Table of Contents
नारायण बलि क्यों दी जाती है। वाकई यह विचारणीय प्रश्न है । सनातन धर्म में 16 संस्कारों में से अंतिम संस्कार भी एक है। अंतिम संस्कार का मतलब तो आप समझ ही गए होंगे। यानी इह लोक से परलोक गमन के बाद नश्वर शरीर की अंतेष्टी और इसके बाद के कर्म को ही अंतिम संस्कर कहा जता है। नारायणबलि भी इसी अंतिम संस्कार का हिस्सा है।
नाराण बलि तब दी जाती है जब किसी की अकाल मृत्यु हो जाती है या लंबे समय तक किसी स्वजन का लापता होना और तंत: उसे मृत मान कर उसका अंतिम संस्कार करने के बाद नारायण बलि दी जाती है। इसके पीछे मान्यता है कि दिवंगत आत्मा को प्रेत योनी में कष्ट न भोगना पड़े।
पं: आत्म प्रकाश शास्त्रि कहते हैं कि जिस परिवार के किसी सदस्य या पूर्वज का ठीक प्रकार से अंतिम संस्कार, पिंडदान और तर्पण नहीं हुआ हो उनकी आगामी पीढ़ियों में पितृदोष होता है। ऐसे व्यक्तियों का संपूर्ण जीवन कष्टमय रहता है। इन कष्टों से मुक्ति के लिए ही पितरों के निमित्त नारायणबलि विधान किया जाए।
वे कहते हैं कि यह दोष पीढ़ी दर पीढ़ी कष्ट पहुंचाता रहता है, जब तक कि इसका विधि-विधानपूर्वक निवारण न किया जाए। इस दोष के निवारण के लिए कुछ विशेष दिन और समय तय हैं जिनमें इसका पूर्ण निवारण होता है। श्राद्ध पक्ष यही अवसर है जब पितृदोष से मुक्ति पाई जा सकती है।
पं: नंद किशोर मिश्र के अनुसार नारायण बलि ऐसा विधान है, जिसमें लापता व्यक्ति को मृत मानकर उसका उसी ढंग से क्रियाकर्म किया जाता है, जैसे किसी का निधन होने पर। इस प्रक्रिया में कुश से प्रतीकात्मक शव बनाते हैं और उसका वास्तविक शव की तरह ही अंतिम संस्कार किया जाता है। इसी दिन से आगे की क्रियाएं शुरू होती हैं।
पं: दयाशंकर चर्तुबेदी के अनुसार नारायणबलि दिवंगत आत्माओं की अपूर्ण इच्छाओं और अधूरी कामनाओं को पूरा करने के लिए की जाती है। इसलिए इसे काम्य भी कहा जाता है। नारायणबलि का उद्देश्य पितृदोष निवारण करना है ।
इसलिए की जाती है नारायणबलि
जिस परिवार के किसी सदस्य या पूर्वज का ठीक प्रकार से अंतिम संस्कार, पिंडदान और तर्पण नहीं हुआ है तो उनकी आगामी पीढि़यों में पितृदोष उत्पन्न होता है। इसी को दूर करने के लिए पितरों के निमित्त नारायणबलि दी जाती है।
किसी व्यक्ति की अकाल मृत्यु पर उसे प्रेतयोनी में जाना पड़ता है। प्रेतयोनी से होने वाली पीड़ा दूर करने के लिए नारायणबलि दी जाती है।
परिवार को कोई सदस्य आत्महत्या, पानी में डूब कर, आग में जल कर, सड़क या अन्य किसी दुर्घटना में प्राण त्याग देता है तो पितृ दोष उत्तपन्न होता है। इसे दूर करने के लिए नारायणबलि दी जाती है।
क्यों की जाती है यह पूजा
o शास्त्रों में पितृदोष निवारण के लिए नारायणबलि-नागबलि कर्म करने का विधान है। यह कर्म किस प्रकार और कौन कर सकता है इसकी पूर्ण जानकारी होना भी जरूरी है। यह कर्म प्रत्येक वह व्यक्ति कर सकता है जो अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता है। जिन जातकों के माता-पिता जीवित हैं वे भी यह विधान कर सकते हैं।
o संतान प्राप्ति, वंश वृद्धि, कर्ज मुक्ति, कार्यों में आ रही बाधाओं के निवारण के लिए यह कर्म पत्नी सहित करना चाहिए। यदि पत्नी जीवित न हो तो कुल के उद्धार के लिए पत्नी के बिना भी यह कर्म किया जा सकता है।
o यदि पत्नी गर्भवती हो तो गर्भ धारण से पांचवें महीने तक यह कर्म किया जा सकता है। घर में कोई भी मांगलिक कार्य हो तो ये कर्म एक साल तक नहीं किए जा सकते हैं। माता-पिता की मृत्यु होने पर भी एक साल तक यह कर्म करना निषिद्ध माना गया है।
कब नहीं की जा सकती है नारायणबलि
नारायणबलि कर्म पौष तथा माघा महीने में तथा गुरु, शुक्र के अस्त होने पर नहीं किए जाने चाहिए। लेकिन प्रमुख ग्रंथ निर्णण सिंधु के मतानुसार इस कर्म के लिए केवल नक्षत्रों के गुण व दोष देखना ही उचित है। नारायणबलि कर्म के लिए धनिष्ठा पंचक और त्रिपाद नक्षत्र को निषिद्ध माना गया है।
धनिष्ठा नक्षत्र के अंतिम दो चरण, शततारका, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद एवं रेवती, इन साढ़े चार नक्षत्रों को धनिष्ठा पंचक कहा जाता है। कृतिका, पुनर्वसु, विशाखा, उत्तराषाढ़ा और उत्तराभाद्रपद ये छह नक्षत्र त्रिपाद नक्षत्र माने गए हैं। इनके अलावा सभी समय यह कर्म किया जा सकता है।
पितृपक्ष सर्वाधिक श्रेष्ठ समय नारायणबलि- नागबलि के लिए पितृपक्ष सर्वाधिक श्रेष्ठ समय बताया गया है। इसमें किसी योग्य पुरोहित से समय निकलवाकर यह कर्म करवाना चाहिए।