सिख धर्म की आस्था का प्रतिक श्री हरिमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) का जर्रा-जर्रा अपने आप में धर्म और इतिहास को संजोए हुए है। चाहे वह श्री अकालतख्त साहिब हो या श्री हरिमंदिर साहिब। या फिर अमृत सरोवर के पास स्थित बेरियां (बेर के पेड़)। सबका अपना इतिहास है। अपना महत्व है।
अमृतसर स्थित इसी श्री हरिमंदिर साहिब में एक पवित्र स्थान और भी जहां एक नहीं दो-दो गुरुओं के चरण पड़े है। गुरुओं के चरण रज से पवित्र इस स्थल को थड़ा साहिब के नाम से जाना जाता है।
दुखभंजनी बेरी के पास स्थित थड़ा सािहब के बारे में मान्यता है कि इस स्थान पर श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की संपादना के लिए श्री गोदंवाल सािहब से पोथाियों को लाकर सबसे पहले इसी स्थान पर स्थापित किया गया था। सिख मान्यताओं के अनुसार इस स्थान पर संवत 1634 यानी सन 1577 ई में अमृतसर के संस्थापक श्री गुरु रामदास जी ने विराजमान हो कर अमृतसरोंवर की सेवा (खोदाई) करवाई थी। इसके बाद 1645 ई. संवत 1588 में श्री हरिमंदिर साहिब की आधारशिला रखी गई थी।
साक्ष्यों के अनुसार इसी स्थान पर (जिस थड़ा साहिब के नाम से जाना जाता है) विराजमान होकर गुरु साहिबान श्री हरिमंदिर साहिब के निर्माण और सरोवर को पक्का करते समय कार सेवा की निगरानी करते और श्रद्धालुओं को सिख धर्म का उपदेश देते थे। उस समय इस स्थान पर सुबह और शाम दीवान भी सजता था।
दूर किया था वजीर खान का जलोधर रोग
कहा जाता है कि श्री गुरु अर्जुन देव जी ने इसी स्थान पर वजीर खान का जलौधर रोग दूर किया था। इसके लिए उन्होंने वजीर खान से बाबा बुड्ढा जी के हाथों टोकरी की कार सेवा करवाई थी।
68 तिर्थों के समान है यह स्थल
श्री हरिमंदिर साहिब में थड़ा सािहब के पास लगी पट्टिका के अनुसार यह स्थल 68 तिर्थों के समान पवित्र है, क्योंकि यहीं पर श्री गुरु अर्जुन देव जी ने राग रामकली में ”अठसठि तीरथ जह साध पग धरहि” शब्द का उच्चरण किया था। अर्थार जिस स्थान पर संतजन अपना पग यानि चरण रखते हैं वह स्थान 68 तिर्थों के समान हो जाता है। इसलिए इस जगह का नाम ”थड़ा सािहब’ अठसठ तीरथ हो गया। इसी अठसठ तीरथ के सामने संगत माथा टेक गुरुओं का आशीर्वाद प्राप्त कर अपने को धन्य करती है।
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