Amritsar: स्वर्ण मंदिर के लिए प्रसिद्ध अमृतर खातिरदारी और खानपान के लिए दुनियाभर में मसहूर है। अमृसरी नान और पापड़ बड़ियों के स्वाद से तो आप वाकिफ होगें लेकिन, यहां के जलेबी वाले चौक की जलेबी का स्वाद ही कुछ अलग है। बताया जाता है कि जलेबियों वाले चौक में स्थित यह इकलौती दुकान करीब 80 साल पुरानी है। स्थानीय बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि इस दुकान की जलेबियों का स्वाद आज भी वैसा ही है जैसा की 80 साल पहले हुआ करता था। 600 रुपये किलो बिकने वाली इस जलेबी का रेट सुन कर आप एकबारगी चौंक गए होंगे। लेकिन अगर आप पहली बार यहां जलेबी खाने आए हैं तो 600 रुपये किलो आपको महंगा जरूर लेगा। क्योंकि अमूमन जलेबी 100, 200 या फिर 250 रुपये किलो आम बिक रही है। फिर आप सोच रहे होंगे कि इस जलेबी में ऐसा क्या है कि यह इतनी महंगी बिक रही है। तो चलिए इस बारे में आप को खुद इस दुकान के मालिक सोमनाथ की जुबानी सुनिए।
80 साल पुरानी दुकान, क्वालिटी से समझौता नहीं
मैसर्स गुरदास राम दुकान के मालिक सोमनाथ कहते हैं कि यह दुकान करीब 80 साल पहले उनके पिता जी पं. दीनानाथ ने अपने भाई गुरदास राम के नाम पर मैसर्स दीनानाथ गुरदास राम के नाम से शुरू की थी। सोमनाथ के मुताबिक जलेबियां देसी घी से तैयार की जाती है। इसमें मिठास भी इतनी ही होती है कि आप के पेट भरजाएंगे पर खाने की ललक बढ़ती जाएगी। वे कहते हैं कि यहां सुबह से शाम तक ताजी जलेबियां मिलती हैं। क्वीलिटी से कोई समझौता नहीं। हां, इस दुकान पर जो पहली बार आता है उसे जलेबी की कीमत 600 महंगा जरूर लगती है लेकिन जो एक बार आ गया वह यहां बार बार आता है।
आइए जानते हैं जलेबी वाला चौक के बारे में
यह इलाका तो कटरा आलूवाला (कटरा आहलूवालिया) है फिर जलेबी वाला चौक नाम कैसे पड़ा। यह पूछे जाने पर सोमनाथ थोड़ा मुस्कराते हैं। फिर कहते हैं , है तो यह कटरा आलूवाला ही। लेकिन हमारी जलेबी की दुकान के वहज से यह जलेबी वला चौक के नाम से प्रसिद्ध हो गया। यह बात सच भी है। अगर आप अमृतसर पहली बार आए हैं जलेबी वाला चौक जाना चाहते हैं बस आटो या रिक्शे वाले इतना ही कर दीजिए हमें जलेबियां वाला चौक ले चलो। रिक्शेवाला बिना किसी हुलहुज्जत के सीधे इसी चौक में लाकर आप उतार देगा। गोल्डन टेंपल और जलियांवाला बाग भी यहां से पास में ही है।
उग्रवाद के दौर में फिकी पड़ी रौनक
सोमनाथ कहते हैं कि 1980 से पहले कटारा आलूवाला व्यापार का बहुत बड़ा हब हुआ करता था। यहां कपड़े, मसाले, चायपत्तियों और अन्य तरह की वस्तुओं की खरीद-फरोख्त के लिए देश के कोने कोने से व्यापारी और कमीश्न एजेंट आते थे। हर वक्त रौनक लगी रहती थी। हालत यह थी कि जलेबियों के लिए व्यापारी लाइन में लग कर खरीदते थे। लेकिन उग्रवाद का वह काला दौर भी आया जब कटारा आलूवाला से ज्यादातर व्यापारी पलायन कर गए । कोई यूपी, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान जा कर बस गया तो कोई कोलकाता शिफ्ट हो गया। फिर भी उनकी दुकन पर जलेबी के कद्रदानों की संख्या कम नहीं हुई है।
विदेशों तक जाते हैं जलेबी, गुलाबजामन और सोहन हलवा
अभी हम जलेबी वाले चौक और जलेबियों के बारे में बात कर ही रहे थे कि हमारी मुलाकात हरनाम सिंह से हो गई। वह यहां जलेबी खरीदने आए थे। बातचीत में हरनाम सिंह ने बताया कि वह रहने वाले अमृतर के ही लेकिन उन्हें जलेबी अपने रिश्तेदार को कनाडा भेजनी है सो वह लेने आ गए।
दुकानदार सोमनाथ कहते हैं चौकिए मत यह देशी घी की जलेबियां है खराब नहीं होती। उन्होंने आगे कहा- पूरे दिन में चौथे ग्राहक है जिन्होंने उनकी जलेबी विदेश भेजने के लिए लेने आए हैं। सोमनाथ कहते हैं- उनकी जलेबी के क्रदान नाडा, सिंगापुरा, लंडन, इटली सहित दुनिया के कई देशों में भी हैं जहां जलेबी और सोहन हलवा के लिए स्पेशल आर्डर आते हैं।
पर्यटक भी हैं मुरीद
इसी दौरान हमारी मुलाकात कोलकाता से आए असीम चक्रवर्ती से होती है। वह परिवार के साथ अमृतसर घूमने आए हैं। असीम कहते हैं वह यहां पिछले छह सालों में चौथी बार आए हैं। पीछे दोस्तों के साथ आए थे लेकिन, इसबार परिवार साथ आए हैं। वे जब भी अमृतसर आते हैं जलेबी वाले चौकी जलेबियां और गुलाबजामन खाते भी हैं और पैक करवा कर कोलकाता भी ले जाते हैं।
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