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अमृतसर के देवी मंदिरों में उमड़ी भक्तों की भीड़

by Jharokha
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Crowd of devotees gathered in Devi temples of Amritsar

अमृतसर : इन दिनों शक्ति की उपासना और आराधना का पर्व नवरात्र चल रहा है। गुरु नगरी में श्रद्धा का सैलाब देखने को मिल रहा है। यहां गुरुघरों से गुरुवाणि और मंदिरों में उठते वैदिक मंत्रों के समवेत स्वर भक्तों और पर्यटकों को एक अलग ही अनुभूति अहसास करवाते हैं। मंदिरों के शिखरों पर लगे धर्मध्वज जब पवनादोलित होते हैं तो ऐसा लगता है जैसे वह बाहें पसारे भक्तों को अपने पास बुला रहे हों । अमृतसर में छोटे-बड़े मंदिरों की संख्या हजारों के आसपास है। इनमें से कुछ नवीनतम तो कुछ प्राचीन और कुछ अति प्राचीन हैं। लेकिन इस समय हम बात कर रहें हैं आस्था और इतिहास की नगरी में स्थित उन पांच देवी मंदिरों की जहां नवरात्रों में प्रतिदिन भक्तों की संख्या हजारों में पहुंच जाती है।

शीतला माता मंदिर

यदि हम देवी मंदिरों की बात करें तो सबसे पहले जो नाम आता है वह है शीतला माता मंदिर। यह मंदिर दुर्ग्याणा मंदिर परिसर में स्थित। दुर्ग्याणा मंदिर को लक्ष्मी नारायण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, लेकिन स्थानीय लोग शीतला मंदिर के नाम से भी जानते हैं। क्योंकि माता शीतला का मंदिर का प्रबंध भी लक्ष्मी नारायण मंदिर कमेटी करती है।
मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह मंदिर करीब 8०० साल पुराना है। यहां प्रतिष्ठापित माता की मूर्ति के बारे में मान्यता है कि यह स्वयं भू हैं। मां शीतला का रूप शीतलता प्रदान करने वाला माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जब किसी को छोटी माता (चेचक) निकलती हैं तो उसे मंदिर में लाकर माता शीतला के सामने माथा टेवाते हैं। माता शीतला को चढ़ाई गई कच्ची लस्सी का छींटा चेचक पीड़ित के शरीर पर देने से उसे चेचक के जनल से आराम मिलता है।
दुर्ग्याणा मंदिर कमेटी के सेक्रेटरी अरुण खन्ना कहते हैं कि शीतला माता मंदिर में वैसे तो वर्षभर भक्तों की भीड़ी लगी रहती है, लेकिन नवरात्रों यह संख्या हजारों की संख्या में हो जाती है। लंबी-लंबी कतार में घंटों खड़े भक्त जब हाथों में पूजा की थाली और मन में आस्था का दीप जला मुदारों का दामन फैलाए एक-एक इंच आगे सरकता है तो आस्था सजीव हो उठती है। मंदिर में मां दुर्गा देवी के नौ स्वरूपों की आकृतियां भी प्रतिष्ठापित हैं जो नारी यानि शक्ति पूजा के लिए प्रेरित करती हैं।
चैत्र और अश्विन मास के नवरात्र में दूर-दूर से भक्त माता शीतला के दर्शन और पूजन करने आते हैं और यहां कच्ची लस्सी (दूध) चढ़ाते हैं। यहां खेत्री बीजने की भी परंपरा है। यह मंदिर सुबह पांच बजे से दो पहर 12 बजे और बाद दोपहर तीन बजे से रात नौ बजे तक खुला रहता है। इस मंदिर परिसर में कई अन्य देवी देवताओं के भी विग्रह प्रतिष्ठापित हैं।

माता भद्रकाली

यह मंदिर शहर के कटरा खजाना क्षेत्र में स्थित है। मता भद्रकाली मंदिर के मारे में मान्यता है कि यह करीब 1500 साल पुराना है। यहां महंथ परंपरा चलती है। इस समय इस मंदिर के 1500वें पीढ़ी के महंत गद्दीशीन है और मंदिर के प्रबंध का कार्यभार उनके परिवार के लोग संभालते हैं। यहां लोग नारियल चढ़ाकर सुखना मांगते हैं। ऐसी आस्था है कि यहां मांगी मन्नत जल्द पूरी होती है। कहा जाता है कि यहां सच्चे मन से भक्त जो भी मांगते हैं वह मतारानी देती हैं।
माता भद्रकाली मंदिर में लोग जलचर, थलचर और नभचर यानी भेंड, बकरे और मुर्गे की ‘बली’ देते हैं। हलांकि यहां बलि प्रथा नहीं है। बलि के रूप में माता को अर्पित किए गए इन जीवों को खुले वातावरण में छोड़ दिया जाता है, जो स्वच्छंद हो विचरण करते हैं। इसके अलावा यहां माता भ्रदकाली को मदिरा भी चढ़ाई जाती है, लेकिन नवरात्र में माता को मदिरा का प्रसाद नहीं चढ़ाया जाता। इसी मंदिर परिसर में काली माता, भैरव और भगवान शिव का भी मंदिर है।
माता भ्रदकाली मंदिर की एक खास बात यह है कि यहां दो देवियों (भद्रकाली और काली माता) की मूर्तियां एक स्थापित हैं। महंत भोला नाथ शर्मा की पत्नी कंचन शर्मा बताती हैं कि मंदिर प्रतिष्ठापित दोनों मूर्तियां स्वंय भू हैं। इन दोनों मूर्तियों की खास बात यह है कि इनकी पीठ आपस में जुड़ी है। कंचन शर्मा कहती हैं यह इस तरह का इकलौता मंदिर है जां दो देवियों की पीठ आपस में जुड़ी हुई है और दोनों देवियों के अलग-लग मंदिर (आगे-पीछे) बने हैं। कंचन शर्मा कहती हैं कि एक देवी का रौद्र रूप है और दूसरी का शांत। वे कहती हैं कि माता भ्रदकाली को शराब का भोग लगता है, जबकि काली माता को मदिरा नहीं चढ़ाई जाती । माता भ्रदकाली का मंदिर सुबह चार से रात्रि 10 बजे तक खुला रहता है।

