Home उत्तर प्रदेश 200  साल पुरानी है बाराचवर की चलायमान रामलीला

200  साल पुरानी है बाराचवर की चलायमान रामलीला

by Jharokha
0 comments
Barachwar's moving Ramlila is 200 years old

दुर्गेश गाजीपुरी
नमस्कार दोस्तो। आज हम रामलीला की दूसरी कड़ी में उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के बाराचवर गांव के चलायमान रामलीला की बात करेंगे। यह रामलीला करीब 200 साल से भी अधिक पुरानी बताई जा रही है। इससे पहले हम आप को पंजाब के अमृतसर जिले के सारथी कला मंच ओर निंपा रामलीला और उसके मंचन की विधा के बारें बता चुके हैं। आइए अब जानते हैं बाराचवर की चलायमान रामलीला के बारे में-

कब और कैसे शुरू हुई चलायमान रामलीला

बाराचवर के ब्लाक प्रमुख और रामलीला समिति के अध्यक्ष ब्रजेंद्र सिंह कहते हैं यह रामलीला 200 साल पहले ठाकुर सिंह ने शुरू करवाई थी। इसके बाद उनके बेटे इंद्रदेव सिंह और उनके वंशजों ने यह कमान संभाली । उस समय उनके पुरोहित राजकुमार मिश्र इस पूरे मेले ब्यास की भूमिका में होते थे जो श्री राम जन्म से लेकर रावण वध और राम के राज्याभिषेक तक यानी पूरे 12 दिन के इसमें लोग सक्रिय रहते थे।

पहली बार बांस की सुपेलियों का बनाया गया था मुकुट

ब्रजेंद्र सिंह कहते हैं कि उस समय इस क्षेत्र में कहीं रामलीला नहीं होती थी। अंग्रेजों का राज था। काफी संख्या लोगों के एक साथ एकत्र होने पर भी पाबंदी थी। ऐसे रामनाम की अलख जगाने और लोगों को एकत्र करने की मंसा से रामलीला करवाने का ख्याल ठाकुर सिंह के मन में आया। ब्रजेंद्र सिंह बताते हैं कि चूंकि ठाकुर सिंह इस क्षेत्र के जमीदार थे, सो धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक जिम्मेदारियों का भी निर्वहन करना था। ऐसे में गांव और आसपास के गणमान्यों को बुलाया और रामलीला करवाने की बात सामने रखी गई। अब इसमें सबसे बड़ी समस्या रामजी के मुकुट और वस्त्रों की आई। ऐसे में तोड़ निकालागया कि रामजी के वस्त्र के तौर पीले रंग का जामा (एक तरह का पुरातन परिधान) धोती से काम चल जाएगा। रही बात मुकुट की तो अभी बांस की सुपेलियों को कई रंगों में रंग कर काम चला लिया जाए। यह बात सभा में मौजूद सभी को पसंद आई और फिर बांस की सुपेलियों के साथ रामलीला शुरू हुई ।

रामनगर और गाजीपुर के बाद बाराचवर में होती है चलायमान रामलीला

रामलीला में सक्रिय रूप से भाग लेने वाले संजय राय कहते हैं कि बारचवर की रामलीला चलायमान रामलीला है। इसी तरह की रामलीला रामनगर और गाजीपुर में भी होती है। हलांकि रामनगर की रामलीला कई सौ साल पुरानी है। और यूनेस्को के विश्व धरोहर की सूची में शामील है। जिस तरह रामनगर के महाराज भगवान श्रीराम की अगवान करती हैं उसी तरह बाराचवर में भी रामलीला की अगुवानी ठाकुर सिंह पांचवीं पीढ़ी के ब्रजेंद्र सिंह संभाल रहे हैं।

क्या होती है चलायमान रमालीला

पं. नंदकिशोर मिश्र कहते हैं कि मुख्यत: रामलीला का मंचन महर्षि वाल्मीकिकृत रामायण और गोस्वामी तुलसीदासकृत रामचरितमानस की पद, छंद और दोहों को पद्द के रूप में रुपांतरित कर फिर उसे रामचरित मानस पात्रों के अनुसार संवाद दिए जाते हैं। इसके बाद यह रामलीला दो तरह की शैली में मंचित की जाती है। एक चलायमान रामलीला और दूसरी स्थिर रामलीला। चलायमान रामलीला एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा जा कर की जाती है। इसके लिए किसी तरह के मंच की आवश्यकता नहीं पड़ती। दूसरी अचल रामलीला है। इसके लिए स्थाई मंच की आवश्यकता होती है। चलायमान रामलीला की बात की जाय तो रामनगर की रामलीला को देख सकते हैं।

रामनाम की अलख जगाने का साधन भी रामलीला

बाराचवर की रामलीला में लंबे समय तक भगवान श्री राम के चरित्र को निभाने वाले दयाशंक चतुर्बेदी कहते हैं समाज और परिवार को जोड़ने की यदि सबसे बड़ी सीख कोई देता है वह है रामायण, रामचरित मानस और रामलीला। वे कहते हैं रामलीला में हमने करीब 10 साल तक सीता और राम चरित्र निभाया। इस दौरान हमने पाया कि परिवार और समाज को एक सूत्र में पिरोने का कोई कार्य करता है वह है रामायण और रामलीला।

 

Jharokha

द झरोखा न्यूज़ आपके समाचार, मनोरंजन, संगीत फैशन वेबसाइट है। हम आपको मनोरंजन उद्योग से सीधे ताजा ब्रेकिंग न्यूज और वीडियो प्रदान करते हैं।



You may also like

द झरोखा न्यूज़ आपके समाचार, मनोरंजन, संगीत फैशन वेबसाइट है। हम आपको मनोरंजन उद्योग से सीधे ताजा ब्रेकिंग न्यूज और वीडियो प्रदान करते हैं।

Edtior's Picks

Latest Articles