
रजनीश कुमार मिश्र गाजीपुर।करीमुद्दीनपुर स्थित मां कष्टहरणी भवानी जिनकी ख्याति त्रेतायुग से लेकर अब तक फैला हुआ है।जो भी सच्चे मन से इस स्थान पर आता उसकी मुरादें पुरी हो जाती।नवरात्रि के समय यहां दुर दुर से लोग दर्शन करने आते है।इस पौराणिक स्थान पर चैत्र नवरात्रि के समय भव्य मेले का आयोजन भी किया जाता है।
लेकिन कोरोना काल के समय इस पौराणिक स्थान पर नवरात्रि में नाही मेले का आयोजन हुआ और नाही भक्तों के लिए मंदिर के कपाट ही खुले।लेकिन समय का पहिया घुमा कोरोना काल समाप्त हुआ और नवरात्रि में भक्तों के लिए मंदिर का प्रवेश द्वार खुल जायेगा।पुजारी राजु पान्डेय ने बताया की कल से आरंभ हो रहे नवरात्रि में भक्त मां का दर्शन कर सकते है।
राजु पांडेय ने बताया की नवरात्रि के मद्देनजर मंदिर प्रशासन भी पुरी तरह तैयार है। पुजारी राजू पान्डेय ने बताया की यहां दर्शन करने आये भक्तों को कोरोना प्रोटोकॉल का पुरी तरह से पालन करना होगा बगैर मास्क किसी को भी मंदिर परिसर में प्रवेश नहीं दिया जायेगा।उन्होंने बताया की गर्भगृह के अंदर एक बार में सिर्फ दस लोग ही जा पायेंगे।मंदिर के पुजारी ने बताया की प्रवेश द्वार पर भक्तों के लिए सैनिटाइजर का भी व्यवस्था. है।
सौ साल पहले हुआ था इस मंदिर का निर्माण
पुजारी राजु पान्डेय ने बताया की आज से करीब सौ साल पहले मां कष्टहरणी भवानी मंदिर का निर्माण हुआ था।उन्होंने बताया की यहां जो भी भक्त सच्चे मन से कोई मन्नत मांगता है,तो उसकी मुरादें अवश्य पुरी होती है।
उन्होंने बताया की मंदिर का निर्माण कराने का कार्य लाल बाबा ने शुरू किया था।पुजारी राजु पान्डेय व करीमुद्दीनपुर निवासियों के अनुसार कष्टहरणी भवानी का संबंध त्रेतायुग व द्वापरयुग से भी है।यही नहीं किनाराम को भी यही पर सिद्धि प्राप्त हुई है।
आज का करीमुद्दीनपुर त्रेतायुग व द्वापरयुग में दारूक बन से था प्रसिद्ध
गाजीपुर जनपद का आज का करीमुद्दीनपुर जहां मां भवानी बिराजमान है।वो स्थान कभी दारूक बन के नाम से प्रसिद्ध था।किवंदती है की जब विश्वामित्र अयोध्या से राम को अपने साथ लेकर चले तो दारूक बन आज का करीमुद्दीनपुर में ही विश्राम किया था।समय के साथ साथ दारूकबन बन गया
आज का करीमुद्दीनपुर, यहां के बुजुर्ग ग्रामीणों ने बताया की किनाराम बाबा को भी यही पर ही सिद्धियां प्राप्त हुई थी।ग्रामीणों के अनुसार किनाराम को मां कष्टहरणी ने अपने हाथों से प्रसाद खिलाया था।इसीलिए मंदिर परिसर में किनाराम का भी मुर्ति स्थापित है।
विश्वामित्र के साथ राम कर चुके है विश्राम तो पांडवों को कृष्ण दे चुके है शिक्षा
गाजीपुर जनपद के करीमुद्दीनपुर स्थित मां कष्टहरणी भवानी का जिक्र पुराणों में भी मिलता है।कहा जाता है,की आज का करीमुद्दीनपुर जो त्रेतायुग व द्वापरयुग में दारूकावन के नाम से प्रसिद्ध था।
अयोध्या से विश्वामित्र जब असुरों का संहार करने के लिए राम को साथ लेकर चले तो इसी स्थान पर रूक कर विश्राम किया ।यहां के बुजुर्गों ने बताया की त्रेतायुग ही नहीं द्वापरयुग में भी.कृष्ण ने पांडवों को कष्टहरणी भवानी का दर्शन कराया तत्पश्चात कृष्ण ने पांडवों को शिक्षा भी दिया।
चैत नवरात्रि के समय लगता है भव्य मेला
चैत में शुरू होने वाले नवरात्र में भव्य मेले का भी आयोजन किया जाता है।यहां लगने वाला मेला कितना पुराना है। ठीक से कोई बता नहीं पाता है। करीमुद्दीनपुर के बुजुर्ग ग्रामीणों का कहना है की करीब सौ डेढ़ सौ साल पहले से यहां मेले का आयोजन किया जाता था।यहां के लोगों ने बताया की पहले सिर्फ इसी देवी के स्थान पर ही नवरात्रि में मेले का आयोजन किया जाता था।जिसे देखने के लिए दुर दराज से लोग आते थे।