
रजनीश मिश्र, सैदपुर (गाजीपुर )। होली के नजदीक आते ही वो दिन याद आ जाते हैं जब पिचकारी में लाल, पीले, हरे, नीले रंगों को भरकर लोग एक दूसरे के ऊपर छोड़ते थे । यह रंग उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जनपद के सैदपुर के बंबई कलर एजेंसी के बने रंग होते थे, जिससे होली में लोगों के कपड़े लाल -पीले हो जाया करते थे, लेकिन आज यही सैदपुर का रंग बदलते परिवेश और सरकारी उपेक्षा के कारण बे रंग सा हो गया है।
पड़ोसी देशों में भी था सैदपुर के बने रंगों का बोलबाला
करीब 50 साल पहले गाजीपुर और उसके आसपास के जिलों में ही नहीं बल्कि पड़ोसी देश नेपाल, तिब्बत, भूटान तक सैदपुर के बने रंगों का बोलबाला था। इसके अलावा बिहार, बंगाल, आसाम, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब हरियाणा , जम्मू कश्मीर सहित अन्य राज्यों में भी सैदपुर के मुंबई कलर एजेंसी का बना रंग जाया करता था। इसके अलावा सैदपुर के आस-पास के गांव में रहने वाले सैकड़ों परिवारों की आजीविका भी इन्हीं रंगों की बदौलत चला करती थी, लेकिन दुर्भाग्य से आज बदलते परिवेश कारण यह उद्योग सिमट कर रह गया है।
1960 में शुरू हुआ रंग उद्योग
सैदपुर के लोगों का कहना है कि यहां पर रंग उद्योग की शुरुआत सन 1960 में हुई थी लोगों के मुताबिक शुरुआती दौर में शहर के आप नगर में पंडित बनवारी लाल पांडे ने मुंबई कलर एजेंसी के नाम से रंग उद्योग शुरू किया था। लोगों के मुताबिक इस कारखाने में रंगों में प्रयुक्त किया जाने वाला रसायन मुंबई से मंगवाया जाता था इसलिए इस कारखाने का नाम मुंबई कलर्स एजेंसी रखा गया।
उस समय सैदपुर के बने रंगों की खबर देश के छोटे बड़े शहरों के अलावा दूसरे मुल्कों में भी ज्यादा थी कहते हैं कि उस जमाने में सैदपुर और और बिहार के माल गोदाम मुंबई कलर एजेंसी के बने रंगों के कार्टून से एयरटेल होते थे लोगों के मुताबिक होली के सीजन आते ही कलर एजेंसी में रंग बनाने का काम और तेज हो जाता था।
कभी सैदपुर के चटख रंगों से रंगीन होती थी होली, आज “बे रंग” है रंगों का शहर
कभी सैदपुर के चटख रंगों से रंगीन होती थी होली, आज “बे रंग” है रंगों का शहर