सुखबीर ‘मोटू’
जी हां जिस समय मैंने 2000 से बहल जैसे छोटे से कस्बे से पत्रकारिता का जीवन सफर शुरू किया तो मुझे पत्रकारिता का क, ख, ग भी नहीं आता था। बस चिट्ठियां सी लिखकर किसी जीप वाले या बस चालक को दे देता था और वह उन समाचार रूपी चिट्ठियों को पुराना बस स्टैंड के सामने अपनी प्रैस की दुकान चलाने वाले भाई धीरज अखरिया को दे देते और धीरज मेरे उन समाचारों को बस स्टैंड के सामने ही दैनिक भास्कर के कार्यालय में पहुंचा देते। उन दिनों दैनिक भास्कर भिवानी के ब्यूरो चीफ राहुल सैन हुआ करते थे।
एक दिन मैं भिवानी से बस में आ रहा था तो देखा कि कुछ गांवों के लड़के बस में छात्राओं और महिलाओं के साथ अश्लील हरकत कर रहे थे। जब मैंने उन्हें ऐसा करने से रोकने का प्रयास किया तो उल्टे उन्होंने ही मुझे चुप रहने की धमकी दी। मुझसे यह सहन नहीं हुआ और दूसरे दिन मैंने इस पर एक समाचार रूपी चिट्ठी लिखकर भिवानी कार्यालय में भेज दी। मगर मामला गंभीर था, इसलिए ब्यूरो चीफ राहुल जी ने उक्त समाचार को बहल डेटलाइन की बजाए भिवानी से लिखते हुए प्रकाशित कर दिया। जिस दिन वह समाचार प्रकाशित हुआ तो उन गांवों के छात्र भास्कर कार्यालय पहुंच गए और कहा कि जिसने यह समाचार प्रकाशित किया है, उसे कल उनके सामने पेश किया जाए, नहीं तो वे यहां कुछ भी कर सकते हैं।
इस बात को ध्यान में रखते हुए राहुल सैन जी ने यह तो नहीं बताया कि वे छात्र उनको धमकी देकर गए हैं, लेकिन उन्होंने मुझे फोन पर कहा कि कल सुबह 10 बजे कार्यालय आना है, आपसे कुछ जरूरी बात करनी है। इसलिए मैं दूसरे दिन ठीक पौने 10 बजे भास्कर कार्यालय पहुंचा तो वहां देखा कि छात्रों की भीड़ लगी हुई थी और उनमें से अधिकतर छात्र वही थे जो बस में मैंने छात्राओं और महिलाओं से छेड़छाड़ करते देखे थे। वहीं राहुल सैन जी कार्यालय में बैठे हुए थे और बाहर नहीं आ रहे थे। वहीं छात्र नारेबाजी कर रहे थे। इस पर मैं कार्यालय के अंदर गया तो ब्यूरो चीफ से पूछा कि सर आपने मुझे यहां क्यूं बुलाया है। मेेरे यह पूछने पर उन्होंने कहा कि बाहर जो भीड़ का मजमा लगा हुआ है, उसे देखकर आए होंगे, वे आपके उस समाचार को लेकर भड़के हुए हैं जो आपने यहां भेजा था। इस पर मैंने कहा कि वह समाचार तो आपने बहल की बजाए भिवानी डेटलाइन से लगाया था, इसलिए मैं इसमें क्या करूं।
यही तो गलती हो गई
मेरा यह जवाब सुनकर उक्त ब्यूरो चीफ ने मुझसे कहा कि उनसे यही तो गलती हो गई, लेकिन अब मुझे नहीं पता इस बला से मेरा पीछा छुड़वाओ। इस पर मैंने कहा कि यह काम तो मैं 15 मिनट में कर दूंगा, लेकिन सर आप आगे से इस तरह किसी की डेटलाइन चेंज मत करना। वे बोले मेरे बाप नहीं करूंगा, किसी तरह इस बला से मेरा पीछा छुड़वा नहीं तो ये मुझे भी पीटेंगे और कार्यालय को भी नुकसान पहुंचाएंगे। उनके इतना कहने पर मैं उन छात्रों के बीच बाहर आया और उनसे पूछा कि बताओ क्या दिक्कत है। मेरे इतना कहने पर उन छात्रों ने मुझसे पूछा कि यह समाचार किसने लिखा है, हम उनसे मिलना चाहते हैं। इस पर मैंने कहा कि यह समाचार मैंने लिखा है और आपकी उन करतूतों के बारे में उस समय भिवानी की एसपी सुमन मंजरी का नाम लेते हुए कहा कि रूट की कुछ छात्राओं ने उनको भी गुमनाम पत्र लिखे हैं। मेरे इतना कहने पर उन छात्रों को मानों सांप सा सूंघ गया और कहने लगे कि भाई साहब आप यह बता सकते हो कि ये पत्र किन किन छात्राओं ने किन किन छात्रों के नाम लेकर लिखे हैं।
मैंने कहा कि यह सीक्रेट मामला है और आपको बता दूं कि आने वाले कुछ ही दिनों में एसपी सुमन मंजरी खुद उक्त रूट को जाने वाली बस में सादे कपड़े पहनकर सफर करेंगी और आपके द्वारा की जाने वाली करतूतों का खुद मुआयना करेंगी। यकीन मानिए मैंने उन छात्रों से यह पूरी कहानी झूठी बताई थी, लेकिन उनका मेरी बातों पर इतना विश्वास हुआ कि वे शायद करीब 2 महीने तक या तो कालेज नहीं आए। अगर आए भी तो वे उस बस में सवार नहीं होते थे जिसमें छात्राएं होती थी। इसलिए एक प्रकार से मेरी बातों से उक्त रूट की बसों में शांति का माहौल कायम हो गया। वहीं भास्कर के ब्यूरो चीफ को भी अपनी गलती का एहसास हो गया। इसलिए यह लेख मैंने इसलिए लिखा कि अगर इंसान मुश्किल हालातों में जरा सा भी अपने दिमाग का प्रयोग करे तो वे मुश्किलें दूरे होने में ज्यादा समय नहीं लगता। बस इस लेख के माध्यम से यही संदेश मैं आप सब लोगों को देना चाहता हूं। हो सकता है, मैं गलत हूं, लेकिन मैं कई बार इस तरह के हालातों से रूबरू हो चुका हूंl
लेखक हरियाणा के वरिष्ठ पत्रकार हैं।