गाजीपुर। मकर संक्रांति जिसे उत्तर प्रदेश और बिहार में खिचड़ी के नाम से जाना जाता है। वर्ष २०२१ में मकरसंक्रांति खासं संयोग लेकर आ रहा है। इस वर्ष इसकी तिथियों को लेकर कोई भ्रम नहीं है। यह पर्व १४ जनवरी वीरवार को ही मनया जाएगा। इसमें कोई संसय नहीं है। यह कहना है गोर्जे का मंदिर के मुख्य पुजारी पं: भजन लाल शर्मा का ।
इसी दिन बिहू, पोंगल और उत्तरायण भी मनाया जाएगा। और इसी दिन से प्रयागराज इलाहबाद में माध मेले का शुभारंभ हो जाएगा। यह मेला करीब एक माह तकचलता है। इस मेले में आने वाले लोग संगम में स्नान कर कल्प वास भी करते हैं।
8 :14 पर मकर राशि में प्रवेश कर रहे हैं सूर्य
पं: नंद किशोर मिश्र कहते हैं कि मकर संक्रांति का पर्व सूर्य की गति पर निर्भर करता है। इस बार 14 जनवरी को सुबह 8:14 मिनट पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश कर रहे हैं। वीरवार को सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने से यह पर्व नंदा और महोदा नक्षत्र के अनुसार यह महोदरी संक्रांति मानी जाएगी।
शिक्षकों, ब्राह्मणों और विद्यार्थियों के लिए शुभ
पं: नंद किशोर मिश्र के अनुसार महोदरी संक्रांति होने की वजह से यह लेखकों, शिक्षकों, विद्यार्थियों और ब्राह्मणों के लिए अति शुभ और लाभकारी मानी जाएगी। वे कहते हैं कि शास्त्रसंमत है कि संक्रांति के 6:24 मिनट पहले पुण्यकाल लागू हो जाता है। इसलिए इस वर्ष तड़के स्नानदान शुरू हो जाएगा । इसदिन बाद दोपहर 2:30 मिनट तक मकर संक्रांति संबंधित कार्य किए जा सकेंगे। वैसे पूरे दिन स्नानदान किया जा सकेगा।
हर साल 15 जनवरी को क्यों मनाई जाती है खिचड़ी
मकर संक्रांति की तिथियों को लेकर हर वर्ष भ्रम स्थिति बनी रहती है। कई लोग तर्क देते हैं कि जब 14 जनवरी को सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तो खिचड़ी 15 को क्यों मनाई जाती है। इसके पीछे एक कारण है। पं: दयाशंकर चतुर्वेदी कहते हैं कि यह पर्व| सूर्य की गति पर पर निर्भर करता है। सूर्य जब 14 जनवरी की रात को या फिर शाम को मकर राशि में प्रवेश करता है तो ऐसी स्थित में शास्त्रों के अनुसार अगले दिन यानी 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनाने का विधान है। इसी लिए 15 जनवरी को खिचड़ी मनाई जाती, लेकिन इस साल ऐसा नहीं है। सूर्य 14 जनवरी को ही मकर राशि में प्रवेश कर रहे हैं।
हर्षवर्धन के समय समय 24 दिसंबर को मनाई गई थी मकर संक्रांति
इतिहासकार डॉ: ब्रह्मानंद सिंह कहते हैं कि मकर संक्राति को लेकर तिथियों में बदलाव कोई नया नहीं है। उनके अनुसार सम्राट हर्षवर्घन के समय छठवीं शताब्दी में 24 दिसंबर को मकार संक्रांति मनाई गई थी। डॉ: सिंह के अनुसार जोतिषिय गणनाओं और घटनाओं को जोड़ने से महाभारत काल में भी मकरसंक्रांति दिसंबर में मनाई गई थी। यही नहीं मुगल बादशाह अकबर के समय 10 जनवरी और शिवाजी महाराज के समय 11 जनवरी को मकरक्रांति मनाई गई थी।
प्रयाग में ही कल्पवास क्यों
मकरसंक्रांति और माघ मेलेको लेकर सवाल उठता है कि प्रयागराज में ही मकर संक्रांति का स्नान और कल्पवास पुण्यदायक क्यों माना गया है। प्रयाग में कल्पवास की परंपरा युगों-युगों से चली आई है। पं: आत्म प्रकाश शास्त्री कहते हैं- श्री राम चरित मानस में एक चौपाई है-
भरद्वाज मुनि बसहिं प्रयागा। तिन्हहि राम पद अति अनुरागा।।
तापस सम दम दया निधाना। परमारथ पथ परम सुजाना।।
माघ मकरगत रबि जब होई। तीरथपतिहिं आव सब कोई।।
देव दनुज किंनर नर श्रेनी। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनीं।।
पूजहि माधव पद जलजाता। परसि अखय बटु हरषहिं गाता।।
भरद्वाज आश्रम अति पावन। परम रम्य मुनिबर मन भावन।।
तहाँ होइ मुनि रिषय समाजा। जाहिं जे मज्जन तीरथराजा।।
मज्जहिं प्रात समेत उछाहा। कहहिं परसपर हरि गुन गाहा।।
The date of Makar Sankranti depends on the speed of the Sun.
सूर्य की गति पर निर्भर करती है, मकर संक्रांति की तिथियां