यूं तो अमृतसर की पहचान सर्व्ण मंदिर और जलियांवाला बाग के कारण विश्व स्तर पर है। लेकिन, इसी शहर में कई ऐसे मंदिर हैं जो पर्यटन के नक्शे से गायब होते हुए अपने आप में इतिहास समेटे हुए है। इन्हीं मंदिरों में से एक है शिवालय वीरभान। कहा जाता है कि इसका इतिहास करीब दो सौ साल पुराना है। और इसकी वास्तुकला भी अनोखी है। इसके एकादश शिवलिंगों वाले मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
महाराजा रणजीत सिंह के समय का है मंदिर
शहर के घी मंडी में स्थित शिवालय वीरभान के बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर का इतिहास करीब दो सौ साल पुराना है। मंदिर के अस्तित्व के बारे में प्रचलित है कि इस जगह पर पहले वीरभान नाम के एक फकीर रहा करते थे। हलांकि कुछ लोगों का कहना है कि वीरभान फकीर नहीं थी बल्कि महाराजा रणजीत सिंह के वैद्य थे। लोक्तियों के अनुसार एक बार शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह किसी भयंकर रोग से ग्रसित हो गए। लाहौर में उनके वैद्यों ने उनका बहुत उपचार परन्तु वह ठीक नहीं हो रहे थे। इसके बाद वीरभान ने उन्हें कोई औषधि दी, जिससे वह जल्द ही स्वस्थ हो गए। इसके बाद महाराजा ने वीरभान से कहा- महाराज कोई सेवा बताएं। इसपर, वीरभान की कहा कि आप यहां पर शिव मंदिर बनवा दें। इसके बाद महाराजा रणजीत सिंह शिव मंदिर के निर्माध के वीरभारन को सरकारी खजाने से घन दिया। और इस मंदिर का निर्माण किया गया।
एक क्विंटल फूलों से होता है शिव का शृंगार
कहा जाता है कि सावन में काशी का कंकर-कंकर शंकर होता है। कुछ ऐसी ही मान्यता पंजाब के अमृतसर में स्थित शिवमंदिरों के बारे में भी प्रचलित है। यहां भी करीब सौ से अधिक प्रचीनन शिवालय हैं। और इन मंदिरों में शिव का शृंगार देखने लायक होता है। परंतु इनमें से प्रशिद्ध शिवालय वीरभान में किया गया शिव शृंगार। सावन में प्रत्येक सोमवार को विभिन्न प्रजातियों के करीब एक क्वींटल फूलों से किए जाने वाले शृंगार को देखने और शिव की पूजा करने के लिए अमृतसर के नहीं बल्कि पंजाब के दूसरे जिलों से भी लोग आते हैं। इसके अलावा विदेशों में बसे पंजाबी भी एकादश शिवलिंगों की पूजा अर्चना करने आते हैं।
भोर की पहली और संध्या की आखिरी किरण करती है भगवान शिव का दर्शन
मंदिर में प्रतिष्ठापित ११ शिवलिंगों वाले शिवालय वीरभान का निर्माण इस तरह से किया गया है कि सूर्य की पहली और आखिरी किरण मध्य में प्रतिष्ठापित शिवलिंग पर पड़ती है। ऐसा लगता है जैसे भगवना भास्कर भी अपने आराध्य भोले नाथ के दर्शनों से दिन की शुरुआत करते हैं और उन्हीं के दर्शनों के बाद विश्राम। गोलाकार बना यह मंदिर वास्तुकला कि दृष्टि से भी उम्दा है। शायह यह पहला ऐसा मंदिर है जिसमें उदय होते सूर्य की पहली और अस्त होते सूर्य की आखिरी किरण शिवलिंग को स्पर्श करती हो।
भितिचित्र कहते हैं मंदिर की प्राचीनता की कहानियां
मंदिर की बाहरी अंदरुनी दिवारों में पर बने विभिन्न देवी देवताओं, यक्ष-यक्षिणियों, गंर्धवों, नाग व किन्नरों के बने भिति चित्र मंदिर की भव्यकता और उसकी प्राचीनता की गवाही देते हैं। समय के थपेड़ों को सहते हुए यह ऑयल पेंटिंग बेशक आज अपने अस्तित्व को बचाने की जद्दोजहद कर रही हो लेकिन अपने यौवन काल में यह अद्भुत जरूर रही होगी।
शिव के समाधिस्त होने का आभास कराता है मंदिर का शिखर
११ शिवलिंगों और मंदिर के शिखर के बीच करीब ६०-६५ फुट की दूरी अपने आप में एक खूबी है, जो अन्य किसी शिवालय में देखने को नहीं मिलती। चूना प्लास्टर से बने इस मंदिर की दिवारों पर मिट्टी का लेप किया गया है ताकि मंदिर को सूर्य की उष्मा से बचाया जा सके। इस मंदिर के ऊंचे शिखर को देखना शिव के समाधिस्त होने का आभास कराता है। मंदिर के शिखर पर पवनांदोलित होता धर्मध्वज ऐसा लगता है जैसे भक्तों को बाहें पसारे बुला रहा हो।
वीरभान की आत्मका करती है पहला दर्शन
मंदिर परिसर में ही वीरभान की समाधि है। लाहौरी ईंटो से बनी यह समाधि भी उतनी ही आकर्षक है जितना कि उनके आराध्य भगवान शिव का मंदिर। कहा जाता है वीरभान के निधन पर महाराजा रणजीत सिंह बहुत दुखी हुए थे। आम धारणा है कि आज भी वीरभान की आत्मा अपने आराध्य भगवान शिव का पहला दर्शन करती है।
दो क्वींटल दूध में बनी खीर का लगता है लंगर
मंदिर प्रबंधन का कार्यभार देख रहे संजीव शर्मा कहते हैं कि सावन के प्रत्येक सोवार को दो क्वींटल दूध में बनी खीर का लंगर लगाया जाता है। उन्होंने कहा कि इसका प्रबंध मंदिर और संगत की तरफ से किया जाता है। इसके अलावा महाशिवरात्री और अन्य त्योहारों पर भी इसी तरह लंगर लगाया जता है।
कैसे पहुंचें
आस्था एवं इतिहाका केंद्र यह मंदिर रेलवे स्टेशन से करीब ६ किमी और बस स्टैंड से डेढ़ किमी की दूरी पर शेरांवाला गेट के पास स्थित है। अगर आप स्वर्णमंदिर के दर्शन के लिए आए हैं तो यहां से भी करीब डेढ़ किमी की दूरी पर घी मंडी क्षेत्र में प्रतिष्ठापित है शिवालय वीरभान। यहां तक पैदल भी पहुंचा जा सकता है।