
राजनीश मिश्र शब-ए-बरात इस्लाम के त्योहारों में एक है। शब-ए-बरात Shab e Barat इबादत, सखावत और तिलावत का त्योहार है। शब-ए-बरात के रात इस्लाम को मानने वाले लोग मस्जिदों और कब्रिस्तानों में जाकर मोमबत्तियां जलाते हैं। फतिहा पढ़ते हैं। माना जाता है कि और शब-ए-बरात को पुरखे जन्नत से जमीन आते हैं ।
शब-ए-बरात को कर्मों का लेखा-जोखा तैयार करने वाली रात भी माना जाता है। यह भी माना जाता है कि अल्लाहताला शब-ए-बरात को पिछले साल किए गए कर्मों का लेखा-जोखा तैयार करते हैं और शब-ए-बरात को आने वाले साल की तकदीर तय करते हैं। इसलिए इस रात को शब-ए-बरात कहा जाता है।
इस्लामिक धर्मगुरुओं के अुसार इस रात को इबादत में गुजारा जाता है। नमाज, तिलावत-ए-कुरआन, कब्रिस्तान की जियारत और हैसियत के मुताबिक खैरात करना भी शब-ए-बरात की रात अहम काम है। हाफिज मोहम्मद असलम के अनुसार वर्ष 2023 में 07 मार्च मंगलवार को शब-ए-बरात है। मो: असलम के अनुसार शब-ए- बरात 2023 के लिए रोजा आठ मार्च को ही है।
शब-ए-बरात की रात क्या करें
हाफिज मोहम्मद असलम कहते हैं कि पहुत से लोग पूछते हैं या जानना चाहत हैं शब-ए-बरात की रात क्या पढ़ना चाहिए या क्या करना चाहिए। शब- ए-बरात की रात में नफिल या कजा़- ए- उमरी की नमाज़ पढ़ें। शब- ए- बरात को गुनाहों की माफी की रात कहा जाता है।
हाफिज मोहम्मद शोएब कहते हैं कि शब-ए-बरात की रात को की हुई इबादत को एक हजार रात की इबादत के बराबर माना जाता है। मोहम्मद शोएब कहते हैं, जियारत कुरान पाक की तिलावत नफल व तहजुद की नमाज रोजा रखना कब्रिस्तान में फातिहा पढ़ना मगफिरत की दुआ सलातुल तस्बीह की नमाज कजा़ ए उमरी की नमाज़। पढ़नी चाहिए।
शब-ए-बरात की रात कबूल होती तोबा
मोहम्मद अख्तर कहते हैं कि शब-ए-बरात की रात में तोबा सबसे ज्या कबूल होती है। दूसरे शब्दों में कहें तो शब-ए-बरात को अपने गुनाहों को खुले दिले से कबूल करना चाहिए। इस रात को हर गुनाह मुआफ कर दिए जाते हैं। इस लिए इसे गुनाहों माफी की रात भी कहा जाता है। वे कहते हैं कि अल्लाह ताला हमारे लिए रहमतों व नेकियों के दरवाजे खोल देते हैं।
शब-ए-बरात की रात में इबादत करें
मोहम्मद शोएब के अनुसार शब-ए-बरात की रात नाफिल की नमाज पढ़े। यह एक सुन्नत है। अगर आप नाफिल पढ़ेंगे तो आपको इसका सवाब मिलेगा। अल्लाह ताला ने जो हमारे लिए पांच वखत का नमाज़ मुकर्रर किया है। शोएब कहते हैं कि नमाज़ को समय पर ना पढ़ें तो, वह कजा़ हो जाती है। कजा़ नमाज हमें जरूर पढ़ लेनी चाहिए। शोएब कहते हैं कि शब- ए- बरात की रात में नफिल से ज्यादा कजा़ ए उमरी की नमाज़ को महत्व देना चाहिए। शब-ए-बरात इस्लामी माह शाबान की 14वीं रात मगरिब की नमाज़ के साथ ही शुरू हो जाएगा। शब-ए-बरात की रात को बुलंदी रात भी कहा जाता है।
कब्रिस्तानों में जलाते हैं मोमबत्तियां
शब-ए-बरात की रात मुस्लिम समुदाय के लोग कब्रिस्तान में जा कर अपनी पुरखों की कब्र पर मोमबत्तियां जलाते हैं और फतिहा पढ़ते हैं। इस रात मस्जिदों और घरों में भी मोमबत्तियां जलने की परंपरा है। यानी एक तरह से यह हिंदुओं की दीवाली जैसा है।
बनाते हैं तरह-तरह का हलवा
शब-ए-बरात को मुस्लिम समाज के लोग तरह-तरह का हलवा बाते हैं। इसमें बेसन, सूजी, मावा आदि के हलवा बनाया जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि एक बार पैगंबर मोहम्मद साहब का एक दांत शहीद हो गया था। यह बात जब हजरत मोहम्मद साहब से बेइंतहां प्यार करने वाले हजरत को पता चला कि हमारी सरकार का दांत शहीद हो गया है तो उन्होंने भी एक-एक करते अपने सारे दांत शहीद कर दिए। इसके बाद मोहम्मद साहब को चाहने वाले उसी दिन से उनके लिए हलवा बनाने लगे। तभी से यह परंपरा चली आ रहा है। हलाकि इसका जिक्र कहीं नहीं है।