सिद्धार्थ की कलम से : आम तौर पर तीन देवों को हिंदू धर्म का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि यही तीनों देवता शृष्टी का संचलन करते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो जन्म देने वाला, पालन करने वाला और संहार करने वाले यही तीन देव हैं। ऐसा नहीं है कि यह धारणा केवल हिंदू धर्म में ही है। बल्कि दुनिया के सभी धर्मों ने तीन देवताओं की शक्ति को शीश नवाया है।
यदि हम प्राचीन भारतीय इतिहास और लेखों, अभिलेखों का अध्ययन करें तो पता चलता है कि वैदिक काल में तीन वेदों का ही अध्यापन हुआ करता था । इतिहासकार डॉक्टर ब्रह्मानंद सिंह कहते हैं कि जैमिनि सूत्र में ऋग्वेद, साम वेद और यजुवेद के ही नाम मिलते हैं। वे कहते हैं उत्तर भारत के मध्यकालीन अभिलेखों में ‘ऋक् यजु: और साम ‘ के नाम उल्लिखित हैं।
डॉ. सिंह कहते हैं उलवेरुनी ने भी तीन वेदों के पठन-पाठन का जिक्र किया है। यानी ब्राह्मण धर्म में तीन वेदों की ही कल्पना की गई है। इसी के समान तीन देवताओं ब्रह्मा, विष्णु और महेश की कल्पना की गई है। इनमें महेश अर्थात भगवान पशुपति को वैदिक देवता भी माना जाता है। हड़प्पा की खुदाई से मिली मुहरों पर जिस देवता और पशु की आकृति मिली है उसके इतिहासकारों पशुपति अथार्त शिव और नंदी की आकृति माना है। वैदिन काल में जितने भी युद्ध होते थे वह पशुओं अर्थात गाय को लेकर हुए बताए जाते हैं।
इसी तरह पटना विश्वविद्यालय के प्रो: डॉक्टर वासुदेव उपाध्याय की पुस्तक प्राचीन भारतीय स्तूप, गुहा एवं मंदिर का अध्ययन करें तों पाते हैं हिंदू धर्म की तरह ही बौध धर्म में त्रिपिटक (सूत्तपिटक, विनयपिटक और अभिधम्मपिटक) हैं। हिंदू धर्म की तरह ही बौध धर्म में भी त्रिरल अर्थात बुद्ध, धर्म और संध को महत्वपूर्ण माना गया है।
यदि बात करें इस्लाम धर्म की तो इसमें तीन को महत्वपूर्ण बताया गया है। इस्लाम में मुहम्मद, दीन और मुस्लमान को महत्वपूर्ण बताया गया है। हाफिज मोहम्मद असलम के अनुसार मस्जिद के निर्माण में तीन गुंबज खुदा के तीन स्वरूपों की अवधारणा को प्रतिपादित करते हैं।
कुछ इसी तरह ईसाई धर्म में ईश्वर के तीन रूपों को माना गया है। ये तीन रूप हैं- फादर, सन और घोस्ट (God the father, God the son, God the holy Ghost) की अवधारणा भी यही संकेत करती है कि यदि धरती पर जीव का वजूद कायम है तो इसके पीछे त्रिदेवों की शक्तियां किसी न किसी रूप में जरूर काम करती है। इन तीन देवों चाहे वह मूर्ति पूजक हों या निराकार को मानने वले वे किसी न किसी रूप में चाहे वह किसी धर्म पंथ या संप्रदाय के क्यों न हों, ईश्वर के इन तीन रूपों को अवश्य मानते हैं।