वैसे तो अटारी पंजाब के अमृतसर जिले का सीमावर्ती गांव होने के साथ-साथ ऐतिहासकि गांव भी। भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित यह किसी पहचान का मोहताज नहीं है। भारत ही समूची दुनिया के नक्शे पर अपनी पहचान है। इस गांव से सिख इतिहास का एक छोर भी जुड़ा हुआ है।
द्विज
सिख इतिहास में महाराजा रणजीत सिंह के बाद दो और नाम ऐसे हैं जिन्हें सदियां गुजर जाने के बाद आज भी लोग अदब के साथ लेते हैं। ये वो नाम हैं जिनसे अंग्रेज और अफगान तक कांपते थे। ये है हरि सिंह नलवा और शाम सिंह अटारी। सिख इतिहास भी महाराजा रणजीत सिंह के बाद इन्हीं दो शूरमाओं के इर्द-गिर्द घूमता है। आज मैं इसी शाम सिंह अटारी की बात करने जा रहा हूं, जिन्होंने 75 साल की उम्र में अंग्रेजी फौज की 17 तोपें और 1000 सैनिकों को मुदकी के जंग में खेत कर दिया था।
भारत-पाक सरहद पर स्थित है अटारी
वैसे तो अटारी पंजाब के अमृतसर जिले का सीमावर्ती गांव होने के साथ-साथ ऐतिहासकि गांव भी। भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित यह किसी पहचान का मोहताज नहीं है। भारत ही समूची दुनिया के नक्शे पर अपनी पहचान है। इस गांव से सिख इतिहास का एक छोर भी जुड़ा हुआ है। क्योंकि शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह के जरनैल शाम सिंह अटारी वाला का संबंध इसी गांव से। आज भी यह गांव करीब दो सौ साल पुराने इतिहासको समेटे हुए है।
शाम सिंह के शेर-ए-पंजाब का शेर बनने की कहानी
शाम सिंह अटारी वाला के शेर-ए-पंजाब का शेर बनने की कहानी भी बड़ी रोचक और विचित्र है। 1790 में अटारी के एक किसान पररिवार में जन्मे शाम सिंह सातवी पीढ़ी के हरप्रीत सिंह ने बताया कि उनके पूर्वज कौर सिंह और गौरा सिंह राजस्थान के जैसलमेर से पंजाब आए।
यहां सिद्धू गोत्र के ये दोनों राजपूत भाई अमृत छक क सिंह बन गए। कौर सिंह के बेटे निहाल सिंह ने पक्का पिंड के पास महाराजा रणजीत सिंह का शाही खजाना लूट लिया जो अमृतसर से लाहौर लाया जा रहा था। जब यह खबर रणजीत सिंह के पास लाहौर पहुंची तो उन्होंने निहाल सिंह गिरफ्तार कर दरबार में पेश करने का हुम्क दिया।
कुछ दिन बाद महाराजा के सैनिकों ने निहाल सिंह को गिरफ्तार कर लाहौर दरबार में पेश किया। यहां महाराजा रणजीत सिंह ने शाही खजाना लूटने व इसकी रकम के बारे में पूछातो उहोंने कहा- ‘बांट कर खर्च लिया और बांट कर छक लिया’ । अर्थात सरकारी रकम खर्च हो चुकी है। महाराजा रणजीत सिंह निहाल सिंह की बेबाकी और बहादुरी से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने कौर सिंह को अपने सुरक्षा दस्ते में शामिल कर लिया।
जब महाराजा की बीमारी लगी निहाल सिंह को
कहते हैं इतिहास खुद को दोहराता है। महाराजा रणजीत सिंहऔर शाम के पिता निहाल सिंह के साथ कुछ ऐसा ही हुआ जैसे बाबर व उसके बेटे हुमायूं के साथ हुआ था। कहा जाता है कि एक बार महाराजा रणजीत सिंहलाहौर से अमृतसर आ रहे थे,गांव बानियेके में वह गंभीर रूप से बीमार पड़ गए। मर्ज इतनी बढ़ी कि उनके ठीकहोने की उम्मीद नहीं थी।
रणजीत सिंह की सुरक्षा में तैनात निहाल सिंह ने उनकी परिक्रमा कर ठीक वैसे ही अरदास की जैसे बाबर ने अपने बीमार बेटे हुमायू के लिए अल्लाह से की थी। इसके बाद धीरे-धीरे रणजीत सिंह ठीक होने लगे और निहाल सिंह बीमार। अंत में एक दिन निहाल सिंह की मौत हो गई। इस वफादारी से प्रसन्न हो कर महाराजा रणजीत सिंह ने निहाल सिंह के बेटे शाम सिंह को अपनी फौज में शामिल कर लिया। और धीरे-धीरे शाम सिंह महाराजा के फौज के जरनैल बन गए।
रिश्तेदारी में बदली वफादारी
हरप्रीत सिंह के अनुसार अपनी बहादुरी और विश्वसनीय के चलते जल्द ही शाम सिंह महाराजा रणजीत सिंह के अच्छेदोस्त बन गए। आगे चल कर यह दोस्ती रिश्तेदारी में भी बदल गई। कहा जाता है कि शाम सिंह महाराजा रणजीत सिंह के दरबारी मंत्रियों में से एक थे।
