सुखवीर “मोटू”
कल मैंने आपसे वायदा किया था कि किसी सरदार यानि सिक्ख भाई से दोस्ती हो जाए तो वह इंसान बहुत भाग्यशाली होता है। इसका कारण यह है कि सरदार यानि सिक्ख अपनी यारी की खातिर अपनी जान को कुर्बान करने को तैयार हो जाता है। बात 1985 की है जब मेरे पिता जी की पोस्टिंग अमृतसर में 13वीं लाइट कैवलरी में थी।
वे आर्म्ड फोर्स में थे और आपको बता दूं कि आर्म्ड फोर्स के पास ही देश के सबसे ज्यादा टैंक हैं। हालांकि मैं 1984 के पंजाब दंगों में भी अमृतसर में मेरे पिता के साथ ही था। मेरे स्वर्गीय पिता मुझे अमृतसर ले गए। वे उस समय सुबेदार के पद पर कार्यरत था।
उन दिनों अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में भिंडरेवाला जिनका पूरा नाम मुझे नहीं पता, उन्होंने लोगों को बंधक बनाया हुआ था और वे पंजाब को खालिस्तान की मांग कर रहे थे। मेरे पिता जी मुझे रोज अपनी साइकिल पर बिठाकर अपनी यूनिट में ले जाया करते थे। (सरदार दी यारी सबसे प्यारी)
एक दिन मैसेज आया कि 13वीं लाइट कैवलरी के जवान सभी टैंक लेकर स्वर्ण मंदिर में पहुंच जाएं। अब मेरे पिता टैंक के चालक थे और यूनिट खाली होने पर मुझे अकेले भी नहीं छोड़ सकते थे। इसलिए उन्होंने मुझे उस टैंक के एक कोने में छिपा लिया जिसको वे खुद चला रहे थे।
मैं ठहरा 11 साल का बच्चा, मेरे पिता ने जो आदेश दिया उसे माना, और चुपचाप टैंक के एक कोने में बैठ गया। पिता जी ने कहा कि बेटा बोलना नहीं, चाहे कुछ हो जाए। दूसरी ओर से वायरलैस पर संदेश आ रहे थे कि ना तो स्वर्ण मंदिर पर गोला चलाना है और ना ही वहां मौजूद एक झाड़ी के पेड़ पर। THE JHAROKHA NEWS
खैर मेरे पिता टैंक को चलाते हुए स्वर्ण मंदिर पहुंचे और उस दिन का ज्यादा विवरण ना लिखते हुए मैं इतना ही कहूंगा कि उस दिन भिंडरावाला को उस सुरंग में ढेर कर दिया, जहां वे छिपे हुए थे। मगर उन टैंकों से निकले बमबारी से मुझे करीब एक महीने तक कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था। इसके बाद 1985 में दोबारा अमृतसर जाने का मौका मिला।
मेरे पिता को सरकारी क्वार्टर मिल चुका था सैनिक कालोनी में, इसलिए तब मेरी मां और हम तीनों भाई गर्मी की छुटि्टयों में वहां चले गए। वहां पड़ोस में एक सरदार दंपत्ति रहता था। उनकी एक बेटी अपाहिज थी, वहीं उनके 2 बेटे जिनमें से एक मेरी उम्र यानि 12 या 13 साल थी।
उसका नाम बलजिंद्र था, लेकिन हमने उसे बिट्टू पुकारना शुरू कर दिया। उसका एक छोटा भाई रंजीत सिंह जिसकी उम्र महज 5 साल थी। जब दोस्ती गहरी हो गई तो हम कैंट के ही ग्राउंड में साइकिल चलाने के सीखने के लिए वहां जाने लगे।
बिट्टू भाई का पहले से साइकिल चलाना आता था, इसलिए वह मेरा ट्रेनर था। मगर एक दिन ऐसा हुआ कि उस मैदान पर कुछ असामाजिक तत्व आ अा गए और उन्होंने मेरी साइकिल रोककर मेरी पिटाई करनी शुरू कर दी। EDUCATION
यह देख बिट्टू भाई को गुस्सा आया और उसके 5 साल के भाई ने उन पर बिना किसी तरह के हथियार के मुकाबले हमला बोल दिया। हालांकि वे युवक हमसे उम्र में बड़े थे, लेकिन बिट्टू का हौंसला देख मैं भी तैश में आ गया और साइकिल छोड़ उनका मुकाबला करना शुरू कर दिया।
हम सिर्फ 5 साथी ही थे और वे 4, लेकिन छड़े मलंग और उम्र में ज्यादा, लेकिन सच बताऊं बिट्टू ने उनकी ऐसी खैर खबर ली कि पूछो मत और उन मलंगों को वह मैदान छोड़कर भागना पड़ा।
मुझे आज भी उस बिट्टू की तलाश है, क्योंकि उस समय टेलीफोन नहीं होते थे, लेकिन आज अगर वो मिल जाए और उसकी बहन अगर जिंदा और अविवाहित है तो मैं ज्यादा पैसे वाला तो नहीं, लेकिन उन्हें मेरी बहन बनाकर अपने घर पर रख सकने में सक्षम हूं। इसलिए कहता कहता कि सरदार की यारी सबसे प्यारी।
हां एक लाइन इस समय देश में चल रहे किसान आंदोलने को लेकर लिखना चाहता हूं कि इसमें एक गाना फिर याद आ गया, कि दुनिया का मेला, मेले में लड़की, लड़की अकेली सन्नो नाम उसका, इसमें अब लड़की के नाम पर रोल अदा कर रहे हैं हमारे माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी, क्योंकि उनकी और अमित शाह के बिना सहमति के देश में कुछ नहीं हो सकता।
अब केंद्रीय केंद्रीय कृषि मंत्री तोमर जी तो मात्र एक मोहरा हैं, उनकी तो एक भी नहीं चलने वाली, लेकिन देश के किसान इस समय उग्र स्वभाव में हैं और वे भी जानते हैं कि इस देश में जादूगर नरेंद्र मोदी और अमित शाह की ही चलने वाली है। मगर मेरा मानना है कि इस मामले में इन दोनों की हार होगी। बाकि आने वाला समय ही बताएगा।
लेखक हरियाणा के वरिष्ठ पत्रकार हैं