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स्थान: कैथी गांव, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
प्रसिद्धि: महामृत्युंजय मंत्र का उद्गम स्थल, यमराज और महाकाल की कथा से जुड़ा स्थान
नदी संगम: गंगा एवं गोमती नदी का संगम स्थल
मार्कंडेय महादेव मंदिर का पौराणिक इतिहास
वाराणसी के कैथी गांव, जिसे प्राचीन काल में कंटकवन कहा जाता था, में स्थित मार्कंडेय महादेव मंदिर सदियों से भक्तों के आकर्षण का केंद्र है। कहा जाता है कि यहां भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए थे अपने परम भक्त मार्कंडेय ऋषि की रक्षा के लिए।
पुराणों के अनुसार, जो भी व्यक्ति यहां आकर महामृत्युंजय मंत्र का जप करता है, उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है।
कौन थे मार्कंडेय ऋषि?
मार्कंडेय ऋषि, मृकंड ऋषि और मरुदवती के पुत्र थे। भगवान शिव ने उनके पिता को दो विकल्प दिए थे — एक अल्पायु लेकिन तेजस्वी पुत्र या एक दीर्घायु मगर सामान्य पुत्र। मृकंड ऋषि ने पहले विकल्प को चुना, और इसी से जन्म हुआ मार्कंडेय का, जिनकी आयु मात्र 12 वर्ष निर्धारित थी।
जब यमराज और महाकाल का आमना सामना हुआ
जब मार्कंडेय का बारहवां वर्ष पूरा हुआ, यमराज उन्हें लेने आए। लेकिन मार्कंडेय ने शिवलिंग को गले लगाकर “चन्द्रशेखर” नाम से पुकारा, और तभी भगवान महाकाल रूप में प्रकट होकर यमराज को रोक दिया।
इस चमत्कार से यमराज को अपनी हार स्वीकार करनी पड़ी और तभी से शिव इस स्थान पर मार्कंडेय महादेव नाम से पूजे जाने लगे।
हरिवंश पुराण और इस स्थान की शक्ति
मंदिर के पुजारी के अनुसार, इस क्षेत्र में हरिवंश पुराण का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि मृकंड ऋषि ने अठारह हजार ऋषियों संग यहां हरिवंश पुराण का जप किया था। आज भी संतान-सुख की कामना करने वाले भक्त यह पाठ करवाते हैं।
गंगा-गोमती संगम का आध्यात्मिक महत्व
मंदिर से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर गोमती नदी (आदि गंगा) और गंगा नदी का संगम है। यही संगम स्थल इस मंदिर की शक्ति को और बढ़ाता है, जिसे दर्शन करने हजारों श्रद्धालु वाराणसी और आस-पास से आते हैं।
कंटकबन — कैथी का प्राचीन नाम
पुराणों में वर्णित है कि कैथी गांव का पौराणिक नाम “कंटकबन” था, जिसे राजा दिव्यदास ने बसाया था। आज भी गांव के चारों ओर बबूल और कांटेदार वृक्षों के झुरमुट इस इतिहास की गवाही देते हैं।