मंदिरों में पूजा के विधि-विधान और देवताओं को चढ़ाए जाने वाले प्रसाद के बारे में तो प्रयास हर कोई वाकिफ होगा। देश के सभी मंदिरों में हलवा-पूरी, पतासे, सहित अन्य मिठाइयां, फल, मेवे आदि भगवान के भोग के लिए चढ़ए जाते हैं। लेकिन आज हम एक ऐसे मंदिर के बारे में बात करने जा रहे हैं, जहां प्रतिष्ठापित देवता को हलवा-पूरी या मिठाई, मेवे आदिन नहीं चढ़ाए जाते। बल्की इस मंदिर के देवता को भोग लगाने के लिए अंडे चढ़ाए जाते हैं। यह जान कर आप चौंक गए न, तो चौंकिए नहीं यह मंदिर उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले में है।
पूजा की अलग तरह की परंपरा वाला मंदिर फिरोजाबाद जिले के गांव बिलहना में है। नगरसेन बाबा के नाम से प्रसिद्ध इस मंदिर में पूजा की अनोखी परंपरा है। यहां आने बाले बाबा के भक्त पूड़ी के साथ अंडे भी चढ़ाते हैं। बाबा नगरसेन के मंदिर की ख्याति गांव बिलहना और आसपास के गांवों में ही नहीं है बल्कि फिरोजाबाद और उसके आसपास जिलों में भी है। यहां अपनी मन्नतें लेकर दूर-दूर से आते हैं। यही नहीं यहां मेला भी लगता है।
बाबा नगरसेन के प्रति लोगों में आस्था इतनी है कि महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना के लिए दूर-दूर से आति हैं और प्रार्थना भी करती हैं। यही नहीं अपनी बच्चों को बुरी नजर बचाने के लिए मंदिर के सेवादार से झाड़फूंक भी करवाती हैं। साथ में बाबा नगरसेन को अंडे और पूड़ी का भोग लगाती हैं।
चार शदी पुराना है मंदिर
बाबा नगरसेन मंदिर के बारे में बताया जाता है कि यह मंदिर करीब 400 साल से भी पुराना है। मान्यता है कि यहां मांगी गई हर मन्नत पूरी होती है। यहां पर लोग अपने बच्चों को स्वस्थ और दीर्घायु के लिए प्रार्थना करते हैं। इसी मान्यता के चलते यहां दूर-दूर से लोगों का वर्षभर आनाजा लगा रहता है। बैशाख के अष्टमी के दिन बाबा नगरसेन का मेला लगता है। इसदिन लोग दूर दूर से बाबा को अंड़े और पूड़ी का प्रसाद चढ़ाने आते हैं।
मंदिर के बारे में दंत कथा
गांव बिलहना में स्थित नगरसेन बाबा के मंदिर के प्रचलित दंतकथाओं के अनुसार एक बार नगरसेन बाबा अपनी बहनों को बुलाने के लिए गए थे। रास्ते में लौटते वक्त एक दरिया किनारे रहने वाले मसान ने बाबा को दरिया में डुबो दिया। जब इस बात की जानकारी बाबा की बहनों को हुई तो उन्हें असहाय दुख हुआ और वे भाई के बिछोह में प्राण त्याग दिए। कहा जाता है कि बाबा नगरसेन की बहने उनको खिलाने के लिए अंडे लेकर आई थीं, लेकिन बाबा के दरिया में डूब जाने के वहज से उन्हें खिला नहीं सकी। मान्यता है कि इसके बाद से ही बाबा को अंडे का भोग लगाने की परंपरा चली आ रही है जो आज भी कायम है।