वाराणसी। यूं ही नहीं करते यूं ही नहीं कहते काशी के कण-कण शंकर का बस होता है। अनादिकाल से काशी भगवान शिव की नगरी कहा जाता रहा है। रंग भरी एकादशी के दिन ऐसा लग रहा था मानो समूची काशी ही शिव मय हो गई। मौका था भगवान शिव का माता गौरा को उनके मायके से विदा कराकर लाने का। भगवान शिव के गौना के साथ ही काशी में होली के महापर्व का शुभारंभ हो गया।
मान्यता है कि नर मुंडो की माला पहनने वाले भगवान शिव रंगभरी एकादशी के दिन ही माता पार्वती का गोना करवा कर काशी पहुंचे थे। चांदी की पालकी पर विराजमान भगवान शिव और माता पार्वती के साथ काशी के लोगों ने जमकर होली खेली। यहां तक की खास काशी की शकल गलियों से लेकर गंगा घाट तक रंगों से सराबोर हो गया। भगवान शिव के मानने वाले अघोर पंथ के उनके अनुयायियों ने भी हरिश्चंद्र घाट पर जमकर भक्तों से होली खेली।