आगे चल कर शाम सिंह ने गुरमुखी के साथ-साथ अंगेजी और फारसी में भी दक्षता हासिल कर ली। सतलुज दरिया के उसपार रोपड़ में हुए 1831को अंग्रेज गर्वनर जरल लार्ड विलियम वैटिंक के साथ हुए सिख एंग्लो समझौते के दौरान शाम सिंह भी महाराजा रणजीत सिंह के साथ मौजूद थे।
रणजीत सिंह के पौत्र से हुई थी शाम सिंह की बेटी की शादी, आज भी सुनाई जाती है गाथा
हरप्रीत सिंह कहते हैं कि शाम सिंह की बेटी व महाराजा रणजीत सिंह पौत्र और कुंवर खड़क सिंह के पुत्र नौनिहाल सिंह से शाम सिंह अटारी की पुत्री शादी हुई थी। 1846 में हुए इस वैवाहिक कायक्रम में तत्कालीन भारत के लगभग सभी राजाओं-महाराजाओं को आमंत्रित किया गया था। यहां तक कि काबुल और ईरान के शासकों को भी इस समारोह में बुलाया गया था। यह आयोजन कई दिनों तक चलता रहा। सदियां गुजर जाने के बाद भी अमृतसर और लाहौर केलोग नौनिहाल सिंह और शाम सिंह की बेटी की शादी की चर्चा करते नहीं थकते।
धोखे का शिकार हो गया शेर
अफगानों और पहाड़ी राजाओं व अंग्रेजों के खिलाफ कइ जंगेलड़ चुके75 साल के जनैल डोगरा राजाओं के धाोखे का शिकार हो गया। कहा जाता है कि 18 दिसंबर 1845 को अंगेज गर्वनर जनरल लार्ड हार्डिंग के खिलाफ उन्होंने जग लड़ी। इसी जंग मेंब्रिटिश हुकुमत को 17 तोपों के साथ एक हजार सैनिकों का नुकसान उठाना पड़ा था, मारने वाले अंगेज सैनिकों में जलालाबाद का रक्षक कहा जाने वाल जनरल रॉबर्ट सेल भी था।
इसके बाद शाम सिंह अटारी ने अंगेाजों के खिलाफ फरवरी 1846 में मुदकी के पास जंग लड़ी। इस जंग में भी अंग्रेजों को भारी नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन गुलाब सिंह डोगरा ने लाहौर से रसद भेजना बंद कर दिया। जबकि अंग्रेजों से मिल लाल सिंह डोगरा ने सिख सेना को बारूद की जगह राई सप्लाई कर दी। धोखे का शिकार हुए शाम को अंगों की 18 गोलियां लगी और वे 10 फरवरी 1846 को वीरगति को प्राप्त हो गए।
अंग्रेज भी गाते थे बहादुरी की गाथा
शाम सिंह अटारीवाला एक ऐसा योद्धा थे जिसे भारतीय ही नहीं बल्कि अंग्रेज हुक्मरान भी उनकी बहादुरी की गाथा सुनते और सुनाते थे। कहा जाता है कि महाराजा का विश्वासपात्र और कुशल सैन्य क्षमता से भरपूर शाम सिंह आटारी जब जंग के मैदान में अग्रिम पंक्ति में रहता तो वह सफद रेशमी वस्त्र पहनता और सफेद घोड़े की सवारी करता था।
इसतिहासकार कनिंघम अपनी पुस्तक में लिखता है कि मुदकी की जंग मेंअंग्रेजों की हार निश्चित थी, लेकिन एन वक्त पर डोगराओं की सिखों से दगाबाजी ने इस जंग का रुख ही बदल दिया, जिसमें शाम सिंह को शहादत और अंग्रेजों को पंजाब में अपना साम्राज्य स्थापित करने का मौका।
बरेली, अमृतसर और दिल्ली में बसे हैं वंशज
शाम सिंह के वंशज हरप्रीत सिंह कहते हैं कि हमारे खान के लोग अटारी, अमृतसर, दिल्ली और उत्तर पदेश के रामपुर व बरेली सहित देश के विभिन्न हिस्सों और विदेशों में बसे हैं। वे कहते हैं कि आज हमारे परिवार से 18 कर्नल, तीन ब्रिगेडियर, कैप्टन और मेजर सहित कई सैन्य अफसर भारतीय सेना का गौरव बढ़ा रहे हैं।
हरप्रित सिंह कहते हैं कि हमारे पूवर्जजों कनर्ल रामजी व जगजीत सिंह सिद्धू (18 सिख रेजीमेंट) ने 18 चीते, चार शेर व एक हाथी का शिकार कर बर्तानवी सैन्य अफसरों को चौंका दिया था, उस समय उनकी बहादुरी को देखते हुए सेना द्वारा सम्मानित किया गया था।
आज भी मौजूद हैं निशानियां
150 साल बाद भी शाम सिंह अटारी वाले की कुछ निशानियां उनके गांव अटारी में आज भी मौजूद हैं। भारत-पाक सीमा पर बसे कस्बानुमा इस गांव में पहुंचने पर सबसे पहले गांव की शान शाम सिंह अटारी वाला द्वारा बनवाया गया भव्य सरोवर और उनकी समाधि के दर्शन होते हैं। इसके साथ ही ही उनके दो अन्य साथियों की समाधि व म्यूजियम भी है। इसके अलावा उनकी हवेली के कुछ अवशेष आज भी उस बहादुर योद्धा की दास्तान सुना रहे हैं।
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