
रजनीश मिश्र गाजीपुर सावन के महीने मे शिव मंदिरों का महत्व काफी बड़ जाता है।सावन मास के हर सोमवार को शिव मंदिरों मे कावरिये गंगा जल लेकर बोल बंम के जयकारों के साथ लाइन मे लगे रहते है ।सावन मास मे खास तौर से उन मंदिरों का महत्व और बढ़ जाता है जौ स्थान पुराणों में वर्णित है ।
पुराणों में वर्णित कामेश्वर धाम बलिया जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कारो गांव में पड़ता है जिसे लोग कामेश्वर धाम के नाम से भी जानते हैं कामेश्वर धाम का महत्व इसलिए अधिक बढ़ जाता है कि शिव पुराण वह बाल्मीकि रामायण में वर्णित वही जगह है जहां देवताओं के सेनापति कामदेव को भगवान शिव ने अपने तीसरे नेत्र से जलाकर भस्म कर दिया था
आज भी मौजूद है अधजल आ आम का वृक्ष
यहां आज भी अधजल आम के फल का हरे भरे वृक्ष मौजूद है | यहां कामदेव ने तपस्या में मगन ( लीन ) आम के वृक्ष के पीछे से छिपकर भगवान शिव को पुष्प बाण चलाया था तब शिव ने क्रोध में आकर कामदेव को अपने तीसरे नेत्र से जलाकर भस्म कर दिया था । तब यह बृक्ष भी आधा जल गया था यहां के बुजुर्गों का कहना है की यह वही आम का पेड़ है। जहां कामदेव छिपकर भगवान शंकर पुष्प बाण चलाया था शिव के क्रोध से कामदेव के साथ साथ वृक्ष भी आधार जल गया था यह वृक्ष कभी सूखा नहीं ऐसे ही यह हरा भरा रहता है और इसे लोग अधजल वृक्ष कहते हैं ।
बाल्मीकि रामायण में भी वर्णित है या जगह
भगवान शिव के तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म हो जाने की कथा को महर्षि बाल्मीकि ने बाल्मीकि रामायण में वर्णित किया है यह बात तब की है जब विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को लेकर अयोध्या से अग्रसर अब बक्सर के सिद्ध आश्रम यात्रा का है ।महर्षि बालमिकी ने बालमिकी रामायण मे श्लोकों द्वारा वणन किया है ।
श्लोक तौ प्रमातो महाविर्यो दिव्यां त्रिपथगांनदिम्। दहशातेवत स्तत्रसरम्बा:संगमे शुभे। तत्रश्रम् पदम् पुण्यमृषीणामुग्रतेजषाम । वहुवर्षसहस्त्राणि तप्मता परम तप:।। तट्टष्ट्वा परप्रीतोराघवो पुण्यमा श्रम । ऊचतुस्तमहात्मानं विश्वामित्रमिदं वच: कस्यायममश्रम:पुण्य:कोन्वास्मिन्वसते पुमान ।। भगव श्रोतामिच्छाव:परं कौतूहल हि नो तयोस्तदवचनश्रुत्वा प्रहस्यमुनिपुंगव:।। अब्रवी च्द्मतां रामस्यायं पूर्व आश्रम:।। कंदर्पो मुर्तीमानासात्काम इत्मुच्योत वुधै:।।
तपस्यंतमिह स्थागु नियमेनसमाहितम्। कृतोद्वाहंतु देवंश गच्छन्त समरु दणम् । धर्षयामास दुर्येधा कृस्च्क्ष महात्मना।। दग्घस्यं तस्यरौह्रेण चक्षुषां रघुनंदना। तस्यगात्रंहत तंत्र निर्दग्घस् महात्मना।। अशरीय:कृत:काम:क्रोधादेवेश्ररेणह।।। विश्वामित्र ने राम और लक्ष्मण को कामदेव को भस्म करने की कहानी का व्यखायन किया है ।जिसे महर्षि वाल्मीकि ने अपने द्वारा रचित रामायण में अर्थ सहित लिखा है ।बाल्मीकि द्वारा कामदेव को भस्म करने का वर्णन बाल्मीकि रामायण के बालकांड में किया है।।
दोनो राजकुमार जब बिश्वामित्र के साथ जा रहे थे ।तो रास्ते मे ही रात्री हो गई रात्री विश्राम के बाद दोनों महाबली राजकुमारों ने परवाह काल नित्य कर्म तर्पण और गायत्री मंत्र का जाप कर तपस्वी विश्वामित्र को प्रणाम किया और आगे चलने को तयार हुए उनको साथ लिए विश्वामित्र उस जगह पहुंचे जहां गंगा और सरयू का संगम है ।वहां पर उन दोनों राजकुमारों ने अनेक ऋषि यों के आश्रम देखें वहां से विश्वामित्र के साथ दोनों राजकुमार उसी जगह पहुंचे जहां कामदेव को भगवान शंकर ने जलाकर भस्म कर दिया था । जो आज कामेश्वर धाम के नाम से विख्यात है
कब हुआ मंदिर का निर्माण
मंदिर के निर्माण के बारे में कीसी को सही पता नहीं है ।यहां के लोगों का कहना है की मंदिर का निर्माण कब हुआ किसने कराया ये इतिहासकार ही बता पायेंगे।लेकिन वही बुजुर्गों व मंहन्थ राम दास जी का कहना है कि अवध के राजा कमलेश्वर ने आठवीं सदी मे यहां मंदिर का निर्माण कराया।जिनके नाम पर ही बलिया जिले के कारो गांव के मंदिर का नाम कामेश्वर धाम के नाम से प्रसिद्ध हो गया ।।
कारो के कामेश्वर धाम का महत्व
पोराणिक ग्रंथों के अनुसार इस जगह पर बिश्वामित्र के साथ भगवान राम व लक्ष्मण भी आये थे ।यहीं पर महर्षि दुर्वासा भी तप किए है अघोरपंथ के संस्थापक किना राम बाबा का दिक्षा यहीं से शुरू हुआ था। वहीं यहां के जनमानस का कहना है की भगवान शंकर भी ताडंव नृत्य कर देव गणो के प्रयास से शान्त होकर गंगा तमसा के पबित्र संगम पर आकर समाधि हो चुके थे।।
बलिया के धार्मिक जगहो मे प्रमुख है कामेश्वर धाम
बलिया जिले मे वैसे तो बहुत सी धार्मिक जगह है।लेकीन इनमे सबसे ज्यादा महत्व बलिया के कारो गांव स्थित कामेश्वर धाम का है ।यहां के लोग बताते है कि इस जगह का नाम पहले कामकारु,कामसिला,यहीं कामकारु पहले अपभ्रंस काम शब्द खोकर कारु फिर कारुन और कारो के नाम से जाना जाता है।