सामने अपनी दीनता और विनम्रता प्रकट करता है और उससे प्रार्थना करता है। नमाज के द्वारा मनुष्य को शक्ति मिलती है। इस्लाम धर्म के अनुसार यह धर्म के लिए उतना ही आवश्यक हे, जितना कि शरीर के लिए प्राण। जो व्यक्ति नमाज अता नहीं करता वह अल्लाह के प्रकोप का शिकार होता है। नमाज के लिए मन और तन दोनों से पाक होना आवश्यक है। नापाक (अपवित्र) अवस्था में अथवा नशे की हालत में नमाज अता करना वर्जित है। नमजा मस्जिदे हराम (काबा) क ओर मुंह करके पढ़ा जाता है।
पांच नहीं तो तीन वक्त जरूर पढ़ें नमाज
नमाज सूरज निकलने से और डूबने से पहले, दो पहर, सायं और रात में सोते समय पढ़ने का विधान है। इस्लाम अपने अनुयायियों को यह छूट भी देता है कि किसी कारण वश नमाज पांच वक्त न हो सके तो सुबह, शाम और रात्रि में अवश्य अता की जानी चाहिए।
दो तरह से अता की जाती है नमाज
इस्लाम में नमाज दो प्रकार से अता की जाती हे। एक अकेले व दूसरी सामूहिक रूप से, जिसे फर्द व सुन्नत कहा जाता है। सामूहिक रूप से पढ़ी जाने वाली नमाज मस्जिद में इमाम की अगुवाई में पढ़ी जाती है। शुक्रवार की नमाज सामूहिक तौर पर पढ़ी जाती है, जिसे मुमे का नमाज कहा जाता है। नमाज अता करने के पहले ‘मुआज्जिन’ काबें की ओर मुंह करता है और उच्च स्वर में नमाज पढ़ता है।
दोजख की आग से बचा है अल्लाह
नमाज के माध्यम से मुसलमान अल्लाह को याद करता है। जो मुसलमान पांच वक्त की नमजा अता करता है उस पर अल्लाह की मेहर होती है। इस्लाम धर्म कहता है कि नमाज अता करने वाला व्यक्ति अल्लाह के बताए रास्ते पर चलने को हमेशा तैयार रहता है।
कर्मों के हिसाब से जन्नत और जहन्नुम में पहुंचाता है अल्लाह
नमाज ईश्वर की विभूतियों का स्मरण करने का सच्चा साधन है। जो व्यक्ति हमेशा ईश्वर के राह में सजता करता है उसे अल्लाह दोजख से बचाता है। पवित्र कुरान कहता है कि अल्लहा सर्वज्ञ व र्स शक्तिमान है। उसने ही हमें-तुम्हें बनाया है। उसी के रहम पे धरती और आसमान टिका है। अल्लाह ने मर्द और औरत बनाया है। वह हमारे अच्दे और बुरे कर्मो कोदेखता है और उसी के अनुसार अपने बंदों को जन्नत और जहन्नुम में पहुंचाता है। हिंदू धर्म के तीन वेदों व बौद्ध धर्म के त्रिरल के समान ही इस्लाम में ‘मुहम्मद, दीन तथा मुसलमान हैं’।
अल्लाह की मेहर पाने के लिए नमाज जरूरी है
हाफीज मोहम्मद असलम के शब्दों में कहें तो मस्जिद के तीन गुम्बजों का वहीं स्थान है जो धर्म में त्रिदेवों का और ईसाई धर्म में ईश्वर के तीन रूपों-फादर, सन और घोस्ट का प्रतिक है। वे आगे कहते हैं कि सच्चा मुसलमान वहीं होता है जो ईश्वर के एक रूप अल्लाह के सामने नमाज अता करने के बाद अल्लाह ताला के दरबार में जन कल्याण के लिए आमीन (शांति) की दुआ करे। ईश्वर के सामने नियमित रूप से सजदा करने वाला अल्लाह के कृपा का पात्र बनता है तथा प्रत्येक कार्य में सफलता हासिल करता है। नमाज अता न करने वाला गाफिल अल्ला के कोप का शिकार होता है व तमाम परेशानियों और तबाहियों का सामना करता है। इस्लाम में अल्लाह की मेहर पाने के लिए अल्लाह के बन्दों को नमाज जरूरी है।