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द झरोखा
कुंभ के मेले में तरह-तरह के संप्रदायों के मानने वाले सांधु-संतों के दर्शन होते हैं। साथ ही इनकी पूजा पद्यति, रहन-सहन, साधना-आराधना आदि के बारे में भी नजदीक से देखने और समझने का मौका मिलाता है। यही नहीं कुंभ के मेले में कई बार अपनों अपने बिछड़ जाते हैं तो कई बार अपनो से बिछड़े मिल जाते हैं। यानि हर तरह से रंगी-बहुरंगी धर्म-संस्कृतियों को अपने समाहित किए हुए हैं कुंभ मेला।
भारतीय धर्मदर्शन की यह बहुरंगी संस्कृति भले ही 12साल पर लगने वाले कुंभ और छह साल पर लगने वाले अर्द्ध कुंभ में देखने मिल जाती है। लेकिन, इसके साथ ही में साधुओं के कुछ ऐसे संप्रदाय के लोगों से भी रुबरूर होने का अवसर मिलता है जिन्हें हम कुंभ के मेले में ही देखते हैं।
जी हां। आज हम बात करने जा रहे अघोरी साधकों और उनकी साधना के बारे में जो अपा शायद ही जानते हों। अघोरी का नाम सुनते ही मन एक ऐसी वीभत्स छवि उभरती है जो जिसकी आंखे लाल और शरीर पर भष्म लपेटे हुए। श्मशान में रहने वाला, मुर्दों का मांस खाने वाला या इंसानी खोपड़ी में पानी पीने वाला संत के रूप में जानाजा जाता है।
दर असल अघोरी शब्द का संस्कृत भाषा में मतलब होता है उजाले की ओर। साथ ही इस शब्द को पवित्रता और सभी बुराइयों से मुक्त भी समझा जाता है, लेकिन अघोरियों के रहन-सहन और तरीके इसके बिलकुल विरुद्ध ही दिखते हैं।
शिव और शव के उपासक

अघोरी मुख्य रूप से शिव के साधक है। क्यों कि वह खुद को तरह से शिव को समर्पित अर्थात शिव में लीन करना चाहते हैं। शैव मत के अनुसार शिव के पांच रूपों में से एक रूप अघोर भी है। क्योंकि शिव को खुद भष्मभूत कहा जाता है। शिव की उपासना करने के लिए ये अघोरी शव पर बैठकर साधना करते हैं। शव से शिव की प्राप्ति का यह रास्ता ही अघोर पंथ की निशानी है।
तीन तरह की साधना करते हैं अघोरी
कहा जाता है कि अघोर पंथ के साधक तीन तरह की साधना करते हैं। ये साधना है शव साधना, जिसमें शव को मांस और मदिरा का भोग लगाया जाता है। शिव साधना, जिसमें शव पर एक पैर पर खड़े होकर शिव की साधना की जाती है। श्मशान साधना। इस साधाना के तहत अघोरी श्मशान में हवन करते हैं।
मुर्दे के साथ बनाते हैं संबंध

अघोरियों के बारे में कहा कि जाता है कि अघोरी या अवघड़ साधु मुर्देा केसाथ साधना के साथ ही उनसे शारीरिक सम्बन्ध भी बनाते हैं। यह बात खुद अघोरी भी मानते हैं। इसके पीछे उनका लॉजिक है कि शिव और शक्ति की उपासना करने का यह तरीका है। अवघड़ों का कहना है कि शिव-शक्ति की उपासना करने का यह सबसे आसान तरीका है।
भयानक वातावरण में भी भगवान के प्रति समर्पण
अघोर पंथ वह पंथ वह पंथ है जो डरावनी यानी वीभत्स में भी भगवान के प्रति समर्पण का भाव रखते हैं। अघोर सांधना करने वाले साधुओं का मानना है कि अगर शव के साथ शरीरित्क क्रिया के दौरान भी उनका मन ईश्वर भक्ति में लगा है तो इससे बढ़कर साधना का स्तर क्या होगा।
जीवित लोगों के साथ भी बनाते हैं संबंध

अघोर पंथ साधक नागा साधुओं या अन्य साधुओं की तरह कठोर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन नहीं करते। अघोरी हमेशा लिपटे रहते हैं। बल्कि शव पर राख से लिपटे मंत्रों और ढोल नगाड़ों के बीच शारीरिक सम्बंध बनाते हैं। यह क्रिया भी साधना का ही एक हिस्सा है। मुख्य रूप से उस वक्त जब महिला रजस्वला हो । कहां जाता है कि ऐसा करने से अघोरियों की शक्ति बढ़ती थी।
चिता से अधजला मांस निकाल कर खाते हैं अघोरी
कई अघोरियों का मनना है कि वो इंसान का कच्चा मांस खाते हैं। अक्सर ये अघोरी श्मशान घाट में ही रहते हैं और जलती चिता से अधजली लाशों को निकालकर उनका मांस खाते हैं। इसके पीछे उनका मानना है कि ऐसा करने से उनकी तंत्र करने की शक्ति प्रबल होती है और यही बातें आम आदमी को डरावनी लगती हैं।
अघोरी मनुष्य की खोपड़ी में खाते हैं खाना

आम तौर पर तो अघोरी दिखते नहीं हैं। लेकिन आपने फोटो में अगर अघोरियों को देखे होंगे तो उनके पास मनुष्य की एक खोपड़ी अवश्य दिखाई देगी। अघोरी इन्हीं मानव खोपडि़यों में भोजन करते हैं और पानी भी पीते हैं। जिस कारण इन्हें कपालिक भी कहा जाता है। मान्यता है कि यह प्रेरणा उन्हें भगवान शिव से मिली है।
एक ही पात्र में खाते हैं अघोरी और कुत्ता

अघोरियों को यदि किसी से प्रेम होता है तो वह है कुत्ता। अघोरी अन्य पशुओं से दूरी बनाए रखते हैं। पर कुत्ते से बहुत प्रेम करते हैं और अपने आस-पास कुत्ता रखना पसंद करते हैं। अवघड़ों का मानना है कि हर व्यक्ति अघोरी के रूप में जन्म लेता है। जैसे बच्चे को अपनी गंदगी और भोजन में कोई अंतर नहीं समझ आता, वैसे ही अघोरी भी हर गंदगी और अच्छाई को समदृष्टि से देखते हैं।