प्रेषक :आदित्य कुमार पांडेय
भगवान भैरव की महिमा हनी शास्त्र में मिलती है। भैरव झांकियों के गढ़ के रूप में जाने जाते हैं वहीं वे दुर्गा के अनुचरी माने गए हैं। भैरव की सवारी कुत्ता है। चमेली के फूल प्रिय होने के कारण उपासना में इसका विशेष महत्व है।
साथ ही भैरव रात्रि के देवता माने जाते हैं और इनकी आराधना का खास समय भी मध्य रात्रि में 12:00 से 3:00 का माना जाता है । काल भैरव जयंती 7 दिसंबर 2020 को हिंदू माह मार्गशिर्ष के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाई जाएगी। इस दिन को कालाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है।
भैरव का अर्थ होता है वह का हरण कर जगत का भरण करने वाला। ऐसा भी कहा जाता है कि भैरव शब्द तीन अक्षरों में ब्रह्मा विष्णु और महेश तीनों की शक्ति समाहित है। मुख्यत: दो बैलों की पूजा का प्रचलन है एक काल भैरव तथा दूसरा बटुक भैरव मार्गशिर्षमैं कृष्ण पक्ष की अष्टमी को काल भैरव की पूजा का प्रचलन है
इस दौरान काल भैरव के खास मंदिरों के आसपास जत्रा जैसा माहौल हो जाता है। आओ जानते हैं काल भैरव के 16 रहस्य और जाने किस तरह मुक्त हो सकते हैं संकटों से ।
१ भैरव की उत्पत्ति
पौराणिक मान्यता के अनुसार शिव के रुधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई। बाद में उस रुधिर के दो भाग हो गए पहला बटुक भैरव और दूसरा काल भैरव। इसलिए वे शिव के गण और पार्वती के अनुचर माने जाते हैं।
२ काशी के कोतवाल
हिंदू देवताओं में भैरव का बहुत ही महत्व है । इन्हें काशी का कोतवाल कहा जाता है। उनका कार्य है शिव की नगरी काशी की सुरक्षा करना और समाज के अपराधियों को पकड़कर दंड के लिए प्रस्तुत करना। जैसे एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी जिसके पास जासूसी कुत्ता होता है।
उक्त अधिकारी का जो कार्य होता है वही भगवान भैरव का कार्य है।कहते हैं कि काल भैरव ने ब्रह्माजी के उस मस्तक को अपने नाखून से काट दिया जिससे उन्होंने असमर्थता जताई। तब व्रह्म हत्या को लेकर हुई आकाशवाणी के तहत ही भगवान काल भैरव काशी में स्थापित हो गए।
३ भैरव के अन्य नाम
पुराणों में भगवान भैरव को असीतांग रूद्र चंड उन्मत्त क्रोध कपाली भीषण और संघार नाम से भी जाना जाता है। लोग जीवन मैं भगवान भैरव को भैरू महाराज भैरू बाबा मामा भैरव नाना भैरव आदि नामों से जाना जाता है।
४ शिव के अवतार
भगवान शिव के पांचवें अवतार भैरव को भैरवनाथ मुझे कहा जाता है। नाथ संप्रदाय में इनकी पूजा का विशेष महत्व है। भैरव को शिव के 10 अवतार रुद्रावतार में गिनती की गई है।
५ आदिवासियों के देवता
भैरव कई समाज के यह कुलदेवता है और खासकर यह आदिवासियों और वनवासियों के देवता हैं। इसलिए भगवान भैरव को पूजने का प्रचलन भी भिन्न-भिन्न है जो की विधिवत ना होकर स्थानीय परंपरा का हिस्सा है।
६ भैरव के मंदिर
काल भैरव के प्रसिद्ध प्राचीन और चमत्कारिक मंदिर उज्जैन तथा काशी में स्थित है। काल भैरव का उज्जैन में और बटुक भैरव का लखनऊ में मंदिर है। इसके अलावा नई दिल्ली के विनय मार्ग पर नेहरू पार्क में बटुक भैरव का पांडव कालीन मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है। नैनीताल के समीप घोड़ाखाड का बटुक भैरव मंदिर भी अत्यंत प्रसिद्ध है।
यहां गोलू देवता के नाम से भैरव की प्रसिद्धि है। इसके अलावा शक्तिपीठों और उप पीठों के पास स्थित भैरव मंदिर का महत्व माना गया है। उज्जैन में भैरव गढ़ में साक्षात भैरवनाथ विराजमान है। यहां भैरव नाथ की मूर्ति मदिरापान करती है। ऐसा मंदिर विश्व में दूसरा कुछ नहीं। काल भैरव का यह मंदिर लगभग 6000 साल पुराना माना जाता है।
७ काल भैरव : काल भैरव का आविर्भाव मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को प्रदोष काल में हुआ था। या भगवान का शासक युवा रूप है। उक्त रूप की आराधना से शत्रु से मुक्ति संकट कोर्ट कचहरी के मुकदमें में विजय की प्राप्ति होती है। व्यक्ति में साहस का संचार होता है। सभी तरह के भय से मुक्ति मिलती है। काल भैरव को शंकर का रूद्र अवतार भी माना जाता है।
८ बटुक भैरव : ब्रह्मा विष्णु महेश आदि देव द्वारा वंदित बटुक नाम से प्रसिद्ध इन भैरव देव की उपासना कल्पवृक्ष के समान फलदाई है बटुक भैरव भगवान का बाल रूप है विनय आनंद भैरव भी कहते हैं उक्त सॉन्ग स्वरूप की आराधना शीघ्र फलदाई है यह कार्य में सफलता के लिए महत्वपूर्ण है।
१० भैरव तंत्र : युग में जिसे समाधि पद कहा गया है भैरव तंत्र में भैरव पद या भैरवी पद प्राप्त करने के लिए भगवान शिव ने देवी के समक्ष 112 विधियों का उल्लेख किया है जिनके माध्यम से उक्त अवस्था को प्राप्त हुआ जा सकता है।