Kulhad tea : अधिकांश लोगों की दिन शुरूआत सुबह की चाय से होती है। चाय एक ऐसा ऊर्जावान पेय पदार्थ जिससे दिनभर के थके व्यक्ति को ऊर्जा मिलती है। लेकिन जब यही चाय की चुस्की कुल्हड़ में ली जाय तो जी ललचाना या मचना स्वभाविक है। जब कांच की गिलासें, चीनी मिट्टी के कप, प्लास्टिक और डिस्पोजेबल गिलासें नहीं हुआ करती थीं तब लोग मिट्टी के कुल्हड़ में चाय पीते थे। अब कुल्हड़ का दौर फिर से लौट रहा है। कई चाय की दुकानों पर कुल्हड़ में चाय परोसी जा रही है। चाय की दुकानों पर पर कुछ लोगों की स्पेशल फर्माइश आती है, ए भाई! चाय कुल्हड़ में देना। कहीं-कहीं तो इसे पुरवा वाली चाय भी कहा जाता है।
बनारस में रस घोलती हैं पुरवा वाली चाय (कुल्हड़ की चाय)
आधुनियकता का बखान करने वाले लोग कहते है, छोड़ो यार कुल्हड़ का जमाना गया। डिस्पोजबल गिलास है न। इसमें चाय की चुक्सकी लो क्या फर्क पड़ता है। लेकिन इन सबसे अलग बनास आज भी परंपर को संजोए है। यहां शायद ही कोई ऐसी चाय की दुकान हो जहां कुल्हड़ में चाय न परोसी जाती हो।
यह काशी की परंपरा हैं। यहां कुल्हड़ में चाय परोसी जाती है। और इसकी पहली झलक बनारस रेलवे स्टेशन पर ही देखने को मिल जाती है। यहां चाय चाय की आवाज लगा कर स्टेशन परिसर में चाय बेचने वला भी आप को चाय पुरवा यानी कुल्हड़ में ही चाय देगा। यदि आप उससे पूछ बैठे की भइया चाय कुल्हड़ में क्यों दे रहे हो तो वह आपको इसके सभी गुणों से अवगत करवा देगा, जो आप शायद नहीं जानते। फिर तो आप कुल्हड़ की चाय के मुरीद हो जाएंगे।
अवध, आगरा और मथुरा में भी मिलती कुल्ड़ में चाय (Kulhad tea)
यह तो एक बानगी भर है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश के तमाम बड़े और छोटे शहरों में चले जाएं। हर जगह आप को चाय की दुकान में कुल्हड़ की चाय मिल जाएगी। चाहे वह ताज नगरी आगरा हो , रसिक कान्हां का बरसाना हो या मथुरा। नवबों का शहर लखनऊ या बिहार का कैपिटल पटना । कुल्हड़ वाली चाय आप को हर जगह सुलभ है।
यहीं नहीं कहीं-कहीं कुल्हड़ में दूध और मलाई भी परोसी जाती है। गोरखपुर चले जाएं तो यहां चाय की तो बात ही छोड़िए लस्सी और दही तक कुल्हड़ में मिलती है भाई। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि ये ईको फ्रेंडली कुल्हड़ वाली चाय स्वाद और सेहत दोनों के लिए 110 परफेक्ट होती है। आइये आपको बताते हैं कि कुल्हड़ में चाय पीने के फायदे-
कुल्हड़ की चाय Kulhad tea पीने से मजबूत होती हैं हडि्डयां
आयुर्वेद के मुताबिक कुल्हड़ में जो सूक्ष्म तत्व मौजूद होते हैं, वे हमारे शरीर की हड्डियों के लिए फायदेमंद होते हैं। क्यों कि मिट्टी में कैल्शियम प्रचूर मात्रा में होता है और कुल्हड़ भी मिट्टी से निर्मित होता है। इसलिए इसमें चाय या दूध पीने से हमारे शरीर को कुछ-न-कुछ मात्रा में कैल्शियम मिलता है, जिससे हमारे शरीर की हड्डियां मजबूत होती हैं। ( कुल्हड़ की चाय )
पाचन क्रिया भी रहती है दुरुस्त
पुरवा या कुल्हड़ में चाय पीने से हमारी पाचन क्रिया भी दुरुस्त रहती है। चूंकि कुल्हड़ मिट्टी से बने होते हैं, इसलिए इनका कोई साइड इफेक्ट या बैड इफेक्ट नहीं होता। जबकि इसके विरित ज्यादातर डिस्पोजेबल पॉली-स्टिरिन से बने होते हैं, ऐसे में इनमें गरम चाय डालने पर इनमें मौजूद एसिड चाय के साथ पेट में चले जाते हैं और आंतों में जमा हो जाते हैं, जिससे न सिर्फ पेट खराब होने का खतरा होता है, बल्कि इंफेक्शन और कैंसर जैसी घातक बीमारी होने का अंदेशा भी रहता है।
एसिडिक नेचर को नहीं बढ़ाते