चिंतपूर्णि माता मंदिर

यह मंदिर वाल्ड सिटी के अंदर नमक मंडी में है। माता चिंतपूर्णि मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह मंदिर करीब 300 वर्ष पुराना है। इस मंदिर में माता रानी पिंडी स्वरूप विराजमान है। मंदिर के ट्रस्टी मोहन लाल और मुख्य पुजारी गंगा राम बताते हैं कि इस मंदिर प्रतिष्ठापित पिंडी माता चिंतपूर्णी से लागई गई थी। यहां देवी की प्रतिमा भी प्रतिष्ठापित है। यहां पर 51 खेत्रियां बीजी जाती हैं। परिवार संग मंदिर में दर्शन करने आए सुरिंदर कुमार, रमेश श्रीवास्तव कहते हैं कि वैसे यहां पूरे वर्ष भक्तों के आने का क्रम जारी रहता है, लेकिन नवरात्र के दिनों में यहां प्रतिदनि एक हजार से अधिक भक्त दर्शन-पूजन करते हैं।
शहर के अंदरुनी भाग शक्तिनगर चौक में स्थित काली माता मंदिर के बारे में मान्यता है कि यह मंदिर 100 साल से भी अधिक प्राचीन है। मंदिर में काली माता की आदमकद मूर्ति प्रतिष्ठापित है। नवरात्र के दिनों में यहां भक्तों की काफी भीड़ होती है। इस मंदिर में तस्वीरें खींचना प्रतिबंधित है। स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रसिद्ध भजन गायक स्व. नरेंद्र चंचल भी अपने प्रारंभिक दिनों में यहां पर होने वाले कीर्तन में भजन गाया करते थे। मुंबई जाने के बाद भी जब भी वह अमृतसर आते थे तो इस मंदिर में शीश नवाने अवश्य आते थे।

चौंक फवरा स्थित लौंगा वाली माता मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थाना विक्रमी संवत 182222 में हुई थी। इस मंदिर में भी भक्तरी दूध चढ़ा कर माता रानी का आशीर्वाद लेते हैं। यह मंदिर अखाड़ा संगलावाला की शाखा माना जाता है। बताया जाता है कि मंदिर के बाहर एक छोटा कुआं हुआ करता था। उस समय छोटे मंदिर के संस्थापक निर्वाण प्रीत दास जी थे। उनके शिष्य बाबा लौंग दास जी हुए। उन्होंने संकल्प दिया कि वे माता लौंगा वाली देवी की स्थापना करेंगे। नौ दिनों तक उन्होंने लौंग खाकर नवरात्र का व्रत रखा और लौंगा वाली माता का मंदिर बनवाया। इस मंदिर में मातारानी की पिड़ी की प्राण प्रतिष्ठापना करवाई। यही मंदिर कालांतर में चल कर लौंगा वाली माता के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यहां देश-विदेश से आने वाले हजारों भक्त और पर्यटक शीश झुकार माता का आशीर्वाद लेते हैं।

शहर के रानी का बाग में स्थित माता लाल देवी मंदिर में इन दिनों भक्तों की भारी भीड़ उमड़ रही है। वैसे तो यहा प्रति दिन सैकड़ों संखया में भक्त आते हैं, लेकिन नवरात्र में इस समय भक्तों की संख्या 3000 से अधिक पहुंच रही है। मुख्य रूप से मां दुर्गा को समर्पित इस मंदिर को वैष्णो देवी मंदिर भी कहा जाता है। क्योंकि यहां पर माता वैष्णो देवी प्रकृति ठीक वैसे ही बनाई गई जैसा कि कटरा स्थित माता के भवन में है। बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण माता लाल देवी ने करवाया था। कहा जाता है कि माता लाल देवी मानव देह में साक्षात देवी की अवतार थीं। मान्यता है कि जो भक्त मता वैष्णो देवी की यात्रा पर जाने में असमर्थ होते हैं उन्हें माता लाल देवी मंदिर में दर्शन करने भी उतना ही पुण्य मिलता है जितना की माता के भवन में जाने पर।

Jharokha

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