Home धर्म / इतिहास अमृतसर के वो तीन मंदिर, जिन पर मढ़ा गया है सोना 

अमृतसर के वो तीन मंदिर, जिन पर मढ़ा गया है सोना 

आस्था एंव इतिहास के इस पुरातन नगर में कई ऐसे अनेक गुरुद्वारे और मंदिर और भी हैं जाहं सोने एवं चांदी के छत्र शोभित हैं, जो भारत की समृद्ध एवं गौरवशाली विरासत को संजोए यहां के लोगों की धर्म के प्रति गहरी आस्था को अभिव्यक्त करते हैं।

by Jharokha
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अमृतसर : पंजब+आब से बना पांच नदियों के पवित्र जल से सिंचित भारत भूमि का यह वह पश्चिमी छोर है जहां सिधुं नदी के किनारें मान सभ्यता की पहली किरण प्रस्फटिट हुई थी।  इसी धरा धाम पर विश्व के प्राचीनतम धर्म ग्रंथों में से एक ऋग्वेद की रचना हुई थी।  यह वहीं भूमि है जहां जनक नंदिनी जगत जननी माता सीता ने परित्यक्ता का जीवन व्यतीत करते हुए आदि कवि महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में रघुकुल चिराग लव और कुश नाम के दो सुकुमारों को जन्म दिया।

पंजाब की इसी पवित्र धराती पर स्थित है सिख गुरु श्री रामदास जी महाराज का बसाया हुआ लगभग चार सौ साल पुरान नगर अमृतसर।  अमृतसर के बारे में कहा जाता है कि यहां पर स्थित सरोवर (श्री हरिमंदिर साहिब के सरोवर) के नीचे अमृतकुंड दबा हुआ है, जिसके जल में स्नान करने से बीबी रजनी का कोढ़ी पति स्वस्थ्य व सुंदर पुरष बनया और कौवे हंस।

यही वह पावन स्थाना है जहां सर्वाधिक सिख गुंरु के चरण पड़े थे। यहीं पर भक्ति एंव का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। यह उत्तर भारत का एक मात्र ऐसा ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थल है जिसके आगोश में एक नहीं दो नहीं बल्कि स्वर्ण जड़ित हजारों लाखों दिलों के अगाध आस्था का केंद्र बिंदु तीन भव्य मंदिर शहर के विभिन्न भागों में स्थित हैं, जो यहां के लोगों की धर्म के प्रति समर्पण की भावना को बखूबी बयान करते हैं।  बरामदे युक्त विशाल परिसर के मध्य बने सरोवर के बीचोबीच स्थित है सिख धर्म की आस्था का प्रतीक स्वर्ण मंदिर ।

यह मंदिर पूर्णरूप से स्वर्ण पतरों से ढकी दो मंजिली भव्य इमारत है।  इसके चार दरवाजे चारों दिशाओं में खुलते हैं।  इसके बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर के चारों दरवाजे हर धर्म जाति के लोगों के लिए खुले हैं।  गुरु ग्रंथ साहिब के दिव्य प्रकाश से जगमगाते इस मंदिर में आंतरिक और बाहरी भाग की दीवारों पर की गई दुर्लभ एंव दिलकश ऑयल वारटर पेंटिंग देखने वालों को इस कदर मुग्ध करदेती है कि बिना पलक झपकाये निहारते रहने को जी चाहने लगता है।  बारीक बेलबूटों को इन दिवारों पर कड़ी संजीदगी के साथ जीवंत रूप प्रदान किया गया है जो कलाकारों की कला का उम प्रदर्शन है।  सिख कलाकारों की इस नायाब कृति को सुरक्षित रखने के लिए इन्हें पारदर्शी शीशों से ढका गया है।  इसी प्रकार इसकी छत को स्वर्ण जड़ित जग्गचीाकरी एवं मीनाकारी से पिरोया गया है।  मंदिर के मध्य में लगे नक्काशीदार बारीक एंव मनभावन शीशे एक अलग ही काल्पनिक दृश्य प्रस्तुत करते हैं।  बताया जाता है कि ऐसी बोजोड़ कला दुनिया में ओर कहीं देखने को नहीं मिलती।