लक्ष्मी नारायण आयुर्वेदिक कॉलेज के प्रो: राजीव सूद कहते हैं कि इंसानी शरीर में अम्लीय (Acidic) पैदा होने से खट्टी डकार और डायजेशन से जुड़ी कई तरह की समस्याएं होती हैं। वहीं, कुल्हड़ क्षारीय (Alkaline) गुण वाले होते हैं। वे कहते हैं कुल्हड़ में चाय चाय पीने के बाद पेट में जलन की संभावाना भी कम होती है।
मिट्टी के कुल्हड़ होते हैं इको फ्रेंडली
मिट्टी से बने कुल्हड़ इको फ्रेंडली होते हैं, जिनका उपयोग करने के बाद फेंक दिया जाता है, जिससे ये फिर से मिट्टी में ही परिवर्तित हो जाते हैं, इससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचता। साथ ही इससे लाखों लोगों को रोजगार मिलता है।
स्टेटस सिंबल बन रहा है कुल्हड़ की चाय पीना Kulhad tea
कुल्हड़, जिन्हें सिर्फ गांव में ही इस्तेमाल किया जाता था, उनकी अब शहर में डिमांड है। यहाँ तक कि अब हाई सोसायटीज में भी चाय पीने के लिए कुल्हड़ का प्रयोग किया जाने लगा है। खासकर कोरोनाकाल में लोग एहतियातन घर से बाहर कुल्हड़ में ही चाय पीने को ज्यादा पसंद कर रहे हैं। यहां तक कि कुल्हड़ में चाय पीने से मिलनेवाले ‘हेल्थ बेनेफिट’ को देखते हुए अब तो हाई सोसायटी की फैमिलीज में इनका इस्तेमाल बढ़ने लगा है।
कोरोना काल में बढ़ी कुल्हड़ वाली चाय की मांग
पिछले तीस वर्षों से चाय की दुकान करने वाले गाजीपुर के बाराचवर निवासी रामबचन गुप्ता कहते हैं , जमाना बेशक तेजी से बदल रहा है। लेकिन पुरानी चीजें तो पुरानी ही हैं। वे कहते हैं कोरोना काल में भी उनकी चाय की दुकान बंद नहीं रही। इसके पीछे वह तर्क देते हैं। वे कहते हैं जबसे उन्हों ने दुकान खोली है तभी से वह ग्राहकों को कुल्हड़ में चाय परोस्ते हैं।
ऐसा नहीं है कि वह कांच की गिलास या डिस्पोजेबल गिलासों चाय नहीं देते, लेकिन कुल्हड़ में चाय पीने वाले ग्राहकों की संख्या गिलास वालों से अधिक है। कोरोना काल में कुल्हड़ की मांग बढ़ी है। राम बचन कहते हैं, कुल्हड़ में चाय पीने वालों की संख्या पहले एक दिन में सौ से दो सौ हुआ करती थी, लेकिन कोरोना काल के बाद अब 500 तक पहुंच गई है।
कुल्हड़ की चाय के मुरीद हैं फैजान और रामाश्रय
शिक्षक फैजान अंसारी और राष्ट्रीय सहारा के ब्रांच मैनेजर रामाश्रय ये दोनो कुल्हड़ की चाय के मुरीद हैं। इनका कहना है कि जिस दुकान में कुल्हड़ में चाय नहीं मिलती वहां चाय नहीं पीते है। इसके पीछे उनका अपना तर्क है। तर्क भी वाजीब है। वे कहते हैं- भाई देखो कुल्हड एक तो हमें अपनी माटी से जोड़ता है। दूजा यह साफ सुथरा रहता है। सीसे की गिलास का क्या भरोसा। दुकानदार से ढंग से साफ किया है कि नहीं। रही बात प्लास्टिक की गिलासों में चाय पीने का तो इससे बीमारियां तो फैलती ही हैं, साथ यह पर्यावरण के लिए भी घातक है।
मिट्टी से जोड़ता है कुल्हड़
सोंधी-सोंधी खुशबू वाला मिट्टी से बना यह कुल्हड़ लोगों अपनी माटी से भी जोड़ता है। यह एकतरफ आर्गेनिक होने के साथ-साथ इकोफ्रेंडली भी होता है। क्योंकि मिट्टी का बना होने के कारण इस्तेमाल होने के बाद दोबारा मिट्टी में मिल जाता है।
कई हाथों को राजगार भी देता है कुल्हड़
कोरोना काल के बाद कुल्ड़ की डिमांड बढ़ने से लोगों को रोजगार भी मिला है। अब गांवों के साथ-साथ इसकी मांग शहरों में भी बढ़ी है। इससे एक तरफ जहां रोजगार के अवसर बढ़े हैं वहीं मिट्टी के अन्य बर्तनों की मांग बढ़ने कुम्हारी कला फिर से जीवंत होने लगी है। रामचंद्र प्रजापति कहते हैं कुल्हड़ की मांग पहले कम हो गई थी लेकिन कोरोना के बाद से इसकी मांग एकदम से बढ़ गई है। वे 60 सैकड़ा के हिसाब से चाय की दुकानों पर कुल्हड़ सप्लाई करते हैं।