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बलिया । उत्तर प्रदेश के बलिया जनपद के कारो गांव में स्थित भगवान कमेश्वर नाथ का मंदिर अति प्राचीन मंदिरों में से एक है। कहा जाता है कि इसी स्थान पर भगवान शिव ने कामदेव को अपने त्रिनेत्रों से जलाकर भस्म कर दिया था । इसलिए इस मंदिर का नाम कामेश्वर धाम रखा गया। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस स्थल का उल्लेख शिव पुराण और वाल्मीकि रामायण में भी मिलता है।
ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव इसी स्थान पर समाधि में लीन थे तभी इंद्र आदि देवताओं के कहने पर कामदेव एक आम के वृक्ष की ओट में छिप कर भगवान शिव पर फूलों के बाण चला रहे थे, ताकि उनके मन में काम की इच्छा जागृत हो। फूलों के बाणों के घाव से जब शिव का ध्यान टूटा तो क्रोधित होकर उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोलिए जिससे कामदेव भस्म हो गए। लोग यहां पर स्थित एक अधजले आम के वृक्ष को इसका साक्षी बताते हैं।
कहते हैं कि सैकड़ों हजारों साल बाद ही प्रमाण स्वरूप के तौर पर यह आम का वृक्ष आज भी हरा-भरा खड़ा है। यही नहीं इस स्थल का उल्लेख ब्रिटिश गवर्नर जनरल लार्ड कार्नवालिस ने भी अपने गैजेटियर में किया है । लार्ड कार्नवालिस लिखता है कि शिव मंदिर के पास कामेश्वर नाम की एक झील थी । झील आज भी तालाब के रूप में मौजूद है। यहां पर महाशिवरात्रि के दिन बहुत बड़ा मेला लगता है। ऐसी मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन कामेश्वर महादेव की पूजा अर्चना से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं और उन्हें शिव के चारों पहर की पूजा से मनवांछित फल प्राप्त होता है।
अवध नरेश ने बनवाया था मंदिर
ऐतिहासिक साक्ष्यों के मुताबिक अवध नरेश कमलेश्वर ने आठवीं शताब्दी में भगवान शिव के इस भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था । जिसकी वजह से कालांतर में कौलेश्वर के नाम से ही इस मंदिर को कालांतर में कामेश्वर धाम के नाम से जाना जाने लगा।
शिवभक्त किनाराम को भी यही तो मिली थी दीक्षा
कहा जाता है कि अघोर संप्रदाय के महान तपस्वी शिव भक्त किनाराम को भी कारो में ही दीक्षा मिली थी। इसके बाद किनाराम गाजीपुर जनपद के बाराचवर ब्लॉक स्थित करीमुद्दीनपुर के कष्ट हरनी भवानी के स्थान पर पहुंचे थे। यहां से होते हुए भगवान शिव की नगरी काशी में पहुंचे थे।
कारो में महर्षि दुर्वासा ने की थी तपस्या
पौराणिक साक्ष्यों के मुताबिक महर्षि विश्वामित्र के साथ भगवान श्री राम और उनके भाई लक्ष्मण भी भगवान शिव के दर्शन के लिए कामेश्वर नाथ आए थे। यही नहीं पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार महर्षि दुर्वासा ने भी इस स्थान पर कुछ समय तक किया था।