स्वर्ण मंदिर

अमृतसर  को सिख धर्म के चौथे गुरु श्री रामदास जी ने सन 1576 में बसाया और अमृत सरोवर के मध्य श्री हरिमंदिर साहिब की नींव विक्रमी संवत 1645 अर्थात 14 जनवरी 1588 को भाई मीयां मीर के हाथों रखवाई।  इसके बाद विक्रमी संवत 1616 अर्थात 28  अगस्त 1604 को इस पावन इमारत में श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का प्रकाश किया गया।  कालांतर में इस मंदिर के ऊपरी हिस्से पर सन 1802 में शेर ए पंजाब महाराजा रणजीत सिंह ने सोने के पत्तर चढ़वाये, जिस कारण इस मंदिर का नाम स्वर्ण्उा मंदिर पड़ा जो आज अपनी भव्यता के कारण विश्वभर के लोगों में आकर्षण एंव जिज्ञासा का केंद्र बना हुआ है।

दुर्ग्याणा मंदिर

अमृतसर आगमन के दौरान हिंदू धर्म महान चिंतक एवं प्रकांड विद्वान पं. मदन मोहन मालवीय जी के परामर्श से श्री गुरु हरसहायमल कपूर द्वारा 1925 में करवाया गया लगभग 130 हिंदू देवी-देवताओं के विग्रहों से सुसज्जित हिंदू धर्म के आस्था का मुख्य केंद्र ‘श्री दुर्ग्याणा तीर्थ’ इस नगर का विशाल एवं भव्य परिसर वालापहला हिंदू मंदिर है। 542 गुणे 528 चौड़े सरोवर के मध्य स्वर्ण पत्तरों से ढका खूब सूरत चांदी की नक्काशीदार विभिन्न देवी देवताओं की आकृतियों से सुसज्जित दरवाजों से युक्त यह मंदिर मुख्य रूप से लक्ष्मीनारायण को समर्पित है।  दिन में सूरज की किरणों एवं रात में जगमगाते सैकड़ो बल्बों की रोशनी जब मंदिर के स्वर्णजड़ित पत्तरों से टकराती है तो सरोवर के ठहरे हुए नीले जल में विलक्षण आभा बिखेरती है जिसे देख आगंतुक भाव विभोर हो उठते हैं।  सहसा उन्हें उअपनी आंखों पर यकीन ही नही होता कि वे विश्व प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर के दर्शन कर रहे हैं या दुर्ग्याणा तीर्थ के।

शिवाला बागभाइयां

इसी नगर के एक अन्य हिस्से में स्थित है स्वर्ण जड़ति शिखरों से युक्त शिवाला बाग भाइयां के नाम से मशहूर भगवान शिव का मंदिर।  लगभग 10, 000 वर्ग गज के क्षेत्रफल में फैले इस मंदिर के अस्तित्व में आने के बारे में बताया जाता है कि भारत विभाजन के समय आज के पाकिस्तान के मुल्तान शहर से भारत में बसने की आए लिए आया कोई शिवभत अपने साथ केाई घरेलू सामान तो नहीं ला पाया, परंतु दंगायों से बचते-बचाते बस यही शिवलंगि साथ लेकर अमृतसर आया और इसके यहां पर स्थापित करने की अपनी इच्छा जाहिर की।  इस शिव भक्त की इच्छाओं का आदर करते हुए अमृतसर वासियों ने आपसी सहयोग इस भव्य शिव मंदिर का निर्माण करवाया।  दूर से ही दिखाई देंती मंदिर की स्वर्णजड़ित चोटियां जिन पर पवनान्दोलित होती धर्म पताकाएं ऐसे प्रतीत होती हैं, जैसे बाहें पसारे अपनी तरफ बुला रही हों।

आस्था एंव इतिहास के इस पुरातन नगर में कई ऐसे अनेक गुरुद्वारे और मंदिर और भी हैं जाहं सोने एवं चांदी छत्र शोभित है, जो भारत की समृद्ध एवं गौरवशाली विरासत को संजोए यहां के लोगों की धर्म के प्रति गहरी आस्था को अभिव्यक्त करते हैं।

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