सुदामा गरीब क्यों थे: भगवा श्रीकृष्ण और सुदामा के मित्रता की मिसाल दी जाती है। कहा जाता है कि मित्र हो तो कृष्ण जैसा जिसने गरीब सुदामा को सिंहासन पर बैठा उसके पांव तक धोए थे। इसके साथ ही यह भी कहा जता है कि सुदामा ने कृष्ण के हिस्सा के चना चोरी से खाया इसलिए वह निर्धन रहे। देखा जाए तो सुदामा भौतिक रूप से गरीब जरूर थे पर अध्यात्मिक रूप से वह बहुत ही धनवान थे, क्योंकि वह अपने मित्र की गरीबी भी अपने हिस्से में ले लिया थ। आइए जानते हैं सुदामा गरीब क्यों थे।
उज्जयनी नगरी में एक दरिद्र (निर्धन) ब्राह्मणी रहती थी। उसके पास जिवोपार्जन का कोई साधन नहीं थी। पर वह भगवान की परम भक्त थी। वह दिनभर भीख मांग पर अपना जीवन यापन करती थी। एक समय ऐसा आया कि भग्य की मारी उस गरीब ब्राह्मणी को चार-पांच दिन तक भीख नहीं मिली। वह रोज रात का पानी पी कर और भगवान का नाम लेकर सो जाती थी। छठवें दिन उसे भीख में दो मुट्ठी चना मिले। भीख लेकर कुदिया तक पहुंचते-पहुंचते शम ढल गई और रात हो गई। ब्राह्मणी ने सोचा अब रात हो गई है यह चने सुबह भगवान को भोग लगाकर खाऊंगी। यह सोच कर उस ब्राह्मणी ने दो मुट्ठी चने की पोटली रख दी और भगवान का नाम जपते जपते सो गई।
अब देखिए समय कैसे रंग दिखाता है।
उस भूखी ब्राह्मणी के सोने के बाद कुछ चोर चोरी करने के उद्देश्य के उसकी कुटिया में घुस आए। कुटिया में चोरों को ऐसा कुछ मिला नहीं कि वह उसे साथ ले जाते। इसी बीच उन्हें एक पोटली मिली। चोरों ने उसे पोटली स्वर्ण मुद्राओं की पोटली समझ कर उठा लिया। इसी बीच ब्राह्मणी की नींद खुल गई। वह चोर-चोर शोर मचाने लगी। ब्राह्मणी की आवाज सुन कर गांव लोग चोरों को पकड़ने के लिए उनके पीछे भागे। पकडे़ जाने के डर से चोर संदीपन मुनि के आश्रम में छिप गए। जहां भगवान श्रीक्ण और सुदामा शिक्षा ग्रहण कर रह थे। इसी समय गुरु माता को लगा की कोई उनके आश्रम में आया है। वह उठी और आगे बढीं। चोर समझे कि अब पकड़े जाएंगे। इस भय से वह चने की पोटली वहीं पर छोड़ कर भाग निकले।
इधर, भूख से अकुलाई ब्राह्मणी को जब यह पता चला की चोर उसकी चने की पोटली चुरा ले गए तो उस ब्राह्मणी ने श्राप दे दिया की ‘ मुझ जैसी दीनहीन असहाय के जो भी चने खाएगा वह दरिद्र हो जाएगा’ ।
उधर, ब्रह्ममुहुर्त में गुरु माता आश्रम बुहार (झाड़ू लगा ) रही थी। इसी दौरान उन्हें वह शापित पोटली मिली। गुरु माता ने जब पोटली खोल कर देखा तो उसमे चने थे। दिन चढ़ने पर रोज की तरह जब कृष्ण और सुदामा जंगल से लकड़ियां लाने जाने लगे तो गुरु माता ने चने की वह पोटली सुदामा को दे दी और कहा, बेटा! जब भूख लगे तो तुम कृष्ण दोनों यह चने खा लेना। कहा जाता है सुदामा जी जन्मजात ब्रह्मज्ञानी थे। ऐसे में सुदामा ने ज्यों ही चने की उस पोटली को हाथ में लिया उन्हें पता चल गया कि यह चना शापित है।
अब सुदामा जी सोचने लगे! गुरु माता ने कहा कि यह चने दोनों लोग आधा आधा खा लेना, लेकिन यह चने तो शापित है। ऐसे में अगर मैं यह चना अपने सखा श्रीकृष्ण को खिला दिए तो पूरी सृष्टि दरिद्र हो जाएगी। और मैं ऐसा कदापि नहीं करुंगा। इसलिए सुदामा जी ने सारे चने खुद खा लिए और दरिद्रता का श्राप स्वयं ले लिया और भगवान को दरिद्र नहीं होने दिया। ये होती है मित्रता की मिसाल।