
ख़बर परवेज़ अख्तर की कलम से : लखीमपुर के आठ मृतकों के परिजनों को सरकार की तरफ से 45 लाख रुपये व घर के एक सदस्य को सरकारी नौकरी! विपक्ष की तरफ से मरने वालों के परिजनों को एक करोड़ रुपये….! अच्छा लगा सुनकर कि चलो पक्ष व विपक्ष पार्टियों की तरफ से इन जान गंवाने वालों के घर वालों को तसल्लीबख्श राहत दे दी गयी।
कितना अजीब लग रहा है न !! नवम्बर 2020 से शुरू हुये किसान आंदोलन में सितंबर 2021 तक लगभग 605 किसानों ने अपना बलिदान दिया ! आंदोलन भी किस बात का….! उन तीन कानून के खिलाफ जो सरकार कह रही है किसानों के फायदे का कानून है! पर किसानों को इन तीन कानून के फायदे रास नहीं आ रहे हैं!,
तभी तो किसान परिवार के साथ इतने महीनों तक सर्दी गर्मी बरसात की मार झेलते हुये दिल्ली बॉर्डर व अन्य जगाहों पर आंदोलित हैं और डटे हुये हैं! लगभग एक साल होने को आया कयी राउण्ड बातचीत होने के बावजूद सरकार किसानों को ये ना संमझा पाई कि ये तीनों कानून किसान हित में हैं……! और न ही “किसानों” की बात मान पाई……!
देश के आम लोग भी इस आंदोलन को एक ख़बर की मानिंद देख रहे हैं व सरकार और किसान तथा न्यायपालिका की बात सुन रहे हैं, और नज़र अंदाज़ कर रहे हैं! पर दर हकीकत जो इस आंदोलन में शामिल हैं वो किसान,और वो व्यापारी तबका जिनका व्यापार इस आंदोलन से चौपट हो गया है! और जिन जगाहों पर आंदोलन हो रहे हैं उस क्षेत्र से सटे लोगों की दिनचर्या पूरी तरह प्रभावित हुयी है…!
वो लोग बेहद परेशान हैं। इसी के साथ बहुतों का बहुत कुछ खत्म हो गया है और बहुतों का घर उजड़ गया ! इसी के साथ बहुत बड़ा सवाल ये है कि इस दरम्यान जिन अन्नदाताओं की जाने गयी हैं क्या उनकी जान की कोई कीमत नहीं थी! या उनके बच्चे यतीम नहीं हुये हैं। और इसी के साथ पहले सवाल से भी बड़ा सवाल ये है कि कुछ दिनों पहले तक सरकार को आंदोलन कर रहे किसान देशद्रोही और खालिस्तानी लग रहे थे !
अब दूसरी तरफ लाखों रुपए का मुआवजा व नौकरी दी जा रही है। वहीं विपक्ष अब अंदाताओं के प्रति पूरी शिद्दत से मुहब्बत का इज़हार करते हुए धरना प्रदर्शन कर रहा है व लखीमपुर के मृतकों को करोड़ रुपये दे रहा है। अगर ये चुनावी बिसात नहीं है, या है भी, तो इनसे पहले के मृतकों के परिजनों का भी हाल हवाल ले लें! और जो जिंदा हैं उन पर और इससे प्रभावित हो रहे लोगों पर तरस खाते हुये प्रदर्शन खत्म करवाने की कोशिश करें।
इस लिये भी करें कि जब सरकार की तरफ से लाये कानून से किसान अपना भला नहीं करवाना चाह रहे हैं तो जबरन भला करने पर अड़े रहने की क्या ज़रूरत है।