खास मुलाकात
The Jharokha डेस्क । Ghazipur Special Story: गाजीपुर का गुलशन इतना बहुरंगी है कि इसमें हर तरफ के फूल लहराते हैं। कभी अफीम और इत्र के लिए मशहूर गाजीपुर में साहित्य रंग हमेशा चटख दिखते है। इन्हीं रंगों में से एक हैं एक बहुरंगी साहित्यकार हैं प्रो: रामबदन राय। हिंद केशरी पहलवान मंगला राय की धरती जोगांमुसाहिब को गौरवान्वित करते फक्कड़ स्वभाव के रामबदन राय बाबा नागार्जुन की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। स्वभाव से सरल, 80 वर्ष की आयु में भी 50 वर्ष के दिखने वाले बहुमुखी प्रतिभा के धनी रामबदन राय दर्जनों काव्य संग्रह, उपन्यास और नाटक लिख चुके हैं।
फिरकी वाली ने दिलाई पहचान
गाजीपुर स्वामी सहजानंद कॉलेज में इतिहास के विभागाध्यक्ष रह चुके प्रो: रामबदन राय ने 12 साल की आयु में पहली कविता लिखी थी। बालपन की बात सुनाते हुए प्रो- कहते हैं कि वह अपने गांव जोगामुसाहिब से करीमुद्दीनपुर सात किलोमीटर दूर मंगई दरिया पार करके पढ़ने जाते थे। वहां वह छवीं कक्षा की बाल सभा में अपनी पहली कविता ‘सबरे उठी स्कूल को जाना, झोरा लिया, छाता लिया बगलरी में दान, सबेरे उठी स्कूल को जाना सुनाई थी।
वे कहते हैं कि कविता स्कूल शिक्षकों को इतीन अच्छी लगी कि उस समय उन्होंने दो आना पुरस्कार के रूप में दिया था। श्री राय कहे हैं कि बतौर काव्य लेखन उनकी ‘ गंवई गुहार’ नामक काव्य संग्रह से शुरुआत हुई थी। इसके बाद उन्होंने दर्जनों कविता और संसमरण लिखे। इनकी प्रसिद्ध रचनाओं में भोजपुरी कविता ‘फागुन भर हमे मत बोल’ भी काफी चर्चित रही। इस का प्रकाशन पटना भोजपुरी अकादमी पटना से हुआ था। इसके बाद इन्होंने हाव्य व्यंग्य भी लिखे। इसमें इसमें कुछ सरफी कुछ शरारती काफी मसहूर रहा।
Ghazipur Special Story: कृष्णायन है अनोखी रचना
प्रो: रामबदन राय कहते हैं कि उनकी अब तक की काव्य रचनाओं में कृष्णायन अनोखी और अप्रतीम काव्य रचना है। वे कहते हैं कि कृष्णायन जैसा कि नाम से प्रतीत होता है कि यह भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। इस महाकाव्य का वर्ष 1999 में अखंड पाठ भी हो चुका है। प्रो: राय कहते हैं वर्ष 2002 में आकाशवाणी केंद्र वाराणसी से वार्ता कार्यक्रम के तहत ‘ आइए गांव लौट चलें’ प्रसारित हो चुका है।
फिरकी वाली से आए चर्चा में
साधारण से दिखने वाले असाधारण व्यक्तित्व के धनी प्रो: रामबदन राय को ‘फिरकी वाली’ ने चर्चा में ला दिया। 250 पेज के चर्चित उपन्यास को प्रो: राय ने वर्ष 1982 में लिखा था। इसके अब तक कई संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। फिरकी वाली के संबंध में प्रो: रामबदन राय कहते हैं कि एक घटना ने इस उपन्यास को लिखने के लिए प्रेरित किया। वे कहते हैं कि समाज के हाशिए पर रह रहे डोम बिरादरी और उनके परिवेश पर आधारित है। इस उपन्यास ने उन्हें शिर्ष के उपन्याकारों की श्रेणी में ला कर खड़ा कर दिया।