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Chhath festicl 2023: परंपरा और संस्कृति का वाहक छठ महापर्व

Chhath festival, carrier of tradition and culture

गंगा घाट पर टिमटीमाते दीये, छठ के पारंपरिक गीतों और वैदिक मंत्रों की उठती स्वर लहरियां एक अलौकिक दृश्य प्रस्तुत करती हैं। इन्हें देख कर एकबारी ऐसा लगता है जैसे आसमा से असंख्य तारे एक साथ धरती पर उतर आए हो।

ऐसा अद्भुत और विहंग दृश्य हर साल पटना सहित उत्तर भारत के सभी प्रमुख गंगा घाटों, नदियों और तालाबों के किनारे देखने को मिलता है। यह पावन मौका होता है कार्तिक मास के शुल्क पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाए जाने वाले छठ पर्व की। छठ माई, छठ, सूर्य षष्ठी या डाला छठ नाम से प्रसिद्ध यह पर्व मुख्य रूप भगवान भास्कर यानि सूर्य को समर्पित है।यह त्‍योहार एक साल में दो बार मनाया जाता है पहली बार चैत्र महीने में और दूसरी बार कार्तिक महीने में। हिन्दू पंचांग के अनुसार, चैत्र शुक्लपक्ष की षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ त्‍योहार को चैती छठ कहा जाता है जबकि कार्तिक शुक्लपक्ष की षष्ठी पर मनाए जाने वाले इस त्‍योहार को कार्तिक छठ कहा जाता है।

छठ बिहार राज्य का प्रमुख पर्व है। देश-परदेश में रहने वाला बिहार का व्यक्ति अन्य त्योहारों में अपने गांव-घर पहुंचा न पहुंचे लेकिन, छठ पर उसका पहुंचना जरूरी रहत है। इस लिए इन दिनों देश के कोने-कोने से बिहार की तरफ जाने वाली ट्रेनों लंबा वेटिंग चल रहा है। फिर भी छठ पर अपने गांव पहुंचने के लिए प्रत्येक बिहारी लालाइत रहता है।

मन्यता है कि छठ पूजा का चलन बिहार से ही शुरू हुआ जो आज देश और दुनिया के कई देशों में मनाया जाता है। यानि बिहार के लोग जहां कहीं भी गए अपनी संस्कृति और परंपरा को कायम रखा। मुंगेर से लेकर मारिशश तक और पटना से लेकर मुंबई तक इस पर्व की धूम रहती है।

उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, आसाम और ओडिसा से निकल कर यदि हम बात करें पंजाब की यहां भी सूबे 23 में छह पूर्व वैसे ही मनाया जाता है जैसा कि बिहार और पूर्बी उत्तर प्रदेश में। पंजाब के तीन प्रमुख बड़े शहरों लुधियाना, जालंधर और अमृतसर में तो छठ पर्व पर वृहद आयोजन किए जाते हैं। लुधियाना सतुलज किनारे, नहरों और तालाबों के किनारे छठ व्रती सूर्य की उपासना करते हैं। इसी तरह जांधर की बात करें तो यहां की प्रसिद्ध देवी तालाब मंदिर , और नहर के किनारे हजारों की संख्या में लोग पूजा करते हैं। वहीं अमृतर के प्रसिद्ध दुर्ग्याण तीर्थ परिसर और तारांवाला नहर के किनारे छठ पूजा को संपन्न कराने के लिए मंदिर कमेटी और जिला प्रशासन की ओर से व्यापक प्रबंध किए जाते हैं। नहाय खाय और खरना से शुरू होने वाला छठ महा पर्व इस बार 19 नवंबर को पड़ रहा है।

कैसे और कब शुरू हुआ छठ पर्व

छठ की पूजा कब और कैसे शुरू हुई यह तो ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता लेकिन, इतना जरूर है कि सूर्यषष्ठी व्रत अनादि काल से चला आ रहा है। क्योंकि सनातन धर्म में प्रकृति की पूजा किसी न किसी रूप में की जाती है। यानि धरती पर मौदू प्रणि को प्रकृति इनता कुछ दे रही है तो उसका आभार भी तो जताना चाहिए। मान्यता है कि रामायण काल में माता सीता ने सूर्य देव की उपासना की थी, और वह तिथि थी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि।

इसके बाद एक उल्लेख मगध नरेश जरासंध का भी आता है। कहा जाता है कि जरासंध को कुष्ठ रोग हो गया था। जरासंध ने बहुत उपचार करवाया पर ठीक नहीं हुआ। इसदौरान किसी ब्राह्मण ने उसे सूर्य उपना करने सलाह दी। जरासंध ने सूर्य उपासना की और उसका कुष्ठ ठीक हो गया। इसके बाद जरासंध ने सूर्य की उपासना शुरू कर दी, तभी से छठ का प्रचलन माना जाता है।

छठ को लेकर एक अन्य मान्यता कर्ण और द्रौपदी का भी है। मन्यता है कि कर्ण सूर्य पुत्र और महादानी था। यह बात हर कोई जातना है। कर्ण के बारे में कहा जाता है कि वह गंगा में प्रतिदिन सुबह कमर तक जल में खड़े हो कर सूर्य की उपासना करता था। आज भी छठ व्रती कमर तक जल में घंटो खड़े रह कर सूर्य को अघ्य देते हैं। महाभारत में ही एक द्रौपदी की कथा आती है। कथा के अनुसार जुए में हारे हुए पांडवों के राज्य की प्राप्ति के लिए भगवना श्री कृष्ण की सलाह पर द्रौपदी ने भी सूर्य की उपसना की थी।

सूर्य के साथ उनकी दोनो पत्नियों की भी होती है पूजा

छठ महा पर्व एक ऐसा पर्व है, जिसमें डूबते और उगते हुए सूर्य की पूजा की जाती है। आम तौर पर लोग अस्त होते हुए सूर्य को अर्घ्य नहीं देते और नहीं ऐसी कोई तस्वीर अपने घर में लगाते हैं। लेकिन, छठ के दिन अस्त और उदय होते हुए सूर्य की उपासना की जाती है और उन्हें अर्घ्य दे कर व्रत संपन्न किया जाता है।
मान्यता है कि अस्त और उदय होते सूर्य की पूजा के समय आदित्य के साथ-साथ उनकी दोनो पत्नियों संध्या और ऊषा की भी पूजा की जाती है। शायद यही कारण है कि डूबते और उगते हुए सूर्य की पूजा की जाती है।

समाज के हर वर्ग को साथ जोड़ता है छठ पर्व

छठ पर्व न केवल सनातन संस्कृति का वाहक है बल्कि समाज के हर वर्ग को साथ जोड़ता भी है। क्योंकि छठ पर्व में बच्चे बांस से बनी टोकरियों और सूप का प्रयोग तो किया ही जाता है। साथ ही इसमें मौसमी फलों के साथ-साथ सब्जियों और अन्न का भी प्रसाद के तौर पर प्रयोग होता है। इससे बांस की टोकरियां बनाने वालों के लेकर मिट्टी के दीए, भांडे बनाने वाले, फल और सब्जियां उगाने वाले और दुकानदारों को भी साथ जोड़ता है।