
रजनीश मिश्र : वियज दशमी बुराई पर अच्छाई के प्रतिक और अहंकारी रावण के विनाश का पर्व है। अगर महा पंडित रावण में अहंकार नहीं होता तो उसके के जैसा उस समय न तो कोई प्रकांड विद्वान था और ना ही कोई उसके जैसा वीर योद्धा। Ram राम के पराक्रम की संपूर्णता Rawan रावण से है। क्योंकि तत्कालीन समय में यदि का रावण सामना कर सकता था तो वह था वह थे Ram , कुछ इसी तरह यदि Ram के सामने रणभुमि में कोई टिक सकता था तो वह रावण था।
रावण में यदि कोई बुराई थी तो वह था उसका अहंकार। जिद्दी रावण अगर कुद ठान लेता था उसे पूरा किए बिना विश्राम नहीं लेता था, परिणाम चाहे जो हो। रावण की शिव भक्ति हमारे वेद पुराण भी गाते हैं। और यदि किसी से वैर मोल लेता था तो परिणा राम-रावण युद्ध था, जिसमें उसने अपने पूरे कुल को खत्म करवा दिया।
रावण Rawan महज बुराईयों का ही पुतला नहीं था, रावण में कुछ अच्छाइयां भी थी, जिसके कायल भगवान श्री राम भी थे। कहा जाता है कि युद्ध समाप्ति के बाद मरणसन्न रावण रणभूमि में अपनी अंतिम सांसे गिन रहा था। भगवान श्री राम ने लक्ष्मण को रावण के पास निति ज्ञान लेने के लिए भेजा। लक्ष्मण मन में विजेता का अहंकार लेकर रावण के पास पहुंचे और उसके सिरहाने खड़े हो गए। रावण मौन रहा। कुछ रहे प्रतिक्षा के बार लक्ष्मण लौट आए। श्री राम ने कहा लक्ष्मण रावण ने कुछ कहा। लक्ष्मण बोले, नही।
राम ने दोबारा पूछा, लक्ष्मण! तुम्हारे खड़े होने की स्थिति क्या था। लक्ष्मण बोले, मैं रावण के सिहाने खड़ा था। श्री Ram राम ने कहा अब जाओ और उसके पैरों के पास खड़े होकर निवेदन करना। लक्ष्मण ने वैसा ही किया। अब महा पंडित रावण ने उन्हें बिना कहे नीति ज्ञान दी। आइए जानते क्या थी रावण की वह अच्छाइयां के Shri Ram भी कायल थे।
- रावण Rawan उच्च ब्राह्मणकुल पैदा होने के साथ ही प्रकांड विद्वान, वास्तु विशेषज्ञ, कुशल राजनीतिज्ञ, उत्कृष्ठ सेना पति और कई विद्याओं का ज्ञाता था।
- रावण परम शिवभक्त था। यह हमारे शास्त्र कहते हैं। रामायण के रचयीता आदि कवि भगवान वाल्मीकि जी ने भी रामायण में Rawan रावण की विद्वता और उसके परम शिवभक्त होने की बात कही है। इसी तरह गोस्वामी तुलसी दास जी ने भी रावण को प्रकांड विद्वान और शिवभक्त बताया है।
- रावण महा मायावी था। यह बात स्वयं विभिषण जी ने भी श्रीराम को बताया था। Rawan तंत्र साधना, इंद्रजाल, सम्मोहन और कई तरह के तंत्र क्रियाओं का ज्ञाता था। वह वेष बदलने में भी माहिर था। साधु का वेष धर छल से सीता को लक्ष्मण रेखा पार करने पर विवश किया और फिर उनका हरण कर लिया।
- Rawan रावण बहन का रक्षक भी था। पंचवटि में सूर्पणखा की नाक काटे जाने के बाद क्रोधित रावण ने राम से इस घटना का बदला लेने की ठानी और सब कुछ जानते हुए भी उसने सीता का हरण कर लिया। खुद रावण ने कहा था कि उसने सीता का अपहरण अपनी बहन के अपमान का बदला लेने के लिए किया है।
- रावण कुशल राजा था। उसकी सोने की लंका में सभी नागरिक उसके शासन प्रबंधों से प्रसन्न थे। रावण के पास पुष्पक विवान था जिसे उसने अपने सौतेले भाई कुबेर से छीना था।
- रावण ने लक्ष्मण के प्राण भी बचाए थे। कहा हाता है कि जब लक्ष्मण रणभूमि में मुक्षिर्त पड़े थे। तब जमवंत के कहने पर लंका से सुखेन वैद्य को बुलाया गया था। लंका में Rawan की बिना आज्ञा कोई न तो आ सकता था और ना ही जा सकता था। रावण की मौन स्वीकृति के बाद ही सुखेन वैद्य ने हनुमान को संजीवनी लाने के लिए भेजा था।
- रावण प्रकांड विद्वान था। इसमें कोई संदेह नहीं। रावण ने ज्योतिष शास्त्र सहित कई शास्त्रों की रचना की थी। Rawan ने शिव तांडव स्तोत्र, इंद्रजाल, अंक प्रकाश, कुमारतंत्र, प्राकृत कामधेनु, प्राकृत लंकेश्वर, ऋग्वेद भाष्य, रावणीयम, नाड़ी परीक्षा सहित कई पुस्तकें लिखी।
- रावण ने श्री राम को वियजी होने का वरदान भी दिया था। रामेश्वरम में पुल निर्माण के बाद Shri Ram ने यज्ञ करवाने के लिए देवताओं के गुरु वृहस्पति को निमत्रण भेजा, लेकिन वृहस्पति ने आने में असमर्थता जताई। इसके बाद श्री राम सुग्रीव को रावण के पास भेजा और यज्ञ संपन्न करवाने का निवेदन किया। रावण ने कहा, तुम यज्ञ की तैयारी करो मैं आता हूं। रावण पुष्पक विमान से सीता को साथ लेकर आया और श्री राम के पास बिठाकर यज्ञ संपन्न करवाने के बाद उन्हें विजयी होने का वरदान दिया और सीता को पुन: साथ लेकर चला गया। जब यह बाद लंका रावण से पूछी गई तो उसने कहा कि वह उस समय राजा नहीं वल्कि एक ब्राह्मण और यज्ञकर्म करवाने वला पुरोहित था। इसलिए उसने राम को विजयी होने का वरादन दिया।
- रावण ने अपने पौरुष का गलत दुरुपयोग कभी नहीं किया। सीता हरण के बाद उन्हें अपनी अशोक वाटिका में दो साल तक बंदी बनाए रखा। लेकिन, उसने सीता को कभी स्पर्श तक नहीं किया।