रजनीश कुमार मिश्र,बाराचवर (गाजीपुर)
शहरों व बजारों में जाने पर चाय की चुस्कियां लेने का मन तो सबका करता है।वह भी तब जब सर्दी का मौसम हो, इस मौसम में चाय की चुस्कियां लेने का तब आंनदऔर बढ़ जाता है जब चाय कुल्हड़ में मिले लेकिन अफसोस कुल्हड़ में चाय मिलना ही बंद हो गया।अब कुल्हड़ की जगह डिस्पोजल गिलासों ने ले लिया है। डिस्पोजल गिलासों के वजह से चाय का रंग फीका पड़ चुका है।ये ही नहीं डिस्पोजल गिलास के बाजार में आ जाने के वजह से न जाने कितने कुल्हड़ उत्पादकों का रोजी रोटी छीध चुका है।
डिस्पोजल गिलासों ने फीका किया चाय का रंग
डिस्पोजल गिलासों के बाजार में आ जाने के वजह से चाय की हर दुकानों पर कुल्हड़ के बजाए चाय गिलासों में मिलने लगा इस वजह से बाजारों में चाय का स्वाद ही बदल गया।
शहरों व बाजारों में आये लोग भी क्या करे किसी भी दुकान पर जाने पर डिस्पोजल गिलासों में चाय पीना पड़ता है।
इस बारे में बाजार आये शिक्षक अनील यादव से पुछा गया तो उन्होंने बताया की डिस्पोजल गिलास में जो चाय मिलता है उसमें कोइ स्वाद नहीं रहता गिलास में चाय का रंग व स्वाद सब बिगड़ जाता है। वहीं जो चाय का स्वाद कुल्हड़ में मिलता है।वो डिस्पोजल गिलासों में नहीं।
कुल्हड़ से सस्ता पड़ता है,डिस्पोजल गिलास
जनाब दुकानदारों को तो चाहिए मुनाफा चाहें वो किसी तरह से हो इनको स्वाद व रंग से कोई लेना देना नहीं डिस्पोजल गिलास कुल्हड़ से कही ज्यादा सस्ता पड़ता है। वहीं चाय बनाने वाले एक दुकानदार का कहना है की भाई पाच रुपये में मिलता क्या है। गिलास बीस रुपये में पच्चास मील जाता है तो कुल्हड़ इससे ज्यादा महंगा पड़ता है।
डिस्पोजल गिलासों के कारण पुरवा(कुल्हड़) गावों से हुआ लुप्त
पहलें गावों मे होने वाले शादी या कोई और पार्टीयों में गिलास की जगह पुरवा (कुल्हड़) में ही पानी पीया जाता था।जब भी गांव में शादियां व अन्य पार्टियां होती थी उसमें गिलास के बजाय कुल्हड़ ही दिखाई देता था।समय के साथ साथ कुल्हड़ का प्रचलन बंद होता गया और इसके जगह डिस्पोजल गिलासों ने ले लिए इसका एक मात्र कारण कुल्हड़ से कही ज्यादा सस्ता डिस्पोजल गिलासों का होना डिस्पोजल गिलासों के वजह से कुल्हड़ उत्पादकों की रोजीरोटी तक छीन गई।
कुल्हड़ उत्पादकों की छीन चुकी है कमाई
डिस्पोजल गिलासों के बाजार में आ जाने के बाद कुल्हड़ उत्पादकों की रोजीरोटी छीन चुकी है।क्यो की चाय की दुकान से लेकर गांवों में होने वाले शादियां व अन्य पार्टियों में कुल्हड़ का प्रचलन ही बंद हो चुका है। जिसका सीधा असर कुल्हड़ उत्पादकों पर पड़ा है।
वहीं कुम्हारों का कहना है की जब कुल्हड़ चलता था। तब किसी शादी समारोह में कुल्हड़ ले जाने के लिए दुर दुर से लोग आया करते थे।जिसके लिए हम लोग महिनों पहले ही इसकी तैयारियों में जुट जाते थे।
उस समय कुल्हड़ की अच्छीखासी लागत भी मिल जाता था।जिससे हम लोगों का परिवार का खर्च चल जाता था।और दौ पैसा बचता भी था। डिस्पोजल के बाजार में आ जाने के बाद कुल्हड़ का प्रचलन ही बंद हो गया।क्यो की कुल्हड़ से ज्यादा सस्ता डिस्पोजल पड़ने लगा ।
गिने चुने चाय की दुकानों पर मीलता है कुल्हड़ में चाय
डिस्पोजल के जमाने में कुछ ऐसे चाय दुकानदार भी है।जो गिलास के बजाय कुल्हड़ में ही चाय पीलाते है।इन कुछ दुकानदारों के वजह से थोड़ा बहुत कुल्हड़ उत्पादकों में उम्मीद तो जगी है।लेकिन ये महंगाई के दौर में ना के बराबर है। वहीं इन दुकानों पर चाय पीने आये कुछ लोगों का कहना है की कुल्हड़ में चाय का आनंद ही कुछ और है।
चाय की दुकान पर आये, असलम अंसारी का कहना है की कुल्हड़ में चाय का स्वाद बरकरार तो रहता ही और इसमें चाय पीने से कोइ नुकसान भी नहीं होता है।वही दुकान पर चाय की चुस्कियों का आनंद ले रहे रिंकू सिंह,अनिमेष पान्डेय व अन्य का कहना है की कुल्हड़ में चाय पीने का मजा ही कुछ और है।