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राजित, जालंधर : भारतीय रेलवे अपने यात्री आरक्षण केंद्र बंद करने की योजना बना चुका है। हर साल तीन सौ आरक्षण केंद्र बंद कर देगा। इससे जहां कुछ लोगों को लाभ मिलेगा वहीं कुछ की परेशानी बढ़ जाएगी। खासकर स्लीपर क्लास के यात्रियों की। यही वर्ग है जो अभी भी काउंटर से टिकट खरीदता है।
खासकर तत्काल यात्रा करने वाले, क्योंकि अभी तक जो सुविधा है उसके तहत तत्काल आनलाइन टिकट कुछ यात्री ले पाते हैं, बाकि के तो एजेंटों से ठगे जाते हैं। उन्हें अक्सर मोटा कमीशन देकर टिकट हासिल करना पड़ता है। ऐसे भी यात्री हैं जो टिकट नहीं मिलने पर काउंटर से प्रतीक्षा का टिकट खरीद लेते हैं और स्लीपर में बैठ कर सफर कर अपना काम चला रहे थे। क्योंकि अभी तक आनलाइन टिकट यदि कनफर्म नहीं है तो वह रद हो जाती है।
परेशान यात्री अनारक्षित टिकट लेकर स्लीपर में जुर्माना दे कर यात्रा करते थे। कहीं न कहीं यह सब व्यवस्था रेलवे अपनी आय में इजाफा करने के लिए करता हुआ प्रतीत हो रहा है। इसका सबसे अधिक प्रभाव आम यात्री यानी स्लीपर क्लास वालों पर ही पड़ेगा। अभी तक जो यात्रा वह पांच सौ में कर लेता था वह अब वही यात्रा करीब नौ सौ में कर पाएगा। क्योंकि काउंटर बंद होने से स्लीपर का वेटिंग ले नहीं पाएगा तो लाजिमी है कि वह सामान्य टिकट खरीदेगा और स्लीपर में सवार होने पर जुर्माना व आरक्षण का शुल्का का भुगतान करेगा और यह उसे करीब तीन से चार सौ रुपये अधिक देगा।
ऐसे में रेलवे अपने एक स्लीपर कोच से तीन गुना तक कमाई करेगा। क्योंकि रेलवे के पास अभी इतनी सुविधा नहीं है कि वह सभी यात्रियों के लिए बेहतर विकल्प मुहैया करवा सके। खास कर जहां दबाव अधिक है। लोग चार महीने पहले यात्रा का टिकट करवा लेते हैं और जब सफर का समय आता है तो कई बार ऐसा भी देखा गया है कि वे अपने कोच में सवार भी नहीं हो पाते हैं। ऐसे में या तो उनकी गाड़ी छूट जाती है या फिर जैसे जैसे तैसे सफर पूरा करते हैं।
पूर्व के रेल मंत्रियों ने इसके लिए कुछ व्यवस्था घोषणाएं अवश्य की थीं, लेकिन वह सब धरी की धरी रही गई, क्योंकि रेलवे के पास संसाधन ही नहीं हो पा रहे हैं। जैसे अधिक यात्री होने पर पैरलर गाड़ी चलाने की या फिर कोच बढ़ाने की। कुछ स्पेशल गाड़िया अवश्य चलाई जाती हैं, लेकिन वह भी प्रचार व प्रसार के अभाव में आम यात्रियों को सुविधा नहीं प्रदान कर पाती हैं।
कई बार तो ऐसा भी देखा गया है कि पूरी गाड़ी ही खाली चली जाती है। अब जब आनलाइन का जमाना है तो ऐसी सुविधा होनी चाहिए कि यदि यात्री किसी रूट की गाड़ी तलाश रहा है तो उसे नए विकल्प पहले दिखें, जिससे वह पहले विकल्प पर ही विचार करे।
योना चाहिए ऐसा प्रबंध, हर यात्री को मिल सके सीट
अब आवश्यकता है रेल प्रशासन को ऐसी व्यवस्था करने की, जिससे हर यात्री को विकल्प सीट मिले। इसमें जरूरी होगा जारी किए गए वेटिंग टिकट के हिसाब से कोच बढ़ाने की, क्योंकि अभी देखा जाता है कि कुछ गाड़ियों में रेलवे यदि 11 कोच स्लीपर का लगाता है तो उसकी झमता करीब आठ सौ यात्रियों को ले जाने की होती है और उसी गाड़ी के लिए करीब छह सौ वेटिंग टिकट जारी कर दिए जाते हैं। मानी भी लिया जाए इसमें से करीब सौ यात्री मैनेज कर लिए जाएंगे, लेकिन बचे पांच सौ के लिए छह कोच अतिरिक्त लगाने होंगे, जो कि संभव नहीं है। ऐसे में दो ही विकल्प बचता है या तो पैरलर गाड़ी चलाई जाए या फिर वेटिंग टिकट ही जारी न किया जाए।